कैसे हुई माता लक्ष्मी द्वारा भाई-बहन के इस स्नेहपर्व (रक्षाबंधन) की शुरुआत?
प्रत्येक वर्ष सावन मास की पूर्णिमा तिथि, यानी रक्षाबंधन भाई-बहन के लिए एक ऐसा पर्व होता है, जिसका इंतज़ार वो पूरे साल करते हैं। लेकिन क्या आपको है कि इस पर्व की शुरुआत स्वयं माता लक्ष्मी ने की थी? धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, श्रावण पूर्णिमा को सर्वप्रथम माता लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधकर इस पर्व की शुरूआत की थी। तो चलिए इस सुंदर कथा के माध्यम से इस पर्व के महत्व को करीब से जानें:
पुराने समय के दक्षिण भारत में, राजा बलि नाम का एक असुर अपनी नीति और प्रशासनिक कार्यों के कारण बहुत ही प्रसिद्ध था। राजा बलि नाम से विख्यात वह असुर, स्वाभाव से उदार और प्रजा को खुश रखने वाला था। लेकिन एक महत्वाकांक्षी राजा होने के कारणवश उसकी मंशा थी कि समस्त लोकों पर उसका राज हो। अपनी इस महत्वकांक्षा को पूरा करने के लिए, उसने देवताओं पर आक्रमण कर दिया और परलोक, पृथ्वी एवं पाताल में भी अपना अधिकार स्थापित किया। फिर वह समस्त ब्रह्मांड पर कब्ज़ा करने के लिए अश्वमेध यज्ञ करने लगा।
माता लक्ष्मी, जो भगवान विष्णु की धर्मपत्नी हैं और समस्त संसार को धन, ऐश्वर्य और समृद्धि प्रदान करती हैं। उनके विषय में धर्म ग्रंथों में ये निहित है, कि जब राजा बलि ने अश्वमेध यज्ञ संपन्न किया था, तो उसका अहंकार नष्ट करने की मंशा से भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर, तीन पग धरती दक्षिणा स्वरुप मांग ली थी। ऐसा कहा जाता है, कि प्रभु की लीला से अनजान, राजा बलि ने तब बिना एक भी क्षण गवाएं इस बात के लिए अपनी स्वीकृति दे दी। अब भगवान की लीला देखिये, उनकी हां सुनते ही भगवान विष्णु ने अपना कद और आकार इतना बढ़ा लिया कि देखते ही देखते मात्र तीन पग में उन्होंने समस्त पृथ्वी नाप दी। फिर विष्णु जी ने राजा बलि से कहा, कि “आप अब पाताल लोक में विराजें”।
प्रभु के वचन सुनकर, राजा बलि उनकी लीला समझ गए और फिर उन्होंने उनसे एक वरदान मांगा, कि “हे भगवन! मैं जब भी देखूं, तो सिर्फ आपको ही देखूं। मैं सोते-जागते हर क्षण, आपको ही देखना चाहता हूं।” उनकी ये मनोकामना सुनकर भगवान विष्णु ने उन्हें उनकी इच्छा पूरी होने का आशीर्वाद दिया और राजा बलि प्रेमपूर्वक उनकी आज्ञा मानकर, पाताल लोक में रहने लगे। लेकिन अब चिंता का विषय यह था कि उनके हर वक़्त श्री हरि विष्णु को देखने से माता लक्ष्मी असहज हो गईं और उन्होंने अपनी परेशानी, नारद जी को बताई। तब माता की बातें सुनकर नारद जी बोले, “आप राजा बलि को अपना भाई बना लीजिए और उनसे भगवान विष्णु को मांग लीजिए।” माता को भी यह विचार अच्छा लगा और वह इसके लिए मान गईं।
नारद जी के वचनानुसार, माता लक्ष्मी भेष बदलकर राजा बलि के पास पहुंची और वहां जाकर, करुणामयी आँखों में आंसुओं को भर कर रोने लगीं। एक स्त्री को ऐसे रोता देखकर, राजा बलि का हृदय पिघल गया। फिर जब उन्होंने माता लक्ष्मी से इसका कारण पूछा, तो माता ने कहा, कि उनका कोई भाई नहीं है इस कारणवश वो रो रही हैं। इतना सुनकर राजा ने कहा, कि “आप चिंता न करें और बिल्कुल न रोएं। आज से मैं आपका धर्म भाई हूं।” इस प्रकार से माता लक्ष्मी ने तब राजा बलि को राखी बांधी और भेंट स्वरूप भगवान विष्णु की कामना की। माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु के साथ जुड़ी राजा बलि की इस कथा को सुनकर ऐसा प्रतीत होता है कि देव नगरी की लीला ही निराली है। पहले पति आए और सब कुछ ले गए फिर माता आईं तो भगवान को ही ले गईं।
तो यह थी माँ लक्ष्मी से जुड़ी हुई रक्षाबंधन की कथा। ऐसी ही रोचक और धर्म से जुड़ी अनंत कथाओं और जानकारी से खुद को भाव विभोर करने के लिए श्रीमंदिर वेबसाइट पर अन्य कहानियों को अवश्य पढ़ें।