**विजया एकादशी की व्रत कथा (Vijaya Ekadashi Vrat Katha)
** शास्त्रों के अनुसार, पौराणिक काल में भगवान विष्णु के अवतार श्री रामचंद्र को 14 वर्षो का वनवास प्राप्त हुआ और वे अपनी पत्नी सीता एवं अनुज लक्ष्मण सहित वनवासी हुए। उसी दौरान भगवान राम और लक्ष्मण जी की अनुपस्थिति में अधर्मी रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया।
जब माता सीता को खोजते हुए श्रीराम जी सागर तट पर पहुंचे, तो उन्हें वहां ‘जटायु’ नामक एक पक्षी मिला। ‘जटायु’ ने श्री राम जी को बताया कि सीता माता को लंका नगरी का राजा ‘रावण’ बलपूर्वक अपहरण करके ले गया है।
यह सुनते ही श्रीरामजी दुःख एवं क्रोध से भर उठे और माता सीता को वापस लाने के लिए अपनी वानर सेना के साथ लंका पर आक्रमण की तैयारी करने लगे परंतु समुद्र के दुर्गम मार्ग से होकर लंका तक पहुंचना इतना आसान नहीं था।
अतः श्री राम लंका तक जाने का उपाय खोजने लगे। तब उन्होंने लक्ष्मण जी से पूछा कि “हे अनुज इस महासागर को पार करने का कोई उपाय यदि तुम्हारे पास हो तो बताओ।”
तब श्री रामचन्द्र जी की बात सुनकर लक्ष्मण बोले कि “हे भैया, आप स्वयं अन्तर्यामी है और कोई भी तथ्य आपसे छिपा नहीं है। फिर भी यदि आप पूछते हैं तो मैं कहना चाहता हूँ कि यहाँ से थोड़ी दूरी पर परम ज्ञानी संत वाकदाल्भ्य जी का निवास है। वे अवश्य ही इस समस्या का हल जानते होंगे। हमें इस बारे में उनसे परामर्श लेना चाहिए।”
इसके बाद भगवान श्रीराम वाकदाल्भ्य संत के आश्रम पहुंचे और उन्हें नमन करते हुए अपनी दुविधा उनके समक्ष प्रस्तुत की। तब संत वाकदाल्भ्य ने कहा “हे श्री राम, आप फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करें, इस व्रत के प्रभाव से आप निश्चित ही सागर को पार कर लेंगे और दुराचारी रावण को परास्त कर माता सीता को पुनः प्राप्त करेंगे।
इस प्रकार श्री राम जी ने संत वाकदाल्भ्य के कहे अनुसार पूर्ण विधि विधान से एकादशी का व्रत रखा और इस व्रत के ही प्रभाव से वानर भाइयों नल-नील एवं वानर सेना के सहयोग से सागर पर पत्थरों का विशाल सेतु निर्मित किया और अंत में समुद्र को पार कर लिया।
इसके बाद युद्ध क्षेत्र में श्री राम और रावण के मध्य भीषण युद्ध हुआ जिसमें भगवान राम के हाथों रावण का वध हुआ और श्री राम का माता सीता से पुनर्मिलन हुआ।
इस प्रकार विजया एकादशी व्रत के महाफल से ही भगवान राम की रावण पर विजय हुई अर्थात अधर्म पर धर्म की महाविजय हुई।
उस समय से ही, श्रद्धालु विजया एकादशी के व्रत को अत्यंत समर्पण एवं भक्तिभाव के साथ रखते हैं। साथ ही विजया एकादशी की विजय कथा सुनकर अपने व्रत को सफल बनाते हैं।