योगिनी एकादशी की कथा (Yogini Ekadashi Katha )
सभी एकादशी तिथियों की तरह आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली योगिनी एकादशी भी विशेष फलदाई मानी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी पर व्रत रखने व भगवान विष्णु की उपासना करने, व कथा सुनने से उतना फल प्राप्त होता है, जितना पुण्य 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात मिलता है।
**कथा ** महाभारत काल के समय एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से सभी एकादशी तिथियों के व्रत का माहात्म्य सुन रहे थे। उन्होंने कृष्ण जी से आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का महात्म्य सुनाने का आग्रह किया। इसपर भगवान कृष्ण बोले- हे युधिष्ठिर! आषाढ़ कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का नाम योगिनी एकादशी है। इस एकादशी के दिन जो जातक विधिवत् उपवास रखते हैं, भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। व्रती को अपने जीवन में सभी तरह का सुख- सौभाग्य मिलता है, और अंत समय में मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्री कृष्ण आगे कहने लगे- हे धर्मराज! मैं योगिनी एकादशी से जुड़ी एक कथा सुनाता हूं, ध्यानपूर्वक सुनो-
स्वर्गलोक में अलकापुरी नाम का एक नगर था, जिसमें राजा कुबेर राज करते थे। वह धर्म कर्म में बड़ी आस्था रखते थे, और भगवान शिव की उपासना करते थे। किसी भी परिस्थिति में वो भगवान शिव की पूजा को नहीं टालते थे। हेम नाम का एक माली था, जो राजा के पूजा करने के लिए फूल चुन कर लाता था। वो हर दिन पूजा से पहले राजा कुबेर को फूल दे जाया करता। माली हेम की पत्नी का नाम विशालाक्षी था, जिसे वो बहुत प्रेम करता था। एक दिन कुछ यूं हुआ कि जब हेम फुलवारी से फूल चुनकर लौट रहा था, तब उसे अपनी पत्नी की याद आई। उसने सोचा कि अभी पूजा में तो बहुत समय है, तब तक क्यों न घर जाकर पत्नी को देख आया जाए।
ये सोचकर वो राजा को फूल देने जाने के बजाय अपने घर की ओर चल पड़ा। घर पहुंचकर जब हेम ने अपनी सुंदर पत्नी को देखा तो खुद को काबू न कर पाया और उसके साथ भोग विलास करने लगा। उधर पूजा का समय निकलता जा रहा था, और राजा कुबेर पुष्प न मिलने के कारण बड़े चिंतित थे।
जब पूजा का समय समाप्त हो गया और माली पुष्प लेकर नहीं पंहुचा तो राजा कुबेर ने क्रोधित होकर अपने सैनिकों को उसका पता लगाने का आदेश दिया। जब सैनिकों वापस आकर हेम के भोग विलास में लिप्त होने की बात बताई, तो यह सुनकर राजा का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया। उन्होंने सैनिकों को तुरंत हेम को पकड़ कर लाने का आदेश दिया। सैनिक माली को उसके घर से पकड़ कर राजा के सामने ले आए। वो कांपते हुए राजा कुबेर के सामने उपस्थित हुआ। कुबेर ने हेम को देखते ही क्रोधित होकर कहा- हे नीच, तूने भोग विलास के में लिप्त होकर भगवान शंकर का अनादर किया है! हे महापापी! जा, मैं तुझे श्राप देता हूं कि तू स्त्री वियोग में तड़पेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा।
राजा कुबेर के श्राप के कारण माली हेम भूतल पर पहुंच गया और कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गया। स्वर्ग में रहने के कारण उसे दुख सहने का कोई अनुभव नहीं था, किंतु पृथ्वी पर उसे भूख-प्यास कोढ़ जैसे भयानक रोग का सामना करना पड़ रहा था। उसे इन दुखों से मुक्त होने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। भटकते भटकते एक दिन हेम मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंचा। ये आश्रम स्वर्गलोक में ब्रह्मा जी के आश्रम के समान था, जिसकी शोभा देखते ही बनती थी।
माली आश्रम में जाकर महर्षि के चरणों में गिर पड़ा, और उन्हें अपने श्रापग्रस्त होने का कारण बताया। इस पर ऋषि मार्केंडय ने कहा- हे माली! तुमने मुझसे सत्य बोला, और तुम्हें अपनी भूल पर पछतावा है, इसलिये मैं तुम्हें इस श्राप से मुक्त होने का एक उपाय बताता हूं। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में योगिनी एकादशी पड़ती है। यदि तुम इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत करोगे, और भगवान विष्णु की उपासना करोगे तो निश्चित ही तुम्हारे सभी पापकर्म नष्ट हो जाएंगें।
पापमुक्त होने का उपाय जानकर माली ने महर्षि को साष्टांग प्रणाम किया और उनके निर्देश के अनुसार ही योगिनी एकादशी के व्रत का पालन किया। हेम पर इस व्रत के प्रभाव के कारण भगवान विष्णु की कृपा हुई, और उसे राजा कुबेर द्वारा दिए गए श्राप से छुटकारा मिल गया। इसके बाद वो अपने वास्तविक रूप में स्वर्गलोक जाकर अपनी पत्नी के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।