पौष पुत्रदा एकादशी की कथा (Paush Putrada Ekadashi Vrat Katha)
धर्मराज युधिष्ठिर अपनी जिज्ञासा के साथ एक बार फिर भगवान कृष्ण के समक्ष उपस्थित थे। उन्होंने पूछा कि “हे श्री कृष्ण! पौष मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या महात्म्य है, और इसकी कथा क्या है? कृपा करके मुझे बतलाएं।”
इस पर श्रीकृष्ण ने कहा कि हे धर्मराज, ध्यान से सुनिए पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसके जैसी शुभ तिथि त्रिलोक में और कोई नहीं।
प्राचीन काल में भद्रावती नगरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम चंपा था। हर धर्म का पालन करने के बाद भी दोनों राजा-रानी कई समय तक निःसंतान रहे। उनके वंश को आगे बढ़ाने वाला कोई नहीं था। यही कारण था कि राजा-रानी बहुत दुखी और चिंता में डूबे रहते थे।
लेकिन हे युधिष्ठिर! यहां सिर्फ राजा और रानी ही दुखी नहीं थे। राजा के पितृ भी अपने वंश वृद्धि में आ रही बाधा से दुखी थे और वह आपस में बात करते थे कि “हम अभागों के भाग्य में अपने वंशजों से तर्पण का सुख पाना नहीं लिखा है।”
एक दिन दुखी होकर राजा बिना किसी को बताए घने वन में चले गए। वन में जहाँ-तहाँ उन्हें शेर, भालू और हिरण जैसे अनेक प्राणी दिखाई दे रहे थे। कहीं दूर से सियार की बोली भी कानों में पड़ रही थी। पक्षियों का कलरव उस घने जंगल में गूंज रहा था। यह देखकर राजा कुछ देर के लिए अपना दुःख भूल गए।
थोड़ी देर में राजा को प्यास सताने लगी। बहुत ढूंढ़ने के बाद राजा को एक सरोवर दिखाई दिया, जिसके पास में बहुत से ऋषि-मुनियों के आश्रम थे। वे सभी ऋषि विश्वेदेव थे, राजा वहां को चल दिए।
वहां जाते-जाते राजा को ऐसा आभास हो रहा था कि कुछ शुभ होने वाला है। राजा ने उस सरोवर के पास पहुंचकर पहले जल पिया और फिर पहुंच गए मुनियों की शरण में!
राजा सुकेतुमान ने सभी मुनियों को हाथ जोड़कर नमन किया और फिर अपना दुःख उन्हें कह सुनाया, इसके बाद राजा ने मुनियों से उनकी सहायता करने का आग्रह किया।
उनकी यह प्रार्थना सुनकर मुनियों ने कहा कि अभी माघ मास चल रहा है और पौष मास शुरू होने को है। पौष मास अपने पितरों को तर्पण देने का विशेष अवसर होता है। इस मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पौष पुत्रदा एकादशी कहलाती है।
यह संतान का आशीर्वाद देने वाली तिथि है, इसीलिए आप और आपकी पत्नी इस व्रत का पालन करें। श्री हरि आप पर अवश्य कृपा करेंगे।
मुनियों से यह सुनकर राजा ने उन्हें बारम्बार प्रणाम किया और महल की ओर चल दिए। महल पहुंचकर उन्होंने रानी को सारी बात बताई।
अगले माह में जब पौष पुत्रदा एकादशी की तिथि आई, तब राजा-रानी ने पूरे समर्पण के साथ विधिवत इस व्रत का पालन किया और द्वादशी पर पूजा करने के बाद पारण किया।
हे धर्मराज! इस व्रत के पुण्य प्रभाव से रानी चंपा गर्भवती हुई। और एक तेजस्वी बालक को जन्म दिया। वह बालक अपने पिता की तरह धर्मनिष्ठ राजा सिद्ध हुआ। इस बालक के द्वारा किये तर्पण से राजा सुकेतुमान के पितृ प्रसन्न हुए और उन्हें ढेर सारा आशीर्वाद देकर स्वर्ग की ओर चल दिए।
हे युधिष्ठिर! यह है पौष पुत्रदा एकादशी की कथा। पौष पुत्रदा एकादशी के दिन इस कथा को सुनने से आपको अग्निष्टोम यज्ञ का फल प्राप्त होगा।