रक्षाबंधन और भाई-बहन का प्राचीन मंदिर
रक्षाबंधन और भाई-बहन का प्राचीन मंदिर

रक्षाबंधन और भाई-बहन का प्राचीन मंदिर

बिहार का ऐसा मंदिर जो भाई-बहन को है समर्पित


बिहार के सिवान में है भाई और बहन का अनोखा मंदिर



नमस्कार दोस्तों! राखी का त्योहार, भाई-बहन के अनन्य रिश्ते का प्रतीक है, यह तो हम सभी जानते हैं। मगर क्या आपको पता है कि भारत के एक प्रांत में भाई बहन का एक मंदिर भी स्थित है?

बिहार के सिवान में दरौंदा प्रखंड का भीखाबांध गाँव, ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व वाले इस अनूठे तथ्य का साक्षी है। यहाँ उपस्थित भैया-बहिनी मंदिर, कई लोगों के लिए उपासना का केंद्र-स्थल भी है। इस जगह पर दो विशालकाय बरगद के पेड़ भी मौजूद हैं, जिन्हें आस्था और विश्वास का प्रतीक मान कर पूजा जाता है। इतना ही नहीं, इन बरगद के पेड़ों से जुड़ी एक अनोखी कहानी भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है, जिसके बारे में हम आपको आज बता रहे हैं।

यह कहानी आज से लगभग तीन सौ साल पहले की है जब भारत में मुग़लों का शासन हुआ करता था। प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार रक्षा बंधन से दो दिन पहले एक भाई अपनी बहन को ससुराल से विदा करवा कर डोली से घर ले जा रहा था। तभी भीखाबांध गाँव के समीप मुग़ल सिपाहियों ने उस डोली को रास्ते में रोक दिया और दोनों भाई-बहन को अपना बंदी बना लिया। उन दोनों ने सिपाहियों से उन्हें मुक्त कर देने का अनुनय विनय किया, लेकिन उन्होंने दोनों भाई बहन की एक भी नहीं सुनी। मुग़ल सैनिक, उस बहन को सुंदर और सजी हुई कन्या पाकर, उसके साथ दुर्व्यवहार करने लगे।

भाई ने अपनी बहन की उन सैनिकों से रक्षा करने की यथासंभव कोशिश भी की। लेकिन सैनिकों की संख्या बहुत ज़्यादा होने के कारण, दोनों भाई-बहन अपने आपको बेहद असहाय महसूस करने लगे। आखिरकार, दोनों ने सब कुछ ईश्वर के हाथों सौंप दिया और उनसे दया और रक्षा की याचना करने लगे। इसके कुछ क्षणों बाद ही, वहाँ एक अत्यंत रोमहर्षक घटना घटी। भाई-बहन की आतुर याचना सुनकर अचानक से धरती फटी और दोनों भाई बहन एक पल में उसमें समा गए। कहा जाता है, कि इसके बाद वहाँ उपस्थित डोली उठाने वाले कुम्हारों ने भी पास के एक कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी।

कालांतर में उस स्थान पर दो बरगद के पेड़ उगे और देखते ही देखते, पूरी जगह में फैल गए। यह दो विशालकाय वट वृक्ष, तब से उन दोनों भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक माने जाते हैं। इसके कुछ समय बाद स्थानीय लोगों ने यहाँ भाई-बहन के पिंड के रूप में, इस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण भी करवाया। कहा जाता है, कि दोनों वट वृक्ष एक अनूठी मुद्रा में यहाँ उपस्थित हैं, जिसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है, कि दोनों पेड़ एक दूसरे से लिपटे हुए हों। उन पेड़ों को देखकर ऐसा लगता है, कि दोनों एक दूसरे से लिपट कर एक दूसरे की रक्षा करने का प्रयास कर रहे हैं।

भाई-बहन के बलिदान और उन पर हुई ईश्वर कृपा का प्रतीक यह स्थल और यहाँ स्थित मंदिर, दोनों से ही सभी लोगों की अटूट आस्था जुड़ी हुई है। क्योंकि इतिहास में इस बात का उल्लेख है, कि भीखाबांध गाँव में यह घटना रक्षा बंधन से दो दिन पहले घटी थी। इसलिए प्रत्येक वर्ष, यहां रक्षा बंधन के दो दिन पहले से ही पूजा शुरू हो जाती है। भाई-बहन के सोनार जाति के होने के कारण, सबसे पहले इसी जाति के लोगों द्वारा यहाँ पूजा की जाती है। वहीं यहाँ रक्षा बंधन के दिन उन दोनों बरगद के पेड़ों पर भी रक्षा सूत्र बांधा जाता है। इतना ही नहीं, भाई-बहन की स्मृति में बने स्मारक पर राखी चढ़ाकर बहनें उस राखी को अपनी भाई की कलाई पर बांधा करती हैं।

तो आपने जाना एक ऐसी ऐतिहासिक धरोहर के बारे में, जिसकी कथा रक्षा बंधन के पावन पर्व के साथ जुड़ी हुई है। ऐसी ही रोचक और धर्म से जुड़ी अनंत कथाओं के बारे में जानने के लिए श्रीमंदिर वेबसाइट पर उपलब्ध अन्य कहानी व कथाओं को अवश्य पढ़ें।


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