सातवां श्राद्ध

सातवां श्राद्ध

29 सितम्बर, 2023 जानें श्राद्ध के सातवें दिन का महत्व


श्राद्ध का सातवां दिन (Seventh Day of Shraddha)

श्राद्ध के सातवें दिन उन लोगों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिनकी मृत्यु सप्तमी तिथि को हुई हो । सप्तमी तिथि के दिन श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को महान यज्ञों के बराबर पुण्यफल प्राप्त होता है और वह श्रेष्ठ विचारों का धनी भी होता है।

सातवें श्राद्ध का महत्व (Importance of seventh Shraddha)

पितृ पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन सात ब्रह्मणों को भोजन कराने का विधान है। बता दें की इसके साथ ही 16 वेदी नामक तीर्थ पर श्राद्ध करने का भी विधान है। इस दिन यहां पर छह वेदियों पर पिंडदान किया जाता है। ये 6 वेदियां है अगस्त, क्रौंच, मतंग, चंद्र, और कार्तिक। धार्मिक मान्यता के अनुसार सप्तमी तिथि को इस छह वेदियों पर पिंडदान करने से पितरों को शांति प्राप्त होती है। इसलिए सप्तमी का श्राद्ध बेहद खास होता है।

सातवें श्राद्ध की तिथि और शुभ मुहूर्त (Date and auspicious time of seventh Shraddha)

सप्तमी श्राद्ध - सातवां श्राद्ध सप्तमी तिथि आरम्भ - 05 अक्टूबर, 2023 को सुबह 05:41 बजे सप्तमी तिथि ख़त्म - 06 अक्टूबर, 2023 को सुबह 06:34 बजे

सप्तमी श्राद्ध बृहस्पतिवार, 5 अक्टूबर, 2023 का शुभ मुहूर्त कुतुप मूहूर्त - सुबह 11:46 बजे से दोपहर 12:33 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट रौहिण मूहूर्त - दोपहर 12:33 बजे से दोपहर 01:20 बजे तक अवधि - 00 घण्टे 47 मिनट अपराह्न काल - दोपहर 01:20 बजे से दोपहर 03:42 बजे तक
अवधि - 02 घण्टे 21 मिनट

सातवें श्राद्ध की कहानी (Story of Seventh Shraddha)

गयासुर नाम का एक असुर था। पौराणिक कथा के अनुसार गयासुर ने भगवान विष्णु जी से वरदान पाने के लिए घोर तप किया। तप से प्रसन्न होकर विष्णु जी प्रकट हुए और वर मांगने को कहा तो गयासुर ने कहा कि श्री हरि स्वयं ही उसके शरीर में वास करें। इसके उपरांत कोई भी उसे देखे तो उसके समस्त पाप नष्ट हो जाएँ। और उन्हें स्वर्ग प्राप्त हो। भगवान विष्णु तथास्तु कहकर वापस चले गए। विष्णु जी द्वारा दिए गए इस वरदान से सभी देवतागण चिंतित हो गए। क्योंकि उन्हें डर था कि इससे असुर भी पाप मुक्त हो जाएंगे । सभी देव गण विष्णु जी के पास गए।

विष्णु जी ने सभी देवताओं को आश्वासन दिया और कहा कि गयासुर का अंत जरूर होगा। यह सुनकर देवताओं की चिंता दूर हुई । कुछ दिन के पश्चात् भगवान विष्णु ने गयासुर का वध अपनी गदा से कर दिया। अपनी मृत्यु से पहले गयासुर ने वरदान माँगा कि वह जिस शिला पर अपना देह त्याग रहा है। उस स्थान पर सभी देवता विराजित हो जाएं और यह स्थान मृत्यु के बाद किए जाने वाले धार्मिक कार्यों हेतु सिद्ध स्थल बन जाए। भगवान विष्णु ने गयासुर की यह इच्छा पूर्ण की। वह स्थान गया के नाम से प्रसिद्ध हो गया। आज भी इस स्थान को मृत्यु के बाद किए जाने वाले पिंडदान अथवा श्राद्ध हेतु सबसे सिद्ध माना जाता है। गरुड़ पुराण में यह वर्णित है कि भगवान विष्णु फल्गु के जल में वास करते हैं। इसका कारण फल्गु नदी में आज भी पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। उनके कुल का उद्धार हो जाता है।

सातवें श्राद्ध की विधि (Method of Seventh Shraddha)

  • पौराणिक मान्यता के मुताबिक, सप्तमी श्राद्ध के निमित्त 7 ब्रह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
  • इस दिन श्राद्ध कर्म करते समय कुशा के आसन पर बैठना चाहिए और अपने पितृ के निमित्त भगवान विष्णु के पुरुषोत्तम स्वरूप का ध्यान करते हुए गीता के सातवें अध्याय का पाठ करना चाहिए।
  • साथ ही विशेष पितृ मंत्र का जाप भी करना चाहिए। पिंड बनाने के लिए पके हुए चावल में गाय का दूध, घी, शहद, गुड़ मिलाकर पिंड बना लें।
  • इसे पितरों के शरीर का प्रतीक माना गया है। फिर पिंड पर काला तिल, जौ, सफेद फूल और कुश मिलाकर तर्पण करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मणो को भोजन कराना चाहिए।
  • भोजन का कुछ अंश कुत्ते, गाय, कौआ और चींटी को भी देना चाहिए। इस दौरान यदि आपके घर कोई मांगने के लिए या जरूरतमंद व्यक्ति आया है तो उसे भी अपने सामर्थ के अनुसार दान देना चाहिए।

सातवें श्राद्ध से जुड़े रहस्य (Mysteries related to seventh Shraddha)

मार्कंडेय पुराण के अनुसार श्राद्ध करने से पूर्वज संतुष्ट होते है। वह प्रसन्न होकर धन, सुख और स्वास्थ्य प्रदान करते है। ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध करने से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। सप्तमी श्राद्ध का अनुष्ठान करने हेतु कहा जाता है कि तिरुवरूर के पास कुरुवी रामेश्वरम में पितृ मोक्ष शिव मंदिर सबसे अच्छा स्थान है।

सातवें श्राद्ध में क्या करें(What to do on the seventh Shraddha)

श्राद्ध के लिए भोजन बनाते समय शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए। भोजन में गाय का दूध, दही और घी का उपयोग करना शुभ होता है। अपने पूर्वजों की रूचि का भोजन बनाना चाहिए। श्राद्ध के समय खीर का विशेष महत्त्व रहता है इसलिए श्राद्ध में खीर ज़रूर बनाएं। भोजन में पूरी, कद्दू की सब्जी, आलू की सब्जी, छोले की सब्जी, मिठाई आदि चीजे बनानी चाहिए।

सातवें श्राद्ध में क्या न करें(What not to do in the seventh Shraddha)

  • श्राद्ध का भोजन बनाते समय चप्पल नहीं पहनना चाहिए।
  • भोजन में जूठी चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  • श्राद्ध के समय किसी के प्रति ईर्ष्या भाव नहीं रखना चाहिए और न की किसी को अपशब्द कहना चाहिए।
  • गरुड़ पुराण में यह वर्णित है कि भगवान विष्णु फल्गु के जल में वास करते हैं।
  • श्राद्ध के भोजन में मांस - मदिरा, लहसुन- प्याज, मछली जैसी चीजों का उपयोग करना वर्जित है इसलिए इनका इस्तेमाल भूलकर भी न करें।

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