उत्पन्ना एकादशी की पौराणिक कथा

उत्पन्ना एकादशी की पौराणिक कथा

प्राप्त होगी भगवान विष्णु की असीम कृपा


उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा (Utpanna Ekadashi Vrat Katha )

यह तो हम सभी जानते हैं कि एकादशी व्रत को हिंदू धर्म में पापनाशिनी और मोक्षदायनी बताया गया है। इसके पुण्यफल को सभी अन्य धार्मिक अनुष्ठानों की अपेक्षा अधिक माना जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि एकादशी व्रत की शुरूआत किस प्रकार हुई और आखिरकार इस व्रत को इतना महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है, आइए इस लेख में इन सभी प्रश्नों के उत्तर जानते हैं।

उत्पन्ना एकादशी की व्रत कथा (Utpanna Ekadashi Vrat Ki Katha )

एक दिन अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा कि, “हे माधव आपने मुझे बताया है कि सहस्त्र यज्ञ करने से जो फल मिलता है, उसकी तुलना में एकादशी व्रत का पुण्य फल कई गुना अधिक है। आप कृपया करके मुझे ये बताएं कि यह एकादशी इतनी महत्वपूर्ण और पुण्यदायनी क्यों होती है।

इस प्रश्न के उत्तर में श्रीकृष्ण बोलते हैं कि, “हे अर्जुन! अगर कोई भक्त इस एकादशी व्रत को रखना प्रारंभ करना चाहता है तो उसे मार्गशीष मास में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी से इस व्रत की शुरूआत करनी चाहिए। इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है।”

इसके पश्चात् भगवान श्रीकृष्ण ने इससे जुड़ी हुई पौराणिक कथा को कहना शुरू किया, चलिए हम भी उस कथा का आस्वादन करते हैं-

सतयुग में मुर नामक एक भयंकर और क्रूर राक्षस हुआ करता था। उसने अपने बल और आतंक से इंद्रदेव सहित समस्त देवताओं को पराजित करके अपने नियंत्रण में कर लिया था।

इस भयंकर स्थिति से बाहर निकलने का उपाय खोजने के उद्देश्य से सभी देवता ब्रह्म देव की अध्यक्षता में भगवान शिव की शरण में पहुंचे।

शिव जी के पास समस्त देवतागण अपनी रक्षा की गुहार लगाते हुए इस समस्या से उन्हें बाहर निकालने की प्रार्थना करते हैं।

शिव जी उन्हें बताते हैं कि “इस विषम परिस्थिति में केवल भगवान विष्णु आपकी सहायता कर सकते हैं, इसलिए आप सभी उनकी शरण में जाएं।” इसके पश्चात् देवतागण अपनी यह गुहार लेकर क्षीरसागर में भगवान विष्णु के पास पहुंच जाते हैं।

वहां जाकर वह श्रीहरि से प्रार्थना करते हैं कि, हे प्रभु, आप तो सदैव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं, आज हम अपनी रक्षा की प्रार्थना लेकर आपके पास आए हैं।

भगवान विष्णु उनसे पूछते हैं कि आप देवताओं को किसने इस प्रकार आतंकित कर रखा है जो आपको अपनी रक्षा की प्रार्थना मुझसे करनी पड़ रही है।

इस प्रश्न के उत्तर में देवतागण भगवान विष्णु को बताते हैं कि, हे भगवन! इंद्रावती नगरी में रहने वाले मुर नामक एक दैत्य ने अपने आतंक से तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया है। उसने सभी देवताओं को भी परास्त कर दिया है, इसलिए हम लोग महादेव के कहने पर आपसे सहायता मांगने आए हैं।

यह सुनकर भगवान श्रीहरि क्रोधित हो उठते हैं और सभी देवताओं को आश्वस्त करते हुए कहते हैं कि वह सृष्टि को इस दैत्य के पापों से मुक्त करने के लिए इंद्रावती पर आक्रमण करेंगे।

जब मुर ने भगवान विष्णु को देवताओं की सेना के साथ अपनी नगरी की ओर आते हुए देखा, तो वह भी अपनी सेना के साथ युद्ध के लिए तैयार हो गया।

भगवान विष्णु और मुर दैत्य के बीच भयंकर युद्ध होने लगा, भगवान के समक्ष मुर दैत्य की मायावी शक्तियां भी कमज़ोर पड़ती जा रहीं थीं। कई वर्षों तक यह युद्ध ऐसे ही चलता रहा और भगवान विष्णु को जब युद्ध के बीच में निद्रा आने लगती है, तो वह अपनी लीला दिखाते हुए युद्ध क्षेत्र से अदृश्य होकर, बद्रिकाश्रम में हीमावति नाम की एक गुफा में विश्राम करने चले जाते हैं। दैत्य मुर भी उनके पीछे-पीछे आ जाता है और उन्हें निद्रा अवस्था में देखकर उनका वध करने के लिए आगे बढ़ता है।

उसी समय भगवान विष्णु के शरीर के एक दिव्य शक्ति कन्या के रूप में उत्पन्न होती है। वह बिजली के समान तेज़ और सभी अस्त्रों-शस्त्रों से सुसज्जित थी। वह कन्या दैत्य को युद्ध के लिए ललकारती है। उसे देखकर दैत्य मुर भी अचंभित हो जाता है और उसकी ललकार को सुनते ही, वह भगवान विष्णु को छोड़कर उस कन्या से युद्ध करने लगता है।

वह कन्या पहले तो मुर के सभी शस्त्र नष्ट करती है और फिर उसके सिर को धड़ से अलग करके उसका वध कर देती है। जब भगवान विष्णु निद्रा से उठते हैं तो देखते हैं कि मृत शरीर भूमि पर पड़ा हुआ है और एक दिव्य कन्या उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हुई है। भगवान ने उस कन्या से पूछते हैं कि, “आप कौन है और आपने इसका वध क्यों किया?”

भगवान श्रीहरि के प्रश्न के उत्तर में वह कन्या बोलती है कि, “हे प्रभु, मैं आपके दिव्य शरीर से ही उत्पन्न हुई हूँ, और यह दैत्य आपका वध करना चाहता था, इसलिए मैंने इसका वध कर दिया।

इस बात पर भगवान विष्णु प्रसन्न होकर बोलते हैं कि “आपने सभी देवताओं और पूरी सृष्टि को इस पापी दैत्य के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई है। मैं आपके पराक्रम से अत्यंत प्रसन्न हूँ, मैं वरदान देता हूँ कि,आप मेरे ही अंश से आध्यात्मिक शक्ति के रूप में ‘मार्गशीष मास’ की कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्न हुईं हैं। इस कारण आपको उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाएगा। आज से प्रत्येक एकादशी पर मेरे साथ आपकी पूजा की जाएगी। जो भी व्यक्ति इस दिन उपवास व पूजा-पाठ करेगा, उसके समस्त पापों का नाश हो जाएगा और उसे धार्मिक मनोवृत्ती, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होगी।”

श्रीकृष्ण कथा का अंत करते हुए बोलते हैं कि इस प्रकार एकादशी व्रत का प्रारंभ हुआ और यह व्रत सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला है।

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