छिन्नमस्ता जयंती 2025 की तारीख, पूजन विधि, छिन्नमस्ता माता के स्वरूप और उनके तांत्रिक महत्त्व को जानें विस्तार से।
छिन्नमस्ता जयंती माँ छिन्नमस्ता के प्रकट होने की पावन तिथि है, जो तंत्र की दस महाविद्याओं में एक हैं। यह पर्व ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है। माँ छिन्नमस्ता आत्म-बलिदान, शक्ति और आत्मनियंत्रण की प्रतीक हैं। इस दिन साधक तांत्रिक साधनाओं और विशेष पूजा का अनुष्ठान करते हैं।
दस महा विद्याओं में छिन्नमस्तिका माता छठी महाविद्या मानी जाती हैं। ऐसी मान्यता है देवी पार्वती ने एक बार अपनी सहचरियों की क्षुधा को शांत करने के लिए अपना मस्तक काट दिया था, इसी कारण उन्हें छिन्नमस्तिका नाम से जाना जाता है। इस पर्व पर माता के मंदिर या पूजा स्थल को विधिवत् सजाया जाता है, और जातक देवी छिन्नमस्तिका की विशेष उपासना करते हैं।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, छिन्नमस्ता जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह पर्व मई या अप्रैल के महीने में पड़ता है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:05 ए एम से 04:47 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:26 ए एम से 05:29 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:47 ए एम से 12:40 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:28 पी एम से 03:22 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:57 पी एम से 07:18 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:58 पी एम से 08:01 पी एम तक |
अमृत काल | 08:22 पी एम से 10:10 पी एम तक |
निशिता मुहूर्त | 11:52 पी एम से 12:34 ए एम, तक (12 मई) |
रवि योग | 01:27 पी एम से 05:28 ए एम, तक (12 मई) |
देवी छिन्नमस्तिका को प्रचंड चंडिका भी कहा जाता है। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब देवी ने चंडी का रूप धारण कर राक्षसों का संहार किया, तो देवता प्रसन्न होकर चारों दिशाओं में उनका उद्घोष करने लगे। किंतु माता की दो सहायिका योगिनी अजया व विजया की रक्त पिपासा अभी भी शांत नहीं हुई थी। उनकी रुधिर पिपासा को शांत करने के लिए ही माता ने अपना मस्तक काट दिया, जिससे निकलने वाली रक्त की धारा से दोनों योगिनियों ने अपनी रक्त की प्यास मिटाई।
माता छिन्नमस्तिका के अवतार से जुड़ी दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार, देवी पार्वती अपनी दो सहचरियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान के लिए गईं। स्नान से निवृत्त होने के पश्चात् दोनों सहचरियों को भोजन करने की इच्छा हुई। उनकी क्षुधा इतनी तीव्र थी, जिसके कारण उन दोनों का रंग काला पड़ने लगा। इस पर सहचरियो ने मां भवानी से उनकी क्षुधा शांत करने का निवेदन किया। देवी पार्वती ने उनसे कुछ क्षण प्रतीक्षा करने को कहा, किंतु वे दोनों हठ करने लगीं, और माता से विनम्रतापूर्वक कहा, हे माता! मां तो भूखी संतान को अविलंब भोजन प्रदान करती है, कृपया आप शीघ्र ही हमारी क्षुधा शांत करने का कोई उपाय करें।
सहचरियों की विनती सुनकर माता भवानी ने अपने खड़ग से अपना ही शीश काट दिया। कटा हुआ शीश माता की बाईं भुजा में आ गिरा और रक्त की तीन धाराएं बह निकली। दोनों सहचरियां एक-एक धाराओं का पान कर तृप्त हुईं, और तीसरी धारा जो ऊपर की ओर बह रही थी, स्वयं देवी उसका पान करने लगीं, तभी से माता छिन्नमस्तिका के नाम से प्रसिद्ध हुईं।
तो भक्तों, ये तो थी छिन्नमस्तिका जयंती से जुड़ी संपूर्ण जानकारी। हमारी कामना है कि इस पावन पर्व पर आपकी भक्ति व आराधना सफल हो, और देवी छिन्नमस्तिका की कृपा आप पर सदैव बनी रहे। ऐसे ही व्रत, त्यौहारों व धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' पर।
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