अरुद्र दर्शन 2025: शिवभक्तों के लिए शुभ अवसर। जानें भगवान नटराज की पूजा का सही समय और विधि।
अरुद्र दर्शन एक प्रमुख दक्षिण भारतीय त्योहार है, जिसे भगवान शिव के नटराज स्वरूप की पूजा के रूप में मनाया जाता है। यह मार्गशीर्ष माह में तिरुवाधिराई नक्षत्र के दिन आता है। इस दिन भगवान नटराज के आनंद तांडव को विशेष रूप से स्मरण किया जाता है। भक्त उपवास रखते हैं, मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार अरुद्र दर्शन को बहुत ही शुभ और पवित्र दिन माना जाता है। यह हर साल तमिल महीने मार्गाज्ही अर्थात दिसंबर से जनवरी के बीच आने वाली पूर्णिमा की रात्रि को मनाया जाता है। साल 2025 में अरुद्र दर्शन 13 जनवरी, सोमवार के दिन मनाया जाएगा।
अरुद्र दर्शन भगवान शिव के नटराज अवतार को स्मरण में रखकर मनाया जाता है। दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में इस भव्य उत्सव को साल की सबसे लंबी रात के रूप में मनाते हैं। इस दौरान भगवान शिव के अलौकिक नृत्य को प्रदर्शित किया जाता है। उनका यह अद्भुत अवतार, उनके नृत्य सृजन और विनाश के चक्र को संबोधित करता है। शिव जी के इस अलौकिक नृत्य को पूरे ब्रह्मांड का शक्ति स्रोत माना गया है।
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, अरुद्र एक जन्म नक्षत्र का भी नाम है और इसी नक्षत्र में इस उत्सव का होना अनिवार्य है।
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, अरुद्र दर्शन का उत्सव भगवान शिव को समर्पित सबसे महत्वपूर्ण उत्सवों में से एक है। इस दिन शिव जी के नटराज रूप के दर्शन को काफी शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है, कि इस उत्सव में जिस लाल आभा से युक्त ज्योति का प्रयोग होता है, वह भगवान नटराज का नृत्य करता हुआ रूप है।
अरुद्र दर्शन पूरे भारतवर्ष में कई नाम से प्रचलित है जैसे अरूधरा, आर्द्रा, तिरुवथिराई आदि, और यह सबसे ज्यादा भारत के दक्षिणी क्षेत्रों में मनाया जाता है। तमिलनाडु का चिंदबरम नटराज मंदिर इस महोत्सव के आयोजन के लिए पूरे भारतवर्ष में विख्यात है। मंदिर में प्रतिष्ठित भगवान नटराज की मूर्ति को अरुद्र दर्शन के दिन देखने के लिए दूर-दूर से आए दर्शनार्थियों की भीड़ लगती है।
सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि सिंगापुर, मलेशिया, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के कुछ हिस्सों में भी इसको पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है। इस दिन के आयोजन में लीन होने वाले कुछ प्रसिद्ध मंदिरों में तिरुवलकडु मंदिर, नेल्लईअप्पार मंदिर, कुत्रालनाथर मंदिर, तिरुवरूर मंदिर और कपालेश्वर मंदिर का नाम शामिल है।
शिवरात्रि की तरह अरुद्र दर्शन के दिन भी भक्त स्वेच्छा से व्रत रखते हैं। नियमों के अनुसार, इस दिन भोर होने से पहले ही पवित्र नदी में स्नान करना अनिवार्य है। अगर आसपास कोई पवित्र नदी न हो, तो किसी भी पवित्र नदी का नाम जपते हुए स्नान करना चाहिए। इसके बाद उपवास रखने वाला पूरे दिन भगवान की भक्ति करते हुए उपवास रखता है और दूसरे दिन पूजा के समापन के बाद भोग ग्रहण कर अपना व्रत संपन्न करता है।
यह व्रत ज्यादातर अविवाहित कन्या या स्त्रियां करती हैं जिससे उन्हें गुणवान वर की प्राप्ति हो। काफी लोग तो इस दिन के 9 दिन पहले से ही व्रत शुरु कर देते हैं जिसे नोनबू कहा जाता है।
अरुद्र दर्शन के दिन दक्षिण भारत के सभी शिव मंदिरों में भव्य अनुष्ठानों और पूजा का प्रबंध किया जाता है। चिंदबरम मंदिर में भजन कीर्तन का आयोजन होता है और साथ ही पूजा के बाद वहां जो भोग दिया जाता है, उसे काली के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में भगवान नटराज को याद करते हुए भव्य नृत्य का आयोजन भी देखने को मिलता है।
तमिल ग्रंथावली और हिंदू ग्रंथों के मुताबिक, चिंदबरम और भगवान नटराज के बीच बहुत गहरा संबंध है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु शयन मुद्रा में शेषनाग पर लेटे हुए थे। तब भगवान को विचारों में ऐसे लीन देख शेषनाग में उनसे प्रश्न किया, कि आप किस बारे में सोच रहे हैं प्रभु? इस पर भगवान विष्णु ने कहा, कि वह भगवान शिव के अभूतपूर्व नृत्य को मन ही मन देखने में लीन हैं।
भगवान शिव के अलौकिक नृत्य के प्रति अपने भगवान को इतना भाव विभोर देख कर शेषनाग ने भगवान विष्णु से फिर पूछा, कि क्या उन्हें भी भगवान शिव के इस नृत्य के दर्शन हो सकते हैं? तब उन्होंने कहा, कि अगर वह कठोर तपस्या करते हैं तो उन्हें अवश्य भगवान शिव के इस अप्रतिम नृत्य के दर्शन होंगे। यह सुनते ही शेषनाग ने भगवान विष्णु से आज्ञा ली और कड़ी तपस्या करने पहाड़ियों पर चले गए, जो वर्तमान समय में तमिलनाडु में मौजूद है।
फिर काफी सालों तक कड़ी तपस्या करने के बाद भगवान शिव शेषनाग से प्रसन्न हुए और उनके समक्ष नटराज रूप धारण कर नृत्य प्रस्तुत किया था। माना जाता है, कि भगवान शिव ने चिंदबरम के उसी स्थान पर अलौकिक नृत्य दिखाया था जहां आज मंदिर मौजूद है।
तो यह थी अरुद्र दर्शन से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी और हमें उम्मीद है कि आपको यह पसंद आई होगी। यदि आप आगे भी ऐसी ही धर्म से जुड़ी जानकारियों और विशेष त्योहारों से अवगत होना चाहते हैं तो बने रहिए श्री मंदिर के साथ।
Did you like this article?
जीवित्पुत्रिका व्रत 2024 की तिथि, समय, पूजा विधि, और कथा के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करें। यह व्रत माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है।
इन्दिरा एकादशी व्रत 2024 की तारीख, विधि और महत्व जानें। इस पवित्र व्रत से पितरों की शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
जानें दशहरा क्यों मनाया जाता है, इस पर्व का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व क्या है और यह कैसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।