बहुला चतुर्थी व्रत कथा
बहुला चतुर्थी के अवसर पर हम सभी पशुओं के प्रति अपने प्रेम और कृतज्ञता की भावना को प्रकट करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बहुला चतुर्थी का पर्व क्यों मनाया जाता हैं और इस पर्व को मनाने की प्रथा किस प्रकार शुरू हुई? इससे संबंधित गाय और शेर की कहानी बेहद प्रचलित है, आज हम आपको इसी कथा के बारे में विस्तार से बताएंगे।
एक बार नंद बाबा की गौशाला में श्रीकृष्ण जी को बहुला नामक एक गाय से बेहद लगाव हो जाता है। उस गाय का छोटा बछड़ा भी गौशाला में उसके साथ रहता था। श्री कृष्ण अपना अधिकतर समय इसी बहुला नामक गाय के साथ ही बिताते थे।
एक दिन भगवान कृष्ण बहुला की परीक्षा लेने के लिए शेर का रूप धारण करते हैं और उसका शिकार करने के लिए आगे बढ़ते हैं। तभी बहुला प्रार्थना करते हुए कहती है कि, "आप अभी मेरा शिकार न करें, मेरा बछड़ा सुबह से भूखा है, मुझे उसे दूध पिलाना है। मैं उसे दूध पिलाकर वापस लौट कर आउंगी, तब आप मेरा शिकार कर लेना।”
ऐसा कहकर, वह बहुत मुश्किल से वापस घर आने की अनुमति लेती है। नन्द जी की गौशाला आने के बाद बहुला अपने बछड़े को खूब प्यार दुलार कर करती है और फिर दूध पिलाकर वापस उसी शेर के पास चली जाती है। अपने वचन के मुताबिक वह शेर से कहती है, कि "अब मेरा शिकार करके, आप अपनी भूख मिटा लो।”
तब श्री कृष्ण अपने असली रूप में आकर बहुला से कहते हैं, कि "बहुला, आज तुम अपनी इस परीक्षा में सफल हुई। मैं तुम्हें वचन देता हूं, कि भादों की कृष्ण चतुर्थी, बहुला चतुर्थी के रूप में जानी जाएगी और इस दिन लोग तुम्हारी पूजा-अर्चना एक माता के रूप में करेंगे।
तभी से जो भी व्यक्ति इस व्रत को रखता है, उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं, और साथ ही उसे सभी सुखों की प्राप्ति भी होती है। इस दिन, गौ माता की पूरी श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना की जाती है। क्योंकि जिस प्रकार माता अपने बच्चे को दूध पिलाकर उनका पालन पोषण करती हैं, ठीक उसी तरह गौ माता भी मनुष्यों का पालन पोषण और रक्षा करती हैं।
यह व्रत रखने से सभी मानसिक और शारीरिक रोग एवं कष्टों से मुक्ति मिलती है। साथ ही संतान और सुख-संपत्ति की भी प्राप्ति होती है। हम आशा करते हैं कि भगवान श्री कृष्ण बहुला के भांति ही, आप सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण कर उनकी रक्षा करें। अगर आपको यह जानकारी पसंद आई, तो ऐसी ही रोचक कथाओं को जानने के लिए, बने रहिये श्री मंदिर के साथ।