श्री कालभैरवाष्टक स्तोत्र

श्री कालभैरवाष्टक स्तोत्र

पढ़ें श्री कालभैरवाष्टक स्तोत्र


कालभैरवाष्टकम् स्तोत्र

काल भैरव भगवान शिव का एक रूप माने जाते हैं। यह एक उग्र किन्तु न्यायप्रिय देवता हैं। इन्हें क्षेत्रपाल भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन का निवास हिंदू तीर्थ काशी नगरी के तट पर है।

आदि शंकराचार्य ने भगवान काल भैरव को प्रसन्न करने के लिए नौ श्लोकों के एक स्तोत्र की रचना की।

लेख में-

  1. कालभैरवाष्टकम् स्तोत्र पाठ विधि।
  2. कालभैरवाष्टकम् पाठ से लाभ।
  3. कालभैरवाष्टकम् स्तोत्र- मूल पाठ।

1. कालभैरवाष्टकम् स्तोत्र पाठ विधि:

  • प्रात: काल सबसे पहले स्नान आदि करके शिवलिंग का दूध और जल से अभिषेक करें।
  • इसके बाद भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा करें।
  • पूजा समाप्त होने के बाद कालभैरवाष्टकम् स्तोत्र का जाप करें।

2. कालभैरवाष्टकम् पाठ से लाभ:

  1. प्रतिदिन कालभैरवाष्टकम् का जाप करने से जीवन का ज्ञान मिलता है।
  2. कालभैरवाष्टकम् का जाप करने से जातक को मोक्ष मिलता है।
  3. इसके पाठ से लालच, चिड़चिड़ापन, क्रोध और पीड़ा से मुक्ति मिलती है।

3. कालभैरवाष्टकम् स्तोत्र- मूल पाठ

अथ श्री कालभैरवाष्टकम् स्तोत्र

देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं,
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं,
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥1॥

अर्थ:
जिनके पवित्र चरण- कमल की सेवा देवराज इन्द्र सदा करते रहते हैं तथा जिन्होंने शिरोभूषण के रूप में चन्द्रमा और सर्प का यज्ञोपवीत धारण किया है। जो दिगम्बर-वेश में हैं एवं नारद आदि योगियों का समूह जिनकी वन्दना करता रहता है, ऐसे काशी नगरी के स्वामी कृपालु काल भैरव की मैं आराधना करता हूँ ॥

भानुकोटिभास्करं भवाब्धितारकं परं,
नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम्।
कालकालमम्बुजाक्षमक्षशूलमक्षरं,
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥2॥

अर्थ:
जो करोड़ों सूर्यों के समान दीप्तिमान्, संसार-समुद्र से तारने वाले, श्रेष्ठ, नीले कण्ठ वाले, अभीष्ट वस्तु को देने वाले, तीन नयनों वाले, काल के भी महाकाल, कमल के समान नेत्र वाले तथा अक्षमाला और त्रिशूल धारण करने वाले हैं, उन काशी नगरी के स्वामी अविनाशी कालभैरव की मैं आराधना करता हूँ ॥

शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं,
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम्।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं,
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥3॥

अर्थ:
जिनके शरीर की कान्ति श्याम वर्ण की है तथा जिन्होंने अपने हाथों में शूल, टंक, पाश और दण्ड धारण किया है। जो आदिदेव अविनाशी और आदि कारण हैं, जो त्रिविध तापों से रहित हैं और जिनका पराक्रम महान है। जो सर्वसमर्थ हैं एवं विचित्र ताण्डव जिनको प्रिय है, ऐसे काशी नगरी के अधीश्वर काल भैरव की मैं आराधना करता हूँ ॥

भुक्तिमुक्तिप्रदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं,
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम्।
विनिक्वणन्मनोज्ञ हेमकिङ्किणीलसत्कटिं,
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥4॥

अर्थ:
जिनका स्वरूप सुन्दर और प्रशंसनीय है, सारा संसार ही जिनका शरीर है, जिन के कटिप्रदेश में सोने की सुन्दर करधनी रुनझुन करती हुई सुशोभित हो रही है, जो भक्तों के प्रिय एवं स्थिर- शिवस्वरूप हैं, ऐसे भुक्ति तथा मुक्ति प्रदान करने वाले काशी नगरी के अधीश्वर काल भैरव की मैं आराधना करता हूँ ॥

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं,
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम्।
स्वर्ण वर्ण शेष पाश शोभिताङ्ग-मण्डलं,
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥5॥

अर्थ:
जो धर्म- सेतुके पालक एवं अधर्म के नाशक हैं तथा कर्मपाशसे छुड़ाने वाले, प्रशस्त कल्याण प्रदान करने वाले और व्यापक हैं, जिनका सारा अंगमण्डल स्वर्णवर्ण वाले शेषनाग से सुशोभित है, ऐसे काशीपुरी के अधीश्वर कालभैरव की मैं आराधना करता हूँ ॥

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं,
नित्यमद्वितीयमिष्ट दैवतं निरञ्जनम्।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं,
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥6॥

अर्थ:
जिनके चरणयुगल रत्नमयी पादुका (खड़ाऊँ) की कान्ति से सुशोभित हो रहे हैं, जो निर्मल (स्वच्छ), अविनाशी, अद्वितीय तथा सभी के इष्टदेवता हैं। मृत्यु के अभिमान को नष्ट करने वाले हैं तथा काल के भयंकर दांतों से मोक्ष दिलाने वाले हैं, ऐसे काशी नगरी के अधीश्वर काल भैरव की मैं आराधना करता हूँ ॥

अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसन्ततिं,
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम्।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकन्धरं,
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥7॥

अर्थ:
जिनके अट्टहास से ब्रह्माण्डों के समूह विदीर्ण हो जाते हैं, जिनकी कृपामयी दृष्टि के पात मात्र से पापों के समूह विनष्ट हो जाते हैं, जिनका शासन कठोर है, जो आठों प्रकार की सिद्धियां प्रदान करने वाले तथा कपाल की माला धारण करने वाले हैं, ऐसे काशी नगरी के अधीश्वर काल भैरव की मैं आराधना करता हूँ ॥

भूतसङ्घनायकं विशालकीर्ति दायकं,
काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम्।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं,
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥8॥

अर्थ:
ज्ञान और मुक्ति प्राप्त करने के साधन रूप, भक्तों के विचित्र पुण्य की वृद्धि करने वाले, शोक-मोह-दीनता-लोभ-कोप तथा ताप को नष्ट करने वाले इस मनोहर ‘कालभैरवाष्टक का जो लोग पाठ करते हैं, वे निश्चित ही कालभैरव चरणों की संनिधि प्राप्त कर लेते हैं ॥

॥ फल श्रुति॥

कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं,
ज्ञान मुक्ति साधनं विचित्रपुण्यवर्धनम्।
शोकमोहदैन्यलोभ-कोपतापनाशनं,
प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम्॥

अर्थ:
ज्ञान और मुक्ति प्राप्त करने के लिए भक्तों के विचित्र पुण्य का वर्धन करने वाले शोक, मोह, दैन्य, लोभ, कोप-ताप आदि का नाश करने के लिए जो इस कालभैरवाष्टक का पाठ करता है,वो निश्चित ही काल भैरव के चरणों में जगह पाता है।

॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं श्री कालभैरवाष्टकम् स्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

कालभैरवाष्टकम् स्तोत्र में इतनी शक्ति है कि इसके उपासक का भगवान शिव सभी कष्ट हर लेते हैं। कालभैरवाष्टकम् स्तोत्र का पाठ करने वाले जातक को लालच, क्रोध और पीड़ा से मुक्ति मिलती है।

जो मनुष्य कालभैरवाष्टकम् स्तोत्र से भगवान शिव की स्तुति करता है, उससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। नियमित रूप से कालभैरवाष्टकम् स्तोत्र का पाठ करने से कभी भी धन-संपत्ति की कमी नहीं होती है।

श्री मंदिर द्वारा आयोजित आने वाली पूजाएँ

देखें आज का पंचांग

slide
कैसा रहेगा आपका आज का दिन?
कैसा रहेगा आपका आज का दिन?

Download Sri Mandir app now !!

Connect to your beloved God, anytime, anywhere!

Play StoreApp Store
srimandir devotees
digital Indiastartup Indiaazadi

© 2024 SriMandir, Inc. All rights reserved.