पापांकुशा एकादशी की व्रत कथा

पापांकुशा एकादशी की व्रत कथा

सभी पापों से मिल जाती है मुक्ति


पापांकुशा एकादशी की व्रत कथा (Papankusha Ekadashi KI Vrat Katha)

शास्त्रों में सभी एकादशियों को मनुष्यों का उद्धार करने के लिए परम कल्याणकारी माना गया है। एकादशी से जुड़ा हुआ एक प्रश्न है कि सभी एकादशियों को पापों का विनाश करने के लिए जाना जाता है, फिर पापांकुशा एकादशी में विशेष क्या है?

इस बात का उत्तर आपको इस व्रत कथा में मिलेगा, इसलिए कथा को ध्यान से ज़रूर पढ़ें-

पापांकुशा एकादशी व्रत कथा (Papankusha Ekadashi Vrat Katha)

पापांकुशा के महत्व को समझने के लिए समय के पहिए को पीछे घुमाते हैं, और चलते हैं युधिष्ठिर जी के महल में, जहां युधिष्ठिर जी, अपने मार्गदर्शक भगवान श्रीकृष्ण से पूछ रहे हैं कि, “ हे प्रभु! आश्विन मास में शुक्ल पक्ष में कौन सी एकादशी आती है और उसका माहात्म्य क्या है? कृपया इसका विस्तृत वर्णन करें।”

इसके उत्तर में श्रीकृष्ण बोले, “हे राजन, आपने एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा है, आज मैं आपको समस्त पाप कर्मों का नाश करने वाली पापांकुशा एकादशी के बारे में विस्तार से बताऊंगा। इस दिन मनुष्यों को पूरी आस्था के साथ भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जब मनुष्य अपनी समस्त इंद्रियों को वश में करके तपस्या करता है, और उसे ऐसा करने से जिस फल की प्राप्ति होती है, उसी फल की प्राप्ति उसे मात्र इस एकादशी पर भगवान श्रीहरि के भक्तिपूर्वक व्रत करने से मिलती है। ”

आगे पापांकुशा व्रत की महिमा की व्याख्या करने के लिए श्रीकृष्ण जी ने एक रोचक कथा का वाचन किया, “किसी समय में विंध्य पर्वत पर एक क्रूर और निर्दयी बहेलिया रहता था। वह पशु-पक्षियों की निर्मम रूप से हत्या करता था और उसमें दया और करुणा जैसी कोई भावना नहीं थी। उसकी बर्बरता यहीं तक सीमित नहीं थी, उसे पशुओं को चोटकर पहुंचाकर सुख की अनुभूति होती थी और इस प्रकार उसने अपना सारा जीवन हिंसा, लूटपाट और पाप कर्मों में बिता दिया।

इस प्रकार अधर्म के मार्ग पर चलते हुए उसका पूरा जीवन पापों के दलदल में डूबा हुआ था, लेकिन भाग्य का खेल देखिए, इतने अधर्मी व्यक्ति को भी अपने अंतिम समय में अपने पापों का एहसास हुआ, जब यमराज के दूत उसे यह बताने आए कि उसकी मृत्यु पास है, और अपनी मृत्यु के पश्चात् वह नरक में कष्ट भोगेगा। यह सुनकर, उसके पांव तले ज़मीन खिसक गई और नरक की प्रताड़ना से तो हर किसी को बेहद डर लगता है, इसके पश्चात् वह अपने पापों से मुक्ति का मार्ग खोजने लगा।

अपनी खोज में वह अंगीरा ऋषि के आश्रम में पहुंच गया और उनके चरणों में गिरकर कहने लगा, “हे मुनिवर, मैंने अपना सारा जीवन केवल अधर्म के मार्ग पर चलकर बिताया है, मैं अपनी गलतियों का पश्चाताप करना चाहता हूँ और अपने पापों से मुक्ति पाना चाहता हूँ, आप तो परम ज्ञानी है, कृपया मुझे धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ने का उपाय बताएं”।

यह सुनकर ऋषि अंगीरा बोले, कि तुमने अपना पूरा जीवन केवल प्राणियों के अहित में व्यतीत किया है, इसलिए तुम्हारी जगह नरक में निश्चित है, लेकिन अगर तुम अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहते हो तो तुम आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली पापांकुशा एकादशी का व्रत करों और इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करो। श्रीहरि की भक्ति ही अब तुम्हें जीवन में सही मार्गदर्शन दे सकती है।

यह सुनकर बहेलिए ने पापांकुशा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना की और व्रत रखा। भगवान विष्णु जी की कृपा और पापांकुशा एकादशी की महिमा के प्रभाव से अपने जीवन के अंतिम समय में वह अध्यात्म के मार्ग पर लौट आया।

अपनी कथा का अंत करते हुए, भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर जी से बोले कि इस पृथ्वी पर श्रीहरि के पवित्र नामों का उच्चारण मात्र करने से व्यक्ति को समस्त तीर्थों का फल प्राप्त होता है, और इन नामों का उच्चारण यदि एकादशी के दिन किया जाए तो उस व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए मनुष्यों को पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए इस व्रत को अवश्य ही करना चाहिए।

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