
शीतलाष्टक स्तोत्र के पाठ से माँ शीतला की कृपा प्राप्त होती है और रोग, विशेषकर त्वचा एवं ज्वर संबंधी कष्टों से मुक्ति मिलती है। यह स्तोत्र मन और शरीर की शुद्धि, स्वास्थ्य तथा कल्याण का श्रेष्ठ साधन माना गया है। जानिए इसका सम्पूर्ण पाठ और महत्व।
शीतलाष्टक स्तोत्र देवी शीतला माता को समर्पित एक पवित्र और कल्याणकारी स्तोत्र है। इसका पाठ रोग, विशेषकर संक्रामक बीमारियों और शारीरिक पीड़ा से रक्षा करता है। श्रद्धा और भक्ति से इसका जप करने पर स्वास्थ्य, शांति और पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है।
सनातन धर्म में मां शीतला को आरोग्य प्रदान करने वाली देवी माना जाता है। ऐसा मान्यता है कि मां शीतला की आराधना करने से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है। मां शीतला की आराधना के लिए शीतलाष्टक स्तोत्र को विशेष माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान भोलेनाथ ने जनकल्याण के लिए शीतलाष्टक स्तोत्र की रचना की थी। शीतलाष्टक स्तोत्र में मां शीतला की महिमा के बारे में बताया गया है। पंडितों के अनुसार, अगर भक्त नियमित शीतलाष्टक स्तोत्र का पाठ करता है तो उसपर हमेशा मां शीतला की कृपा बनी रहती है।
मां शीतला की आराधना का हिन्दू धर्म में अति महत्व है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव जी द्वारा रचित शीतलाष्टक स्तोत्र का पाठ मात्र से जातक स्वस्थ रहता है और रोग उससे दूर रहते हैं। स्कंद पुराण में मां शीतला के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। माता शीतला का धर्म शास्त्रों में विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि शीतला माता की पूजा आराधना करने से रोगों का नाश होता है। सामान्य पूजा अर्चना से ही माता शीतला अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर मनोकामना पूरी कर देती है। शीतलाष्टक स्तोत्र का पाठ नियमित करने से मां शीतला जल्दी प्रसन्न होती हैं और आशीर्वाद देते हैं।
उत्तर भारत हो, मध्य भारत हो या दक्षिण भारत हो, भारतवर्ष के हर जाति-धर्म में मां शीतला की आराधना किसी-न-किसी रूप में अवश्य की जाती है। बहुत से घरों में तो कुलदेवी के रूप में ये पूज्य हैं। शीतलाष्टकम् ऐसा स्तोत्र है, जिसका नियमित पाठ करने से चेचक का भय खत्म हो जाता है। यह स्तोत्र स्कन्द महापुराण के अंतर्गत आता है। गीता प्रेस गोरखपुर की किताब देवी स्तोत्र रत्नाकर में यह प्रकाशित है। इस स्तोत्र में लिखा गया है कि इसका पाठ और श्रवण करना दोनों ही फलदायी माना जाता है। मूल श्लोक के साथ लघु शब्द भी दिये गये हैं. जिसे देखकर यह सहजता पूर्वक पढ़ा जा सकता है।
मन्त्रः ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः ॥ [११ बार] ।।ईश्वर उवाच।। वन्देऽहं शीतलां-देवीं, रासभस्थां दिगम्बराम्। मार्जनीकलशोपेतां, शूर्पालङ्कृतमस्तकाम् ।।1।।
अर्थ: गर्दभ(गधा) पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में मार्जनी(झाड़ू) तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वन्दना करता हूँ॥1॥
वन्देऽहं शीतलां-देवीं, सर्व-रोग-भयापहाम्। यामासाद्य निवर्तन्ते, विस्फोटक-भयं महत् ।।2।।
अर्थ: हे मां भगवती शीतला मेरा प्रणाम स्वीकार करें, सभी प्रकार के भय और रोगों का नाश करने वाली मां शीतला आप मुझे आशीष दें। आपकी शरण में जाने से चेचक जैसे बड़े से बड़े रोग दूर हो जाते हैं॥2॥
शीतले शीतले चेति, यो ब्रूयाद् दाह-पीडितः। विस्फोटक-भयं घोरं, क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति ।।3।।
अर्थ: चेचक की जलन से पीड़ित जो व्यक्ति “शीतले-शीतले” - ऎसा उच्चारण करता है, उसका भयंकर विस्फोटक रोग जनित भय शीघ्र ही नष्ट हो जाता है॥3॥
यस्त्वामुदक-मध्ये तु, ध्यात्वा पूजयते नरः। विस्फोटक-भयं घोरं, गृहे तस्य न जायते ।।4।।
अर्थ: जो मनुष्य आपकी प्रतिमा को हाथ में लेकर जल के मध्य स्थित हो आपकी पूजा करता है, उसके घर में विस्फोटक, चेचक, रोग का भीषण भय नहीं उत्पन्न होता है॥4॥
शीतले ! ज्वर-दग्धस्य पूति-गन्ध-युतस्य च। प्रणष्ट-चक्षुषां पुंसां , त्वामाहुः जीवनौषधम् ।।5।।
अर्थ: हे मां शीतला ज्वर से संतप्त, मवाद की दुर्गन्ध से युक्त व्यक्ति के लिए आपको ही जीवन रूपी औषधि माना जाता है॥5॥
शीतले ! तनुजान् रोगान्, नृणां हरसि दुस्त्यजान् । विस्फोटक-विदीर्णानां, त्वमेकाऽमृत-वर्षिणी ।।6।।
अर्थ: हे मां शीतला, आप मनुष्यों के शरीर में होने वाले पीड़ादायक रोगोंका नाश करती हैं। आप के
आशीर्वाद से चेचक रोग कभी आपके भक्तों को कष्ट नहीं पहुंचाता है॥6॥ गल-गण्ड-ग्रहा-रोगा, ये चान्ये दारुणा नृणाम्। त्वदनुध्यान-मात्रेण, शीतले! यान्ति सङ्क्षयम् ।।7।।
अर्थ: हे मां शीतला, गलगण्ड ग्रह, चेचक जैसे भीषण रोग हैं, आपके ध्यान मात्र से ही नष्ट हो जाते हैं।
आपकी महिमा अपरंपार है॥ न मन्त्रो नौषधं तस्य, पाप-रोगस्य विद्यते। त्वामेकां शीतले! धात्री, नान्यां पश्यामि देवताम् ।।8।।
अर्थ: हे शीतला मां चेचक जैसे उपद्रवकारी पाप रोग की न कोई औषधि है और ना ही मन्त्र है। वो एकमात्र
आप के स्मरण से ठीक हो जाता है॥ फल-श्रुति ॥ मृणाल-तन्तु-सदृशीं, नाभि-हृन्मध्य-संस्थिताम् । यस्त्वां चिन्तयते देवि ! तस्य मृत्युर्न जायते ॥9॥
अर्थ: हे देवि! जो प्राणी मृणाल – तन्तु के समान कोमल स्वभाव वाली और नाभि तथा हृदय के मध्य विराजमान रहने वाली आप भगवती का ध्यान करता है, उसकी मृत्यु नहीं होती॥9॥
अष्टकं शीतलादेव्या यो नरः प्रपठेत्सदा । विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ॥10॥
अर्थ: जो मनुष्य भगवती शीतला के इस अष्टक का नित्य पाठ करता है, उसके घर में विस्फोटक का घोर भय नहीं रहता॥10॥
श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धाभाक्तिसमन्वितैः । उपसर्गविनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत् ॥11॥
अर्थ: व्यक्ति को अपने सभी विघ्न-बाधाओं का नाश करने के लिये श्रद्धा से शीतलाष्टक स्तोत्र का पाठ करना चाहिए और सुनना चाहिए॥11॥
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता । शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः ॥12॥
अर्थ: हे मां शीतला, आप जगतजननी हैं आप सम्पूर्ण जगत की माता हैं, आप पूरे ब्रह्मांड की पालन करने वाली हैं, आप शत-शत नमस्कार हैं॥12॥
रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाखनन्दनः । शीतलावाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः ॥ एतानि खरनामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत् । तस्य गेहे शिशूनां च शीतलारुङ् न जायते ॥13॥
अर्थ: हे मां शीतला आपकी महिमा अपरंपार है, आप अपने भक्तों का हमेशा ख्याल रखती हैं, जो भी भक्त रासभ, गर्दभ, खर, वैशाखनन्दन, शीतला वाहन, दूर्वाकन्द, निकृन्तन, भगवती शीतला के वाहन आपके इन नामों का स्मरण करता है उसके घर में चेचक रोग नहीं होता है॥13॥
शीतलाष्टकमेवेदं न देयं यस्यकस्यचित् । दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धाभक्तियुताय वै ॥14॥
अर्थ: इस शीतलाष्टक स्तोत्र को जिस किसी अनधिकारी को नहीं देना चाहिए अपितु भक्ति तथा श्रद्धा से सम्पन्न व्यक्ति को ही सदा यह स्तोत्र प्रदान करना चाहिए॥14॥
Did you like this article?
Shri Jagannath Ashtakam भगवान जगन्नाथ की महिमा का वर्णन करने वाला पवित्र स्तोत्र है। जानें श्री जगन्नाथ अष्टकम का अर्थ, पाठ विधि, लाभ और इसका धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व।
Kushmanda Devi Kavach देवी कूष्मांडा की सुरक्षा और आशीर्वाद पाने वाला पवित्र कवच है। जानें कूष्मांडा देवी कवच का पाठ विधि, लाभ और इसका धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व।
Damodar Ashtakam भगवान श्री कृष्ण के दामोदर रूप का स्तुति करने वाला पवित्र स्तोत्र है। जानें दामोदर अष्टकम का अर्थ, पाठ विधि, लाभ और इसका धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व।