सोमवती चैत्र अमावस्या व्रत कथा (Chaitra Amavasya Vrat Katha)
चैत्र अमावस्या को शुभ कार्यों और अनेकों प्रकार के दोषों से मुक्ति पाने के लिए उपयुक्त बताया गया है, इसलिए हिन्दू धर्म में न केवल चैत्र बल्कि हर माह की अमावस्या का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं इस पर्व की पौराणिक कथा।
बहुत समय पहली की बात है एक राजा एक नगरी में राज किया करता था। उसकी प्रजा और परिवार दोनों ही सुख से रहते थे और तो और राजा की रानी भी बहुत धार्मिक थी। राजमहल के सामने ही एक साहूकार की हवेली हुआ करती थी जो कि राजा का घनिष्ठ मित्र था।
हुआ ऐसा कि साहूकार के पुत्र की मृत्यु हो गई और साहूकार की पत्नी की रोने की आवाज चारों ओर गूंजने लगी। वह सुन रानी ने राजा से साहूकार की पत्नी के रोने का कारण पूछा तो उसे सारी बात पता चली। तब रानी ने प्रश्न किया कि, “दुख क्या होता है?” इस पर राजा ने कहा कि, “जब तुम्हारा पुत्र मृत्यु को प्राप्त होगा तब तुम्हें पता चलेगा।” यह सुनते ही रानी ने अपने पुत्र को महल से नीचे फेंक दिया, लेकिन भगवान की कृपा से वह बच गया। रानी ने फिर प्रश्न किया कि, “दुख क्या होता है?” तब राजा ने कहा कि वह पड़ोसी राज में युद्ध करने जा रहा है। जब उसके मृत्यु का समाचार मिलेगा तब रानी को उत्तर मिल जाएगा। लेकिन रानी अमावस्या का व्रत करती थी जिसके कारण राजा विजयी होकर लौटा। रानी को उसका उत्तर मिलता ही रह गया तो उसने फिर पूछा। जिसके बाद राजा ने कहा कि, “अब हम गंगा माँ के दर्शन करने जाएंगे। जब मैं वहां जाकर गंगा नदी में कूद जाऊंगा, तब तुम्हें दुख का पता चलेगा।”
राजा रानी में आपस में बात हो ही रही थी कि भगवान शिव, कैलाश पर विराजमान सब कुछ देख रहे थे। उन्होंने माता पार्वती से कहा कि, “चलो आज मैं तुम्हें एक सुखी आत्मा के दर्शन करवाता हूँ।” जिसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती बकरा बकरी का रूप धारण कर मृत्युलोक पधारे।
वह दोनों एक बावली के पास घास चरने लगे। तब रानी वहा विश्राम करने आई और शिव-पार्वती के बीच हो रहे वार्तालाप को सुन लिया। उसने भगवान शिव को माता पार्वती से यह कहते हुए सुन लिया कि, “रानी अमावस्या का व्रत करती है इसलिए इसे जीवन में कोई दुख भोगना नहीं पड़ेगा।” यह सुनकर रानी सब कुछ समझ गई।