हरियाली तीज व्रत कथा

हरियाली तीज व्रत कथा

पढ़ें ये कथा मिलेगा मनोवांछित जीवनसाथी


हरियाली तीज व्रत कथा (Hariyali Teej Vrat Katha)

भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन की एक सुंदर पर्व हैं हरियाली तीज। इस पर्व से जुड़ी कथा में आप जानेंगे कि किस प्रकार माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को अपने पति परमेश्वर के रूप में प्राप्त किया। हरियाली तीज व्रत कथा के अनुसार, इस कथा का वाचन स्वयं भगवान शिव ने माता पार्वती के समक्ष किया था।

माता पार्वती ने हिमालय पर्वत के घर में जन्म लिया था, और बचपन से ही उन्होंने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने का दृढ़ संकल्प ले लिया था। उन्होंने कई वर्षों तक हिमालय पर्वत पर विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए कठोर तपस्या की। यह देखकर देवी पार्वती के पिता पर्वत राज अत्यंत चिंतित हो गए थे। एक दिन देवर्षि नारद उनके पिता के पास पहुंचे और कहने लगे- हे राजन, भगवान विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करने के इच्छुक हैं, इस विषय में आपके क्या विचार हैं?

यह सुनकर पर्वत राज को हार्दिक प्रसन्नता हुई और वह भगवान विष्णु के साथ अपनी पुत्री का विवाह करवाने के लिए मान गए। देवर्षि नारद ने यह संदेश भगवान विष्णु तक पहुंचा दिया और साथ ही माता पार्वती को भी इस बारे में बता दिया।

जब पार्वती जी को इस बात की जानकारी हुई तो वह अत्यंत निराश हो गईं, क्योंकि उन्होंने तो मन ही मन में भगवान भोलेनाथ को अपने जीवनसाथी के रूप में स्वीकार कर लिया था।

माता पार्वती ने दुखी होकर, यह बात अपनी सहेली को बताई और उनकी सखी ने पार्वती जी की सहायता करने का निश्चय किया। इसके बाद उनकी सहेली ने पार्वती जी को एक घने जंगल में एक गुफा में छिपा दिया। माता पार्वती ने उस गुफा में भगवान शिव की पूजा के लिए रेत के शिवलिंग का निर्माण किया और वह घोर तपस्या में लीन हो गईं। संयोग से माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में की थी और साथ ही उन्होंने निर्जला व्रत भी रखा था। आखिरकार भगवान शिव माता पार्वती की सच्ची निष्ठा और तप से प्रसन्न हुए और उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दे दिया। इसके बाद माता पार्वती ने व्रत का पारण किया।

वहीं दूसरी ओर पर्वत राज भी अपनी पुत्री को ढूंढते-ढूंढते गुफा तक आ पहुंचे। माता पार्वती ने अपने पिता को वहां घर छोड़कर गुफा में रहने का कारण बता दिया। साथ ही उन्होंने अपने पिता को यह भी बताया कि भगवान शिव ने उनका वरण कर लिया है और इस प्रकार उन्होंने भगवान भोलेनाथ को अपने वर के रूप में प्राप्त करने का संकल्प पूर्ण कर लिया है।

इसके पश्चात् राजा पर्वत राज ने भगवान विष्णु से माफी मांगी और वह आखिरकार अपनी पुत्री का विवाह भगवान शिव से करवाने के लिए तैयार हो गए। अंततः भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह विधि पूर्वक संपन्न हुआ। इस प्रकार भगवान शिव और पार्वती का पुनर्मिलन संभव हो पाया।

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