शीतला सातम व्रत की कथा

शीतला सातम व्रत की कथा

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शीतला सातम व्रत कथा (Sheetala Saptami Vrat Katha)

बहुत समय पहले की बात है, एक बूढ़ी औरत और उसकी दो बहुओं ने शीतला माता का व्रत रखा था। लेकिन दोनों बहुओं ने सुबह उठकर ताज़ा खाना बना लिया और जब इस बारे में सास को पता चला, तो वह अपनी बहुओं पर बहुत गुस्सा हुई, क्योंकि इस दिन बासी भोग चढ़ाने और खाने की परंपरा है।

इसके कुछ ही समय बाद, अचानक से दोनों बहुओं की संतानों की मृत्यु हो गई। ऐसा देखकर, सास ने गुस्से में अपनी दोनों बहुओं को घर से बाहर निकाल दिया और बोला जब यह दोनों बच्चे जीवित हो जाएं, तब ही तुम दोनों घर वापिस आना।

अपने बच्चों के शवों को लेकर दोनों बहुएं घर से निकल गईं और बीच रास्ते विश्राम के लिए रुकीं, जहां उन्हें दो बहनें ओरी और शीतला मिलीं। वह दोनों ही अपने सिर में जुओं से बहुत परेशान थीं। उनकी ऐसी दशा देखकर उन दोनों बहुओं को बहुत दया आई और वह शीतला और ओरी नामक बहनों के सिर को साफ़ करने लगीं, जिसकी वजह से उन दोनों को बहुत आराम मिला।

शीतला और ओरी की मदद करने पर दोनों बहनों ने बहुओं आशीर्वाद देते हुए कहा, कि “तुम्हारी गोद हरी हो जाए।” यह सुनकर दोनों बहुएं अपने बच्चों के शव को देखकर रोने लगीं। तब शीतला माता ने उन्हें बताया, कि उन्हें उनके कर्मों का फल मिला है और अंत में उन दोनों बहुओ को शीतला अष्टमी के दिन ताज़ा खाना बनाने की गलती समझ में आई और उन्होंने माता से माफी मांगी।

साथ ही उन्होंने यह भी वचन दिया, कि वह आगे से ऐसा कभी नहीं करेंगी। यह सुनकर माता शीतला ने दोनों बच्चों को पुनः जीवित कर दिया और इसी के बाद से, पूरे गांव में शीतला माता का व्रत और उत्सव मनाया जाने लगा।

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