संतान सप्तमी की व्रत कथा

संतान सप्तमी की व्रत कथा

संतान प्राप्ति का सबसे उत्तम व्रत


संतान सप्तमी की व्रत कथा (Santan Saptami Vrat Katha)

हिंदू धर्म के मुख्य व्रतों की कड़ी में, आज हम आपके लेकर आए संतान सप्तमी के व्रत की कथा। यह व्रत स्त्रियां संतान प्राप्ति के लिए, और मताएं अपने बच्चों की सुरक्षा और सुखमय जीवन के लिए करती हैं। इस पावन व्रत की कथा सुननेपढ़ने के लिए, आप इस लेख को अंत तक अवश्य देखें- प्राचीन काल की बात है, अयोध्या नगरी में नहुष नाम के राजा राज्य करते थे। उनकी पत्नी का नाम चंद्रमुखी था। उसी राज्य में विष्णुदत्त नाम का एक ब्राह्मण भी रहता था। उसकी पत्नी का नाम रूपवती था। रानी चंद्रमुखी और रूपवती में घनिष्ठ प्रेम था। परंतु दुख की बात यह थी, कि वह दोनों निःसन्तान थीं। एक दिन दोनों सखियाँ, सरयू नदी में स्नान करने गईं, तो वहां उन्होंने देखा, कि कुछ स्त्रियां पार्वती और शिव जी की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा कर रही हैं। यह देखकर रानी चंद्रमुखी और रूपवती ने उन स्त्रियों से इस पूजा के बारे में पूछा। तब उनमें से एक स्त्री ने उन्हें बताया, कि यह व्रत पार्वती और शिव जी का है और उन्होंने भगवान शिव के नाम की डोरी बांधकर, आजीवन यह व्रत रखने का संकल्प लिया है। उसने आगे इस व्रत के बारे में बताते हुए कहा कि, यह व्रत सुख, समृद्धि तथा संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है। यह सुनकर, रानी चंद्रमुखी व रूपवती ने भी आजीवन इस व्रत को करने का संकल्प मन में लिया और शिव जी के नाम की डोरी बांध ली। लेकिन कुछ समय पश्चात, वे दोनों इस संकल्प को भूल गईं। इसके परिणाम स्वरूप, मृत्यु के पश्चात रानी चंद्रमुखी को एक वानरी तथा रूपवती को एक मुर्गी की योनि प्राप्त हुई। कुछ समय पशु योनि भोगने के पश्चात पुनः दोनों को मनुष्य योनि प्राप्त हुई। इस जन्म में चंद्रमुखी फिर से रानी बनी। वह मथुरा के राजा पृथ्वीनाथ की पत्नी बनी और रानी ईश्वरी कहलाईं। रूपवती ने फिर से एक ब्राह्मण के घर जन्म लिया और उसका नाम भूषणा था। भूषणा का विवाह एक राजपुरोहित के साथ हुआ। सौभाग्य से इस जन्म में भी दोनों सखियों में गहरा प्रेम था। अपना संकल्प पूरा ना करने के कारण, रानी को इस जन्म में भी कोई संतान नहीं हुई। प्रौढ़ावस्था में उसने एक गूंगे - बहरे पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह भी नौ वर्ष से अधिक ना जी सका। भूषणा को व्रत याद था, इसलिए उसने आठ सुंदर, स्वस्थ पुत्रों को जन्म दिया। एक दिन भूषणा पुत्रशोक में डूबी हुई, रानी ईश्वरी को सांत्वना देने उसके पास गई। उसे देखते ही रानी के मन में, ईर्ष्या पैदा हो गई। इसके बाद उसने कई बार, भूषणा के पुत्रों को मार डालने की कोशिश की। लेकिन भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा से, हर बार सभी बालक सुरक्षित बच गए। तब उसने भूषणा को अपने पास बुलाया और बच्चों के जीवित बच जाने का कारण पूछा। तब भूषणा ने रानी को पूर्व जन्म की बात बताई, कि वह पूर्व जन्म में अयोध्या के राजा नहुष की रानी थी और वे दोनों सखी थी। उन दोनों ने एक बार भगवान शिव की डोरी बांध कर, आजीवन संतान सप्तमी व्रत करने का संकल्प लिया था। वे दोनों इस व्रत को भूल गई, जिसके फलस्वरूप उन्हें विभिन्न योनियों में जन्म लेने के पश्चात फिर से इस जन्म में मनुष्य योनि प्राप्त हुई है। यह सुनकर रानी ईश्वरी ने भी, संतान प्राप्ति की कामना से, इस मुक्ताभरण व्रत को विधिपूर्वक रखा। शिव जी और माता पार्वती की कृपा से रानी ईश्वरी भी गर्भवती हो गईं और उसने एक सुंदर बालक को जन्म दिया। उसी दिन से संतान प्राप्ति के लिए, यह व्रत रखा जाने लगा।

श्री मंदिर द्वारा आयोजित आने वाली पूजाएँ

देखें आज का पंचांग

slide
कैसा रहेगा आपका आज का दिन?
कैसा रहेगा आपका आज का दिन?

Download Sri Mandir app now !!

Connect to your beloved God, anytime, anywhere!

Play StoreApp Store
srimandir devotees
digital Indiastartup Indiaazadi

© 2024 SriMandir, Inc. All rights reserved.