अन्नकूट पूजा | Annakut Puja 2024
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को, यानि दीपावली के अगले दिन अन्नकूट पर्व मनाया जाता है। अन्नकूट/ गोवर्धन पूजा भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारंभ हुई। ये त्यौहार ब्रजवासियों के लिए विशेष महत्व रखता है। अन्नकूट के अवसर पर भगवान कृष्ण को छप्पन तरह के पकवानों का भोग लगाया जाता है, साथ ही इस दिन सामूहिक भोज भी आयोजित किया जाता है।
चलिये इस लेख में जानते हैं-
- अन्नकूट पूजा कब है
- ऐसे शुरू हुई थी अन्नकूट की परंपरा
- श्रीकृष्ण को छप्पन भोग लगाने का कारण
- छप्पन भोग कौन से हैं?
- अन्नकूट पर किए जाने वाले अन्य अनुष्ठान
अन्नकूट पूजा कब है?
- अन्नकूट पूजा 02 नवम्बर 2024, शनिवार को मनाई जायेगी।
- गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त 06:06 AM से 08:20 AM तक रहेगा।
- जिसकी कुल अवधि - 02 घण्टे 14 मिनट्स रहेगी।
- गोवर्धन पूजा सायं काल मुहूर्त 03:03 PM से 05:16 PM तक रहेगा।
- जिसकी कुल अवधि - 02 घण्टे 14 मिनट्स रहेगी।
- प्रतिपदा तिथि 01 नवम्बर 2024 को 06:16 PM पर प्रारंभ होगी।
- प्रतिपदा तिथि का समापन 02 नवम्बर 2024 को 08:21 PM पर होगा।
कैसे आरंभ हुई अन्नकूट की परंपरा?
अन्नकूट से जुड़ी पौराणिक कथाओं के अनुसार, वृंदावन में देवराज इंद्र की पूजा करने की परंपरा थी। किंतु एक बार भगवान श्री कृष्ण ने सभी व्रजवासियों को देवराज इंद्र के स्थान पर गोवर्धन पूजा करने के लिये कहा। इस प्रकार उस वर्ष वृंदावन में इंद्र की पूजा के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा की गयी। उधर, जब इंद्रदेव को इस बात की जानकारी हुई, तो वे बड़े क्रोधित हुए, और वृंदावन को नष्ट करने के लिये मूसलाधार वर्षा आरंभ कर दी। इंद्रदेव के इस प्रकोप से सभी व्रजवासी भयभीत हो गये, और श्री कृष्ण से कहने लगे- हे कांधा! हमने आपके कहने पर इस बार इंद्र भगवान की पूजा नहीं की, अब हम सब इस प्रलय से कैसे बचेंगे!?
इस पर भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका उंगली पर उठाकर संपूर्ण ब्रज को उसके नीचे सुरक्षित किया दिया था। लगभग सात दिन तक व्रजवासी उसी पर्वत के नीचे बैठे रहे। अंत में देवराज इंद्र ने हार मान ली, और जब इस बात का आभास हुआ कि ये तो भगवान की माया है, तब उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। इस प्रकार सात दिन के उपरांत भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को पुनः पृथ्वी पर रखा। तभी से ही हर वर्ष कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पर्वत की पूजा कर अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है।
श्रीकृष्ण को छप्पन भोग लगाने का कारण
जैसा कि आपने जाना कि देवराज इंद्र के प्रकोप से व्रजवासियों की रक्षा करने के लिये श्रीकृष्ण ने लगातार सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाए रखा था। इस दौरान उन्होंने अन्न जल आदि ग्रहण नहीं किया था। सात दिनों के उपरांत एक दिन के आठ पहर के अनुसार माता यशोदा और व्रजवासियों ने उनके लिए छप्पन प्रकार के पकवान बनाये, तभी से छप्पन भोग की परंपरा चली आ रही है। वहीं इस परंपरा से जुड़ी एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु के आसन कमल की पंखुड़ियों की संख्या छप्पन होती है, इसलिये भी भगवान को छप्पन भोग लगाया जाता है।
छप्पन भोग कौन से हैं?
छप्पन भोगों के नाम इस प्रकार हैं-
- भक्त (भात)
- सूप (दाल)
- प्रलेह (चटनी)
- सदिका (कढ़ी)
- दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी)
- सिखरिणी (सिखरन)
- अवलेह (शरबत)
- बालका (बाटी)
- इक्षु खेरिणी (मुरब्बा)
- त्रिकोण (शर्करा युक्त)
- बटक (बड़ा)
- मधु शीर्षक (मठरी)
- फेणिका (फेनी)
- परिष्टश्च (पूरी)
- शतपत्र (खजला)
- सधिद्रक (घेवर)
- चक्राम (मालपुआ)
- चिल्डिका (चोला)
- सुधाकुंडलिका (जलेबी)
- धृतपूर (मेसू)
- वायुपूर (रसगुल्ला)
- चन्द्रकला (पगी हुई)
- दधि (महारायता)
- स्थूली (थूली)
- कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी)
- खंड मंडल (खुरमा)
- गोधूम (दलिया)
- परिखा
- सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त)
- दधिरूप (बिलसारू)
- मोदक (लड्डू)
- शाक (साग)
- सौधान (अधानौ अचार)
- मंडका (मोठ)
- पायस (खीर)
- दधि (दही)
- गोघृत (गाय का घी)
- हैयंगपीनम (मक्खन)
- मंडूरी (मलाई)
- कूपिका (रबड़ी)
- पर्पट (पापड़)
- शक्तिका (सीरा)
- लसिका (लस्सी)
- सुवत
- संघाय (मोहन)
- सुफला (सुपारी)
- सिता (इलायची)
- फल
- तांबूल
- मोहन भोग
- लवण
- कषाय
- मधुर
- तिक्त
- कटु
- अम्ल
अन्नकूट पर किए जाने वाले अन्य अनुष्ठान
अन्नकूट महोत्सव के अवसर पर मंदिरों में अनेक प्रकार पकवान बनाकर भगवान को भोग लगाया जाता है। इसके अलावा इस दिन बलि पूजा, मार्गपाली आदि उत्सव भी मनाने की परंपरा है।
इस दिन गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर उन्हें माला पहनाई जाती है, और धूप-चंदन आदि से उनकी पूजा की जाती है। अन्नकूट पर गौमाता को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारने का विशेष महत्व है।
इस दिन गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर उसके समीप भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति, गाय तथा ग्वाल-बालों की प्रतिमा स्थापित करके उनकी पूजा की जाती है। इस पूजा में रोली, चावल, फूल, जल, मौली, दही तेल का दीप प्रज्वलन आदि सम्मिलित हैं। पूजा के अंत में परिक्रमा करने का विधान है।
तो ये थी अन्नकूट पूजा से जुड़ी विशेष जानकारी। हमारी कामना है कि इस दिन आपके द्वारा किए गए सभी धार्मिक कार्य सफल हों, और भगवान श्री कृष्ण की कृपा से आपका घर धन धान्य से परिपूर्ण रहे। व्रत त्योहारों से जुड़ी धार्मिक जानकारियों के लिये जुड़े रहिये 'श्री मंदिर' के इस धार्मिक मंच पर।