शनि जयंती कथा (Shani Jayanti Katha)
शास्त्रों में न्याय के देवता कहे जाने वाले शनि देव के जन्म से जुड़ी गाथा का बहुत महत्व है। शनि देव की जन्म कथा के बारे में हमें पुराणों में अलग-अलग वर्णन मिलते हैं। शास्त्रों की मानें तो शनि देव का जन्म ज्येष्ठ माह की अमावस्या को हुआ था। तो वहीं कुछ ग्रंथों के अनुसार, इनका जन्म भाद्रपद माह की शनि अमावस्या को भी होना बताया गया है। शनि देव भगवान सूर्य और छाया के पुत्र हैं। सूर्य के अन्य पुत्रों से शनि का स्वभाव विपरीत है। उन्हें एक क्रूर ग्रह के रूप में भी जाना जाता है। कहते हैं, उनकी दृष्टि में जो क्रूरता है, वह उनकी पत्नी के शाप के कारण है। हालांकि, शनि देव जितने उग्र स्वभाव के हैं, वे उतने ही दयालु प्रवृत्ति के भी हैं।
शनि जयंती की कथा (Shani Jayanti Ki Katha)
कहते हैं, एक समय सूर्यदेव जब गर्भाधान के लिए अपनी पत्नी छाया के पास गए तो छाया ने सूर्य के प्रचंड तेज से भयभीत होकर अपनी आंखें बंद कर ली थी। कालांतर में छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म हुआ। शनिदेव के काले रंग को देख भगवान सूर्य ने अपनी पत्नी पर आरोप लगाया कि शनि उनका पुत्र नहीं है।
भगवान सूर्य के आरोप से नाराज शनिदेव अपने पिता को ही शत्रु मान बैठे। भगवान सूर्य के आरोप से शनिदेव की माँ भी नाराज हुईं और उन्होंने इच्छा जताई कि उनका पुत्र सूर्य देव से भी ज्यादा शक्तिशाली और पूज्य बने। अपनी माँ की इच्छा पूरी करने के लिए शनि देव ने वर्षों तक भूखे-प्यासे रहकर शिव की आराधना की। शनिदेव की तपस्या से प्रसन्न शिवजी ने उनसे वर मांगने को कहा, जिसके बाद शनिदेव ने कहा- युगों-युगों से मेरी माँ छाया की पराजय होती रही है, उसे मेरे पिता सूर्यदेव द्वारा बहुत प्रताड़ना सहनी पड़ी है, इसलिए मेरी माँ की इच्छा है कि मैं अपने पिता से भी ज्यादा शक्तिशाली बनूं।
भगवान शिव ने शनिदेव की बातें सुन उन्हें वरदान देते हुए कहा, नवग्रहों में तुम्हारा स्थान सर्वश्रेष्ठ होगा। तुम पृथ्वीलोक के न्यायाधीश और दंडाधिकारी रहोगे। साधारण मानव से लेकर देवता, असुर, सिद्ध और नाग भी तुम्हारे नाम से भयभीत रहेंगे।
यही कारण है कि कहा जाता है कि जब किसी पर शनिदेव का प्रकोप होता है तो वो मनुष्य बर्बाद हो जाता है। और जब शनिदेव की कृपा किसी मनुष्य पर होती है तो वह रातों-रात धन-धान्य, यश वैभव से परिपूर्ण हो जाता है।