खाटू श्याम जी की कथा

खाटू श्याम जी की कथा

दुख और संकट होंगे दूर


खाटू श्याम जी की कथा (Khatu Shyam Ji Ki Katha)

जय श्री श्याम! आइए पढ़ते हैं खाटू श्याम बाबा की कथा (Khatu Shyam Baba Ki Katha) श्री मंदिर पर।

भारत के सबसे प्रसिद्ध कृष्ण मंदिरों में से एक खाटू श्याम जी का मंदिर मुख्य रूप से बर्बरीक नामक महाभारत के दानव को समर्पित है। इसीलिए खाटू श्याम जी की जीवन कथा की शरुआत महाभारत से शुरू होती है। आपको बता दें कि पहले खाटू श्याम जी का नाम बर्बरीक था। वे बलवान गदाधारी भीम और नाग कन्या मौरवी के पुत्र थे। बचपन से ही उनमें वीर योद्धा बनने के सभी गुण थे। उन्होंने युद्ध करने की कला अपनी मां और श्रीकृष्ण से सीखी थी। उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या करके तीन बाण प्राप्त किए। ये तीनों बाण उन्हें तीनों लोकों में विजयी बनाने के लिए काफी थे। एक बार जब उन्हें पता चला कि कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध होने वाला है, तो उन्होंने भी युद्ध में शामिल होने की इच्छा जताई। इसके लिए जब वे अपनी मां के पास आशीर्वाद लेने पहुंचे तो उन्होंने हारे हुए पक्ष की ओर से युद्ध लड़ने का वचन दिया।

जब उन्हें बर्बरीक के इस वचन का पता चला तो वे ब्राह्मण का रूप धारण कर उनका मजाक उड़ाने लगे और कहने लगे कि वे तीन बाण से क्या युद्ध लड़ेंगे। तब बर्बरीक ने कहा कि उनका एक बाण ही शत्रु सेना को मारने के लिए काफी है, ऐसे में अगर उन्होंने तीन तीरों का इस्तेमाल किया तो ब्रह्मांड का विनाश हो जाएगा। ये जानकर भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को चुनौती दी कि पीपल के इन सभी पत्तों को वेधकर बताओ। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की। उनकी परीक्षा लेने के लिए श्रीकृष्ण ने एक पत्ती अपने पैरों के नीचे दबा ली। बर्बरीक ने एक बाण से सभी पत्तियों पर निशान कर दिए और श्रीकृष्ण के पैरों के पास चक्कर लगाने लगे और श्रीकृष्ण से कहा कि एक पत्ता आपके पैर के नीचे दबा हुआ है, अपने पैर हटा लीजिए वरना आपके पैरों पर चोट लग जाएगी।

इसके बाद श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि वे युद्ध में किसकी तरफ से शामिल होंगे। बर्बरीक ने जवाब दिया कि जो पक्ष हारेगा वे उनकी तरफ से युद्ध लड़ेंगे। श्रीकृष्ण को ज्ञात था कि युद्ध में हार तो कौरवों की होनी है, ऐसे में अगर बर्बरीक ने उनके साथ यद्ध लड़ा तो गलत परिणाम सामने आ सकते हैं। उन्होंने बर्बरीक को रोकने के लिए उनसे दान की मांग व्यक्त की। दान में उन्होंने बर्बरीक का सिर मांगा। बर्बरीक ने कहा कि मैं दान जरूर दूंगा। उन्होंने श्रीकृष्ण के चरणों में अपना सिर काट कर रख दिया और उनसे आखिरी इच्छा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि वे महाभारत का युद्ध अंत तक अपनी आंखों से देखना चाहते हैं। श्रीकृष्ण ने उनकी इच्छा स्वीकार करते हुए बर्बरीक के सिर को युद्ध वाली जगह पर एक पहाड़ी के ऊपर रख दिया जहां से बर्बरीक ने अपनी आंखों से अंत तक महाभारत युद्ध देखा। युद्ध के बाद पांडव लड़ने लगे कि युद्ध में जीत का श्रेय किसको जाता है। तब बर्बरीक ने कहा कि श्रीकृष्ण के कारण वे युद्ध जीते हैं। श्रीकृष्ण बर्बरीक के इस बलिदान से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें कलयुग में श्याम के नाम से पूजे जाने का अनमोल वचन दिया।

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