तुला संक्रान्ति की कथा (Tula Sankranti Katha)
स्कंद पुराण में कावेरी की उत्पत्ति के संबंध में एक कथा का वर्णन है, उसी कथा का संबंध तुला संक्राति से भी है, चलिए जानते हैं क्या है यह कथा- माना जाता है, ब्रह्मा जी की विष्णु माया नामक एक पुत्री थी, जिसने अगले जन्म में कावेरा ऋषि की बेटी के रूप में जन्म लिया। कावेरा मुनि ने ही विष्णु माया को कावेरी नाम दिया था। जैसे-जैसे कावेरी बड़ी हुई तो वह बहुत ही सुन्दर व रूपवान हो गई। एक दिन कावेरी को ऋषि अगस्त्य ने देखा तो उन्हें कावेरी से प्रेम हो गया और उन्होंने कावेरा ऋषि के पास जाकर कावेरी से शादी का प्रस्ताव रखा।
इस शादी के प्रस्ताव के लिए कावेरा मुनि मान गऐ और कावेरी की शादी अगस्त्य मुनि से करवा दी। शादी हाेने के पश्चात्, अगस्त्य मुनि अपनी पत्नी कावेरी को अपने साथ लेकर अपने आश्रम चले आऐ। एक दिन अगस्त्य मुनि अपने काम में इतने व्यस्त हो गऐ की वो अपनी पत्नी कावेरी से मिलना ही भूल गऐ। इस कारण दुखी होकर कावेरी अगस्त्य मुनि के स्नान करने की जगह पर गिर जाती हैं, और एक नदी का रूप धारण कर इस पृथ्वी पर उद्धृत होती है। इस नदी को ही कावेरी के नाम से जाना गया। मान्यता है कि जिस दिन कावेरी नदी का अवतरण हुआ, उस दिन को ही कावेरी संक्रमण या तुला संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। चूंकि यह नदि तमिलनाडु और कर्नाटक से होकर गुज़रती है और वहां के लोगों के जनजीवन को प्रभावित करती है, इसलिए इन राज्यों में इस पर्व को विशेष रूप से मनाया जाता है।