
अक्षय नवमी 2025: जानें कब है ये खास दिन! पूजा विधि और शुभ मुहूर्त से पाएं सुख और समृद्धि का आशीर्वाद!
प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी (आंवला नवमी) का पर्व मनाया जाता है। यह हमेशा देवउठनी एकादशी के दो दिन पहले पड़ता है और इस दिन आंवला के पेड़ की पूजा की जाती है। अक्षय नवमी के दिन मथुरा-वृन्दावन की परिक्रमा करना बहुत शुभ माना जाता है। देश के कोने-कोने से भक्त इस दिन मथुरा-वृन्दावन की परिक्रमा करने जाते हैं और लाभ अर्जित करते हैं।
प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी (आंवला नवमी) का पर्व मनाया जाता है। यह हमेशा देवउठनी एकादशी के दो दिन पहले पड़ता है और इस दिन आंवला के पेड़ की पूजा की जाती है। अक्षय नवमी के दिन मथुरा-वृन्दावन की परिक्रमा करना बहुत शुभ माना जाता है। चलिए जानते हैं कि अक्षय नवमी क्या है, कब है और इसके लाभ क्या हैं।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:23 ए एम से 05:14 ए एम |
प्रातः सन्ध्या | 04:48 ए एम से 06:05 ए एम |
अभिजित मुहूर्त | 11:19 ए एम से 12:04 पी एम |
विजय मुहूर्त | 01:33 पी एम से 02:18 पी एम |
गोधूलि मुहूर्त | 05:18 पी एम से 05:43 पी एम |
सायाह्न सन्ध्या | 05:18 पी एम से 06:34 पी एम |
अमृत काल | 08:19 ए एम से 09:56 ए एम |
निशिता मुहूर्त | 11:16 पी एम से 12:07 ए एम, नवम्बर 01 |
अक्षय नवमी दिवाली के कुछ दिनों बाद मनाया जाने वाला एक विशेष पर्व है। इस दिन पूजा, अनुष्ठान, दान आदि धार्मिक कार्य करने से अक्षय पुन्य, अर्थात कभी खत्म न होने वाले पुन्य की प्राप्ति होती है, इसलिए इसे अक्षय नवमी कहा जाता है। इस दिन को निम्न अन्य नामों से भी जाना जाता है।
अक्षय नवमी को आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन आंवला के पेड़ में भगवान विष्णु वास करते हैं, इसलिए आंवले के पेड़ की पूजा भी की जाती है।
अक्षय नवमी के दिन ही भगवान विष्णु ने कूष्माण्ड नामक दैत्य का वध किया था, इसलिए इसे कूष्माण्ड नवमी भी कहा जाता है।
मान्यता है कि सतयुग की शुरुआत अक्षय नमवी के दिन से ही हुई थी, इसलिए इसे सत्य युगादि के नाम से भी जाना जाता है।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को अक्षय नवमी मनाई जाती है। देवउठनी एकादशी से दो दिन पहले किया जाने वाला यह अनुष्ठान आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि अक्षय नवमी के दिन ही सतयुग की शुरुआत हुई थी। इसलिए अक्षय नवमी के दिन को सतयुगादि भी कहा जाता है। यह तिथि सभी प्रकार की दान-पुण्य से संबंधित गतिविधियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
अक्षय का अर्थ है जो कभी ख़त्म या कम न हो। इसीलिए अक्षय नवमी के दिन कोई भी धर्मिक और भक्ति भाव से किया गया कार्य करने का फल हमेशा प्रचुर मात्रा में प्राप्त होता है। ऐसा कहा जाता है कि आंवला नवमी के व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को इस जन्म के साथ ही अगले जन्म में भी पुण्य फल मिलता है। एक मान्यता यह भी है कि चूँकि अक्षय तृतीया को त्रेता युग का आरम्भ दिवस माना जाता है इसीलिए अक्षय नवमी की महत्ता वैशाख माह की अक्षय तृतीया के समान ही है।
परंपरागत रूप से अक्षय नवमी के शुभ दिन पर आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। पश्चिम बंगाल में, इसी दिन को जगधात्री पूजा के रूप में मनाया जाता है, जब सत्ता की देवी जगद्दात्री माता की पूजा की जाती है।
अक्षय पुण्य की प्राप्ति
आंवला नवमी
कूष्माण्ड नवमी
सत्य युगादि
मथुरा-वृन्दावन की परिक्रमा
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाने वाली अक्षय नवमी पर आंवला के वृक्ष का पूजन किया जाता है। इस दिन घर में भगवान विष्णु की भी पूजा करने का विधान है।
नोट - इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। आंवले के पेड़ के नीचे ही भोजन भी पकाया जाता है।
तो यह थी अक्षय नवमी के अर्थ, शुभ मुहूर्त, लाभ, महत्व, खास नियम और पूजा विधि से जुड़ी संपूर्ण जानकारी। आशा करते हैं कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी। इस पर्व से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातों को जानने के लिए बने रहें श्री मंदिर के साथ। ऐसी ही व्रत, पर्व, त्यौहार से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर के साथ। धन्यवाद!
भगवान विष्णु – अक्षय नवमी पर मुख्य रूप से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
माता लक्ष्मी – धन, समृद्धि और सुख-शांति के लिए माता लक्ष्मी की साथ में पूजा की जाती है।
भगवान गणेश – व्रत और पूजा की शुरुआत में बाधायें दूर करने के लिए गणेश जी की स्थापना करें।
आंवला का वृक्ष या पौधा – आंवला के पेड़ को भगवान विष्णु का प्रतीक मानकर उसकी पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
भगवान विष्णु और आंवला पूजन
मंत्र जाप और स्तुति
दान और सेवा
सत्संग और भजन
आंवला दान – इस दिन आंवला के फल दान करने से घर में स्थायी समृद्धि और स्वास्थ्य मिलता है। सात्विक भोजन – पूरे दिन सात्विक भोजन ग्रहण करने से व्रत अधिक प्रभावशाली होता है। दीपक जलाना – पूजा स्थल पर दीपक जलाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। सत्संग और कीर्तन – व्रत के दौरान भगवान विष्णु का सत्संग और भजन करने से मन, जीवन और घर में शुभता आती है।
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