वरूथिनी एकादशी की कथा

वरूथिनी एकादशी की कथा

भगवान विष्णु सभी संकटों से छुटकारा दिलाते हैं


बरूथिनी एकादशी की कथा (Varuthini Ekadashi Ki Katha)

क्या आप एक ऐसे व्रत के बारे में जानते हैं? जिसके करने से ही व्यक्ति को तमाम समस्याओं से मुक्ति मिलती है, समस्त प्रकार के पाप भी मिट जाते हैं। और व्यक्ति को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है? अगर नहीं तो ये लेख अंत तक अवश्य पढ़ें। दरअसल हम बात कर रहे हैं वरूथिनी एकादशी व्रत की। वैशाख महीने में कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है। जो कि भगवान विष्णू को समर्पित है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने वरुथिनी एकादशी व्रत का महत्व युधिष्ठिर को बताया था।

बरूथिनी एकादशी व्रत कथा (Varuthini Ekadashi Vrat Katha)

एक समय की बात है मान्धाता नाम के राजा का नर्मदा नदी के तट पर राज्य था। राजा की रुचि धार्मिक कार्यों में हमेशा रहती थी। इसके कारण वो हमेशा भगवान की भक्ति में लीन रहते थे। एक बार राजा मान्धाता जंगल में तपस्या कर रहे थे। तभी एक जंगली भालू वहां पर आ गया और राजा का पैर चबाने लग गया। लेकिन राजा तनिक भी इस घटना से भयभीत नहीं हुए और उन्होंने अपनी तपस्या जारी रखी। लेकिन भालू राजा का पैर चबाते चबाते उनको घसीटकर पास के जंगल में ले जाने लगा। उस दौरान राजा ने भगवान विष्णु जी से प्रार्थना की। राजा की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने भालू का अंत कर दिया।

लेकिन भालू राजा का पैर खा चुका था जिससे राजा मान्धाता इस बात को लेकर बहुत परेशान थे। राजा का दुख देखकर भगवान विष्णु ने उनसे कहा कि इस भालू ने जो तुम्हें काटा है वो तुम्हारे पिछले जन्म का अपराध था। लेकिन 'हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाकर वरुथिनी एकादशी के व्रत का पालन करो और मेरी वराह अवतार प्रतिमा की पूजा अर्चना करो। उनके प्रभाव से तुम पुन: सुदृढ़ अंगो वाले हो जाओगे।

भगवान की आज्ञा मानकर राजा ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक व्रत का पालन किया। इसके प्रभाव से वह सुंदर और संपूर्ण अंगो वाला हो गया। इस प्रकार से वरुथिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से राजा माधान्ता को उनके कष्टों से मुक्ति प्राप्त हुई।

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