गणगौर की व्रत कथा

गणगौर की व्रत कथा

होती है अखंड सौभाग्य की प्राप्ति


गणगौर की व्रत कथा (Gangaur Vrat Katha)

गणगौर पूजा कुंवारी कन्याएं और विवाहित स्त्रियां दोनों ही करती हैं। कुंवारी कन्याओं को इस व्रत के प्रभाव से अच्छे वर की प्राप्ति होती है, और विवाहित स्त्रियों के पति गणगौर पूजा के फलस्वरूप दीर्घायु होते हैं।

गणगौर व्रत की पावन कथा

एक बार भगवान शंकर माता पार्वती और नारद जी के साथ भ्रमण के लिए निकले। चलते चलते वो एक नगर में पहुंचे। जैसे ही नगर की स्त्रियों को उनके आने का संदेश मिला, वो तरह-तरह के पकवान बनाने लगीं। पकवान बनाते-बनाते जब बहुत देर हो गई, तो सामान्य कुल की स्त्रियां उच्च कुल की स्त्रियों से पहले थाली में अक्षत लेकर शिव-पार्वती की पूजा के लिए उपस्थित हो गईं। पार्वती जी ने न सिर्फ उनकी पूजा को स्वीकार किया, बल्कि संपूर्ण सुहागरस उनपर न्योछावर कर दिया।

इसके कुछ समय पश्चात् उच्च कुल की महिलाएं आईं। जैसे ही शंकर भगवान ने उन्हें देखा तो पार्वती से बोले- आप तो सारा सुहागरस सामान्य कुल की महिलाओं को दे चुकी हैं, अब इन्हें आप क्या देंगी? तब माता पार्वती बोलीं, कि उन्होंने साधारण कुल की स्त्रियों को साधारण सुहागरस दिया था। परंतु इन स्त्रियों को वह अपनी उंगली चीर कर अपने रक्त से बना हुआ सुहागरस देंगी। ये रक्त जिस भी स्त्री पर गिरेगा वह पार्वती की तरह हमेशा सौभाग्यवती रहेगी। और जब उच्च कुल की स्त्रियों की पूजा संपन्न हुई तो पार्वती जी ने बिल्कुल वैसा ही किया। जिस पर भी वो रक्त गिरा उस स्त्री का सुहाग अमर हो गया।

इसके बाद माता पार्वती भगवान शिव से आज्ञा लेकर नदी पर स्नान के लिए चली गईं। वहां उन्होंने मिट्टी का शिवलिंग बनाकर पूजा की, और जब वो वहां से वापस आईं तो शंकर भगवान ने उनसे विलंब से आने का कारण पूछा। पार्वती जी ने भगवान शंकर से झूठ बोला और कहा- रास्ते में उन्हें उनके भाई और भाभी मिल गए थे, इस कारण उन्हें आने में समय लग गया। तभी भगवान शंकर बोले- देवी! जब आप नदी किनारे पूजा कर रही थीं, तो उस समय आपने किस वस्तु का भोग लगाया, और किस चीज़ का प्रसाद खाया?

तब माता पार्वती ने एक और झूठ बोला और कहा- उनके भाई ने उन्हें दूध-भात खिलाया। ये सुनते ही भगवान शिव का भी मन दूध-भात खाने का हो गया, और वो नदी किनारे चल पड़े। जैसे ही शिव जी कुछ दूर चले, उन्हें रास्ते में एक महल दिखा। जब वो उस महल के भीतर गए, तो वहां उन्हें पार्वती जी के भाई और भाभी मिले। दो दिन तक भगवान शंकर वहीं रुके और तीसरे दिन जब वह वापस आए तो अचानक उन्हें स्मरण हुआ कि वो अपनी माला महल में ही भूल गए हैं।

नारद जी उनकी माला लेने के लिए महल गए लेकिन वहां जाकर वह आश्चर्य चकित हो गए क्योंकि वहां पर कोई महल ही नहीं था। तभी जंगल में बिजली कड़की और एक पेड़ की टहनी पर उन्हें शिव जी की माला मिली। वापस लौटकर नारद जी भगवान शिव से बोले- हे भगवन! वहां तो सिर्फ निर्जन वन है। तो भगवान शंकर ने कहा- नारद! यह सब तुम्हारी माता पार्वती की माया है, क्योंकि वह अपने इस व्रत को गुप्त रखना चाहती थीं। यह सुनकर नारद भगवान अत्यंत प्रसन्न हुए और बोले- जो स्त्रियां गुप्त रूप से अपने पति की दीर्घायु होने के लिए पूजा करेंगी, भगवान शिव पार्वती के आशीर्वाद के प्रभाव के कारण उनका सुहाग अटल रहेगा। और तभी से गणगौर की पूजा की जाती है।

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