
पार्वती वल्लभा अष्टकम् भगवान शिव की महिमा का वर्णन करता है। इसके पाठ से मन को शांति, भय का नाश और जीवन में आध्यात्मिक बल प्राप्त होता है।
पार्वती वल्लभा अष्टकम् भगवान शिव के पार्वतीपति रूप की स्तुति में रचित एक दिव्य अष्टक है। इसमें शिव और माता पार्वती के पावन मिलन, करुणा और कल्याणकारी स्वरूप का सुंदर वर्णन मिलता है। श्रद्धा से इसका पाठ करने पर वैवाहिक सुख, शांति, सौभाग्य और शिव–शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
भगवान शिव की पत्नी माता पार्वती को हिंदू धर्म में एक देवी के रूप में पूजा जाता है। ये पहाड़ों के शासक और महारानी मेना की बेटी हैं, इसलिए इनका नाम पार्वती पड़ा। माता पार्वती बल, सौंदर्य, करुणा और रचनात्मकता का उत्तम प्रतिनिधित्व करती हैं। हिंदू धर्म में इन्हें सर्वोच्च देवी के रूप में जाना जाता है।
संस्कृत में 8 छंदों की एक काव्य रचना को अष्टकम् कहा जाता है, जिसे आमतौर पर छंदों के सेट के रूप में व्यवस्थित किया जाता है। यह किसी भी भगवान या देवी की अराधना में पढ़ा जाता है। इसी प्रकार है श्री पार्वती वल्लभ अष्टकम। इसे देवी पार्वती की पत्नी के रूप में भगवान शिव की एक प्रार्थना के रूप में पढ़ा जाता है। भगवान शिव और पार्वती की कृपा के लिए भक्त भक्ति भाव से इस अष्टकम का जाप करते हैं।
पार्वती वल्लभा अष्टकम् में माता पार्वती और उनके पति भगवान शिव को नमन किया गया है। यह भगवान शिव की विभिन्न विशेषताओं का वर्णन करता है, जिनका गुणगान ऋषि और वेद गाते हैं और जिन्हें आशीर्वादों के भगवान के रूप में भी जाना जाता है। भगवान भोलेनाथ को शैतानों और भूतों के साथ-साथ सबसे सुंदर प्राणी की उपमाएं दी गई हैं। उनमें अस्तित्व के सभी गुणों हैं। वे पूरी तरह से सभी को अपना एक हिस्सा बना लेते हैं। उनका स्वभाव बिलकुल जीवन जैसा है।
श्री पार्वती वल्लभ अष्टकम का पाठ शांत मन और अपने आप को प्रभु के चरणों में समर्पित करते हुए जाप करने से धन धान्य, कीर्ति में बढ़ोतरी होती है।
मान्यता है कि नियमित रूप से इस अष्टकम् का जाप करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
माना जाता है कि पार्वती वल्लभा अष्टकम् का पाठ करने से माता पार्वती और भगवान शिव की भक्तों पर विशेष कृपा बनती है।
घर में सुख समृद्धि के लिए रोजाना पार्वती वल्लभ अष्टकम का पाठ फायदेमंद साबित हो सकता है।
पार्वती वल्लभा अष्टकम् का पाठ करने से मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति प्रोत्साहित होती है।
इसका पाठ करने से मनुष्य के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आता है।
पार्वती वल्लभा अष्टकम का नियम से पाठ करने से मनुष्य को जीवन में कुछ नया करने का साहस मिलता है। उसके अंदर से असफलता का डर कम होता है, जिससे सफल होने में मदद मिलती है।
मान्यता है कि यह पाठ मनुष्य के दुर्भाग्य को पलट देता है। साथ ही जिंदगी से नकारात्मक ऊर्जा को भी बाहर निकाल देता है।
नमो भूतनाथं नमो देवदेवं नमः कालकालं नमो दिव्यतेजम् । नमः कामभस्मं नमश्शान्तशीलं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥
अर्थ: सभी प्राणियों के स्वामी भगवान शिव को नमस्कार है, देवों के देव महादेव को नमन नमस्कार है, कालों के काल महाकाल को नमस्कार है, दिव्य तेज को नमस्कार है, कामदेव को भस्म करने वाले को नमस्कार है, शांत शील स्वरूप शिव को नमस्कार है, पार्वती के वल्लभ अर्थात प्रिय, नीलकंठ को नमस्कार है।
सदा तीर्थसिद्धं सदा भक्तरक्षं सदा शैवपूज्यं सदा शुभ्रभस्मम् । सदा ध्यानयुक्तं सदा ज्ञानतल्पं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥
अर्थ: सदैव तीर्थों में सिद्धि प्रदान करने वाले, सदैव भक्तों की रक्षा करने वाले, सदैव शिव भक्तों द्वारा पूज्य, सदैव श्वेत भस्मों से लिपटे हुए, सदैव ध्यान युक्त रहने वाले, सदैव ज्ञान सैय्या पर शयन करने वाले नीलकंठ पार्वती वल्लभ को नमस्कार है।
श्मशानं शयानं महास्थानवासं शरीरं गजानां सदा चर्मवेष्टम् । पिशाचं निशोचं पशूनां प्रतिष्ठं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥
अर्थ: श्मशान में शयन करने वाले, महास्थान अर्थात कैलाश में राज करने वाले, शरीर में सदैव गज चर्म धारण करने वाले, पिशाच, भूत प्रेत, पशुओं, आदि के स्वामी नीलकंठ पार्वती-वल्लभ को मैं नमस्कार करता हूं।
फणीनागकण्ठे भुजङ्गाद्यनेकं गले रुण्डमालं महावीर शूरम् । कटिव्याघ्रचर्मं चिताभस्मलेपं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥
अर्थ: कंठ में अनेकों विषधर नाग धारण करने वाले, गले में मुंड माला धारण करने वाले, महावीर पराक्रमी कटि प्रदेश में व्याघ्र चर्म धारण करने वाले, शरीर में चिता भस्म लगाने वाले, नीलकंठ पार्वती-वल्लभ को मैं नमस्कार करता हूं।
शिरश्शुद्धगङ्गा शिवा वामभागं बृहद्दीर्घकेशं सदा मां त्रिणेत्रम् । फणीनागकर्णं सदा फालचन्द्रं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥
अर्थ: जिनके मस्तक पर गंगा है तथा वामभाग पर शिवा अर्थात पार्वती विराजती हैं, जिनके केश बड़ी बड़ी जटाएं हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, कानों को विषधर नाग सुशोभित करते हैं, मस्तक पर सदैव चंद्रमा विराजमान है, ऐसे नीलकंठ पार्वती-वल्लभ को मैं नमस्कार करता हूं।
करे शूलधारं महाकष्टनाशं सुरेशं वरेशं महेशं जनेशम् । धनेशामरेशं ध्वजेशं गिरीशं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥
अर्थ: हाथों में त्रिशूल धारण करने वाले, भक्तों के कष्टों को हरण करने वाले, देवताओं में श्रेष्ठ, वर प्रदान करने वाले, महेश, मनुष्यों के स्वामी, धन के स्वामी, ध्वजाओं के स्वामी, पर्वतों के स्वामी, नीलकंठ पार्वती-वल्लभ को मैं नमस्कार करता हूं।
उदासं सुदासं सुकैलासवासं धरानिर्धरं संस्थितं ह्यादिदेवम् । अजाहेमकल्पद्रुमं कल्पसेव्यं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥
अर्थ: अपने भक्तों के जो दास हैं, कैलाश में वास करते हैं, जिनके कारण यह ब्रह्मांड स्थित है, आदिदेव हैं जो स्वयंभू दिव्य, सहस्त्र वर्षों तक पूज्य, नीलकंठ पार्वती-वल्लभ को मैं नमस्कार करता हूं।
मुनीनां वरेण्यं गुणं रूपवर्णं द्विजैस्सम्पठन्तं शिवं वेदशास्त्रम् । अहो दीनवत्सं कृपालं महेशं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥
अर्थ: मुनियों के लिए जो वरेण्य हैं, जिनके रूपों, गुणों वर्णों आदि की स्तुति द्विजों द्वारा की जाती है, तथा वेदों में कहे गए हैं दीनदयाल कृपालु, महेश, नीलकंठ, पार्वती-वल्लभ को मैं नमस्कार करता हूं।
सदा भावनाथं सदा सेव्यमानं सदा भक्तिदेवं सदा पूज्यमानम् । मया तीर्थवासं सदा सेव्यमेकं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥
अर्थ: सभी प्राणियों के स्वामी, सदैव सेवनीय, पूज्य, मेरे द्वारा सभी देवताओं में पूज्य, नीलकंठ पार्वती-वल्लभ को मैं नमस्कार करता हूं।
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