पितृ स्तोत्र (Pitra Stotra)
पितृ स्तोत्र अपने पूर्वजों के लिए किया जाता है। विशेष रूप से पितृ पक्ष में यदि पितृ स्त्रोत का पाठ किया जाता है। तो पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। घर में सुख समृद्धि आने लगती है। जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष होता है उन्हें नित्य इस स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। यह स्त्रोत मार्कण्डेय पुराण में वर्णित है। जो लोग नित्य इस स्त्रोत का पाठ नहीं कर पाते है वह चतुर्दशी और अमावस्या के दिन इस स्त्रोत का पाठ कर सकते है। पुराणों में यह दिन पितरों के लिए विशेष माना जाता है।
पितृ स्तोत्र का महत्व (Importance of Pitra Stotra)
पितृ स्त्रोत बहुत महत्वपूर्ण स्त्रोत होता है। यदि किसी के घर में प्रतिदिन कलह क्लेश होता रहता है। बनते हुए कार्य बिगड़ने लगते है। बार बार बीमार होने लगते है। धन की हानि होती है तो यह पितृ दोष के कारण भी हो सकता है। इसलिए यदि व्यक्ति पितृ स्त्रोत का नित्य पाठ करता है तो वह इन सभी परेशानियों से मुक्ति पा सकता है। साथ ही वह अपने पितरों को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद भी प्राप्त कर सकता है।
पितृ स्तोत्र पढ़ने के फायदे (Pitru Stotra Ke Fayde)
- जिस भी परिवार में पितृ स्त्रोत का पाठ नियम पूर्वक किया जाता है। उस घर के सभी सदस्य प्रसन्न और स्वथ्य रहते हैं। परिवार में सभी कार्य सरलता से होने लगते है। किसी भी कार्य में कोई अर्चन नहीं आती है।
- जो भी साधक नियमित रूप से इस स्त्रोत का पाठ करता है। उसे नौकरी और व्यापार में तरक्की मिलती है। साथ ही उसका यश बढ़ता है। उसे उसके कार्य क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त होती है।
- इस स्त्रोत का पाठ करने से परिवार में सुख समृद्धि आती है। घर में कभी भी कलह और लड़ाई झगड़ा नहीं होता है। घर में शांति का वातावरण बना रहता है।
- पितृ दोष के निवारण के लिए यह स्त्रोत बहुत ही लाभकारी होता है। इस कारण जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष होता है। उसे इस स्त्रोत का पाठ निश्चित रूप से करना चाहिए।
- यदि किसी व्यक्ति को स्वप्न में बार-बार पितृ दिखते हैं तो उन्हें पितृ स्त्रोत का पाठ करना चाहिए इससे लाभ मिलता है।
पितृ स्तोत्र का हिंदी अर्थ (Hindi meaning of Pitru Stotra)
।।अथ पितृस्तोत्र ।।
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्। नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।। 1।।
हिंदी अर्थ - जो सबके द्वारा पूजा किये जाने योग्य, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी और दिव्यदृष्टि से सम्पन्न है। उन पितरों को मैं सदा प्रणाम करता हूं।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा। सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।। 2।।
हिंदी अर्थ - जो इन्द्र आदि समस्त देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता है, हर मनोकामना को पूर्ण करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूं।
मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा। तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।। 3।।
हिंदी अर्थ - जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य देव तथा चन्द्र देव के भी नायक हैं । उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी प्रणाम करता हूं।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा। द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।। 4।।
हिंदी अर्थ - नक्षत्रों, ग्रहों, अग्नि, वायु, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं। उनका आशीर्वाद सदैव मुझ पर बना रहे।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्। अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:।। 5।।
हिंदी अर्थ - जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित और सदा अक्षय फल को देने वाले हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं।
प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च। योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।। 6।।
हिंदी अर्थ - प्रजापति, सोम, कश्यप, वरूण और योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं।
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु। स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।। 7।।
हिंदी अर्थ - सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को प्रणाम है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू जगतपिता ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूं। आपका आशीर्वाद सदा मुझ पर बना रहे।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा। नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।। 8।।
हिंदी अर्थ - चन्द्र देव के आधार पर प्रतिष्ठित और योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूं। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूं। उनका आशीर्वाद सदा मुझ पर बना रहे।
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्। अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।। 9।।
हिंदी अर्थ - अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूं, क्योंकि श्री पितर जी यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है। उनका आशीर्वाद सदा बना रहे।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:। जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:। नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।। 10।।
हिंदी अर्थ - जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर बारम्बार प्रणाम करता हूं। वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हो उनका आशीर्वाद सदा मुझ पर बना रहे।