क्या है यम दीपम?
कार्तिक माह में आने वाले महापर्व दीपावली के दौरान त्रयोदशी तिथि अर्थात धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि के साथ मृत्यु के देवता यमराज की पूजा-अर्चना का विधान भी है। जिसमें यम देवता के लिए घर के बाहर दीया जलाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन यम देवता को दीप दान करने से घर के किसी भी सदस्य को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यमराज देवता को समर्पित यह पर्व यम दीपम या यम दीपदान के नाम से भी जाना जाता है।
यम दीपम (दीपदान) कब है, जानें शुभ मुहूर्त
- यम दीपम – 29 अक्टूबर, मंगलवार
- यम दीपम सायान्ह सन्ध्या - 05:19 PM से 06:35 PM
- अवधि - 01 घण्टा 17 मिनट तक
- धनत्रयोदशी - मंगलवार, 29 अक्टूबर, 2024
- त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 29, 2024 को 10:31 AM बजे
- त्रयोदशी तिथि समाप्त - अक्टूबर 30, 2024 को 01:15 PM बजे
यम दीपम अन्य शुभ मुहूर्त
- ब्रह्म मुहूर्त - 04:22 AM से 05:13 AM
- प्रातः सन्ध्या - 04:48 AM से 06:04 AM
- अभिजित मुहूर्त - 11:19 AM से 12:04 PM
- विजय मुहूर्त - 01:34 PM से 02:19 PM
- गोधूलि मुहूर्त - 05:19 PM से 05:44 PM
- सायाह्न सन्ध्या - 05:19 PM से 06:35 PM
- अमृत काल - 10:25 AM से 12:13 PM
- निशिता मुहूर्त - 11:16 PM से 12:07 AM, अक्टूबर 30
विशेष योग
- त्रिपुष्कर योग - 06:04 AM से 10:31 AM
चलिए अब जानते हैं यम दीपम के महत्व से जुड़ी पौराणिक कथा
चिरकाल में एक राजा हेम हुआ करते थे। हेम को एक पुत्र हुआ। उन्होंने योग्य ब्राह्मणों से जब पुत्र की जन्मकुंडली बनवाई, तो उसमें उस पुत्र की अकाल मृत्यु की भविष्यवाणी छपी थी। कुंडली के अनुसार - विवाह के बाद चौथे दिन ही हेम राजा के पुत्र की मृत्यु हो जाएगी। जब यह समाचार राजा को मिला तो वह अत्यंत दुखी हो गए।
राजा हेम ने अपने बेटे को स्त्रियों से दूर रखने का निर्णय लिया। और उन्होंने अपने पुत्र को एक ऐसी जगह भेज दिया, जहां उस पर स्त्री महिला की परछाई तक न पड़े। किन्तु भाग्य को यह मंजूर नहीं था। एक दिन वहां से एक राजकुमारी गुजरी, जहां वह राजकुमार रहता था। राजकुमारी और राजा हेम का पुत्र एक दूसरे पर मोहित हो गए और उन दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया। लेकिन भविष्यवाणी के अनुसार चौथे दिन ही राजकुमार की मृत्यु हो गई।
यमदूत जब राजकुमार के प्राण लेने आए तो राजकुमार की नवविवाहिता राजकुमारी जोर-जोर से विलाप कर रही थी। राजकुमारी की वेदना सुन एक यमदूत अत्यंत भावुक हो गया और उसने अपने स्वामी यमराज से पूछा कि महाराज क्या कोई उपाय है जिससे इस तरह अकाल मृत्यु से बचा जा सके।
इस पर यमराज ने कहा कि धनतेरस की गोधूलि बेला में यदि कोई प्राणी मेरे नाम का स्मरण करते हुए दीप प्रजल्लवित करता है तो उसे अकाल मृत्यु की त्रासदी नहीं सहनी पड़ेगी। इसी मान्यता का अनुसरण करते हुए लोग इस दिन दीया जलाते हैं। जिससे प्रसन्न होक्रर मृत्युदेव उन्हें अकाल मृत्यु के कोप से सुरक्षित करते हैं। इस प्रकार से धनतेरस के दिन को यमदीपदान के रूप में नामित किया गया था।
यम दीपम का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, धनतेरस के दिन शुभ मुहूर्त में एक दीपक मृत्यु के देवता यमराज के लिए जलाया जाता है। हमेशा इस दीपक को घर के बाहर ही जलाने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि दीपदान करने से यमराज प्रसन्न होते हैं और उस परिवार के सदस्यों की अकाल मृत्यु से रक्षा करते हैं। साथ ही माना जाता है कि जो मनुष्य पूर्ण विधि-विधान से पूजा-अर्चना करके यमराज देवता को दीपदान करते हैं वह सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होते हैं।
यम दीपम पूजा की सामग्री
- मिट्टी का चौमुखा दीपक
- तिल का तेल
- चार बत्तियां
- चावल
- फूल
- धूप
- दीप
- फल
- मिठाई
पूजा की विधि
- धनतेरस के दिन, शाम को घर के मुख्य द्वार पर एक चौमुखा दीपक जलाएं।
- दीपक के मुख को दक्षिण दिशा की ओर रखें।
- दीपक में तिल का तेल डालें और चार बत्तियां जलाएं।
- दीपक के सामने चावल, फूल, धूप, दीप, फल और मिठाई अर्पित करें।
- यमराज के मंत्रों का जाप करें।
- दीपक को जलाकर उसे रात भर जलने दें।
तो यह है यम दीपम से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी। इस बार श्री मंदिर आपकी दिवाली को सटीक जानकारी के साथ शुभ और अधिक रोशन बनाने में आपके साथ है। इसलिए दीपावली से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारियों के लिए जुड़े रहिये हमारे साथ।