आमलकी एकादशी 2025: इस पवित्र दिन पर आमलकी वृक्ष की पूजा करके आत्मिक शांति पाएं। जानें तारीख और समय।
आमलकी एकादशी फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व होता है, क्योंकि इसे भगवान विष्णु का प्रिय माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
हिन्दू धर्म में हर एकादशी व्रत का अपना एक विशेष महत्व होता है। इसी प्रकार आमलकी एकादशी भी असंख्य पुण्यफल देने वाली मानी जाती है। ये एकादशी महाशिवरात्रि एवं होली के बीच पड़ती है, और फाल्गुन मास के 'शुक्ल पक्ष' की 'एकादशी तिथि' पर मनाई जाती है। इस दिन जातक 'श्री हरि' की कृपा प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा करते हैं, एवं व्रत रखते हैं।
नोट - ध्यान रहे कि एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करें। द्वादशी तिथि में पारण न करने से व्रत के सारे पुण्यकर्म नष्ट हो जाते हैं, एवं जातक पाप का भागीदार होता है।
साथ ही एकादशी व्रत का पारण हरि वासर काल में कदापि नहीं करना चाहिए। श्रद्धालुओं को व्रत तोड़ने के लिए हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। बता दें कि 'हरि वासर' द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:35 ए एम से 05:24 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:59 ए एम से 06:12 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:45 ए एम से 12:32 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:07 पी एम से 02:54 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:02 पी एम से 06:26 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:04 पी एम से 07:17 पी एम तक |
अमृत काल | 06:12 पी एम से 07:52 पी एम तक |
निशिता मुहूर्त | 11:44 पी एम से 12:32 ए एम, 11 मार्च तक |
सर्वार्थ सिद्धि योग | 06:12 ए एम से 12:51 ए एम, 11 मार्च तक |
तो यह थी आमलकी एकादशी के शुभ मुहूर्त और तिथि से जुड़ी पूरी जानकारी। इस एकादशी की कथा व महत्व से जुड़ी जानकारी भी 'श्री मंदिर' पर उपलब्ध है। हम आशा करते हैं कि आपका व्रत सफल हो।
हिन्दू धर्म में प्रत्येक एकादशी को भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है। उन्हीं में से एक है आमलकी एकादशी का विशेष पर्व। यह तिथि भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। पद्म पुराण में वर्णन मिलता है कि 'आमलकी एकादशी' के दिन जो जातक व्रत एवं पूजा करते हैं, उन्हें सैकड़ों तीर्थ करने के बराबर का पुण्य मिलता है।
आइए जानते हैं
जो एकादशी फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष को मनाई जाती है, उसे आमलकी एकादशी कहा जाता है। 'आमलकी' शब्द का अर्थ होता है 'आंवला', अतः इस एकादशी पर आंवले का सर्वाधिक महत्व है। इस दिन भक्तजन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान विष्णु की पूजा करते है, साथ ही इस दिन आंवले का उबटन, आंवले के जल से स्नान, आंवला पूजन, आंवले का भोजन और आंवले के दान आदि का विधान है।
पावन आमलकी एकादशी के कई अन्य नाम भी हैं, जैसे- आंवला एकादशी, आमलका एकादशी, रंगभरी एकादशी आदि। इस तिथि को रंग भरी एकादशी इसलिए कहा जाता है, क्योंकि ये होली के 3-4 दिन पहले आती है। इसके साथ ही एक पौराणिक मान्यता है कि माता पार्वती से विवाह करके जब भगवान शिव पहली-पहली बार काशी लौटे थे, तब काशी के लोगों ने उनका स्वागत करने के लिए पूरे नगर की गलियों को भिन्न-भिन्न रंगों से सुसज्जित किया था। यही कारण है कि काशी में आज भी आमलकी एकादशी का पर्व माता पार्वती के स्वागत दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बाबा विश्वनाथ का विशेष रूप से श्रृंगार किया जाता है, एवं इसी दिन से काशी में 6 दिनों तक चलने वाला होली का पर्व प्रारंभ होता है।
ऐसी मान्यता है कि जब श्री हरि ने सृष्टि निर्माण के समय ब्रह्मा जी को अवतरित किया था, उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को भी पृथ्वी पर उत्पन्न किया। कहते हैं कि आंवले के वृक्ष के प्रत्येक हिस्से में भगवान स्वयं वास करते हैं, इसीलिए इसे आदि वृक्ष भी कहा जाता है।
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन आमलकी एकादशी का व्रत करने वाले जातक को मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कभी कभी ऐसा भी होता है कि एकादशी तिथि लगातार दो दिनों के लिए हो जाती है। जो एकादशी दूसरे दिन पड़ती है, उसे दूजी एकादशी कहते हैं। संन्यासियों, विधवाओं, एवं मोक्ष प्राप्ति की इच्छा रखने वाले व्यक्तियों को इसी एकादशी का व्रत रखना चाहिए।
सनातन व्रतों में एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस दिन संपूर्ण विधि और उचित सामग्री के साथ पूजा करना अत्यंत फलदायक होता है। एकादशी पर की जाने वाली पूजा की सामग्री कुछ इस प्रकार है -
नोट - गणेश जी की प्रतिमा के स्थान पर आप एक सुपारी पर मौली लपेटकर इसे गणेशजी के रूप में पूजा में विराजित कर सकते हैं।
इस सामग्री के द्वारा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा की जाती है, जो आपके लिए श्री मंदिर पर उपलब्ध है। आप इसका लाभ अवश्य उठायें।
हिन्दू पंचांग के अनुसार एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस लेख में आप एकादशी की पूजा की तैयारी एवं विधि जानेंगे।
(सबसे पहले दीप प्रज्वलित इसीलिए किया जाता है, ताकि अग्निदेव आपकी पूजा के साक्षी बनें)
(ध्यान दें गणेश जी को तुलसी अर्पित न करें)
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