श्री महालक्ष्मी अष्टक स्तोत्रम् (Sri Mahalakshmi Ashtak Stotram)
श्री महालक्ष्मी अष्टकम् स्तोत्र देवी मां महालक्ष्मी का अत्यंत प्रिय स्त्रोत है। इस स्त्रोत को सबसे पहले देवराज इंद्र द्वारा पढ़ा गया था। इतना ही नहीं इस स्त्रोत के रचयिता भी इन्द्र देव ही है। इस स्त्रोत के पाठ से माँ लक्ष्मी जी प्रसन्न होती है और धन धान्य प्रदान करती हैं। जो व्यक्ति सुख समृद्धि और धन के अभाव में रहता है उसे हर शुक्रवार को श्री महालक्ष्मी अष्टकम् स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
श्री महालक्ष्मी अष्टक का महत्व (Importance of Shri Mahalakshmi Ashtak)
मनुष्य के जीवन में माँ लक्ष्मी जी की कृपा बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। माँ लक्ष्मी व्यक्ति को सुख -समृद्धि, वैभव और यश देती है। जिस भी व्यक्ति पर माँ की कृपा दृष्टि होती है उसके घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती है। दीपाली के दिन विशेष रूप से माँ लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना की जाती है। उस दिन इस स्त्रोत का पाठ करना बहुत ही फलदायी होता है।
श्री महालक्ष्मी अष्टक पढ़ने के फायदे (Benefits of reading Shri Mahalakshmi Ashtak)
जो भी व्यक्ति श्री महालक्ष्मी अष्टक स्तोत्रम् का पाठ करता है। उसे धन की प्राप्ति होती है। वह आर्थिक रूप से समृद्ध हो जाता है। उसके घर में माँ लक्ष्मी का सदा वास रहता है। माँ लक्ष्मी की कृपा से कभी भी धन की कमी नहीं होती है। श्री महालक्ष्मी अष्टक स्तोत्रम् का पाठ करने से संतान की प्राप्ति भी होती है। माता संतान सुख प्रदान करती है। जिससे साधक के घर में संतान सुख के साथ सौभाग्य भी आता है। जो व्यक्ति श्री महालक्ष्मी अष्टक स्तोत्रम् का नित्य पाठ करता है वह शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य रहता है। उसके समस्त रोग दूर हो जाते हैं। शरीर के साथ साथ मन के रोगों से भी मुक्ति मिल जाती है। इस स्त्रोत का पाठ करने से जीवन में शांति प्राप्त होती है। साथ ही जीवन आनंद से भर जाता है। माँ लक्ष्मी उस व्यक्ति को मानसिक शांति और आत्मिक सुख देती है। इस स्त्रोत को सुबह और शाम दोनों समय किया जा सकता है। शांत और शुद्ध मन से इस स्त्रोत का पाठ करना चाहिए।
श्री महालक्ष्मी अष्टक का हिंदी अर्थ (Hindi meaning of Shri Mahalakshmi Ashtak)
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते । शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥१॥
अर्थात- श्रीपीठ पर स्थित और देवताओं द्वारा पूजित होने वाली हे महामाये ! तुम्हें प्रमाण है। हाथ में चक्र, शंख और गदा धारण करने वाली हे महालक्ष्मी ! तुम्हें प्रणाम है।
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि । सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥२॥
अर्थात- गरुड़ पर आरूढ़ हो कोलासुर को भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली, हे भगवती महालक्ष्मी ! तुम्हें प्रणाम है।
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि । सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥३॥
अर्थात - सब कुछ जानने वाली, सबको वर देने वाली, समस्त दुष्टों को भय देने वाली और सबके दुःखों को दूर करने वाली हे देवि महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि । मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥४॥
अर्थात - सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे भगवती महालक्ष्मी ! तुम्हें सदा प्रणाम है।
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि । योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥५॥
अर्थात - हे देवि ! हे आदि-अंत रहित आदिशक्ते ! हे महेश्वरि ! हे हे योग से प्रकट हुई भगवती महालक्ष्मी ! तुम्हें प्रणाम है।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे । महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥६॥
अर्थात - हे देवि ! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली हो। हे देवि महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है।
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि । परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥७॥
अर्थात- हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्म स्वरूपिणी देवि ! हे परमेश्वरि ! हे जगदम्ब ! हे महालक्ष्मी ! तुम्हें मेरा प्रणाम है।
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते । जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥८॥
अर्थात- हे देवि ! तुम श्वेत वस्त्र धारण करने वाली और नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत में व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देने वाली हो। हे महालक्ष्मी ! तुम्हें मेरा प्रणाम है।
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः । सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥९॥
अर्थात- जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर इस महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र का सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राज्य वैभव को प्राप्त कर सकता है।
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम् । द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः ॥१०॥
अर्थात - जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बड़े-बड़े पापों का नाश हो जाता है। जो प्रतिदिन दो समय पाठ करता है, वह धन-धान्य से संपन्न होता है।
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम् । महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥११॥
अर्थात - जो प्रतिदिन तीनों कालों में पाठ करता है, उसके महान शत्रुओं का नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती हैं।
॥ इति इन्द्रकृत महालक्ष्मी अष्टकम सम्पूर्ण ॥