भाद्रपद पूर्णिमा व्रत कथा

भाद्रपद पूर्णिमा व्रत कथा

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पौराणिक ग्रंथो में भाद्रपद पूर्णिमा की एक कथा काफी प्रचलित है। द्वापर युग में एक बार यशोदा मां ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि वह उन्हें एक ऐसा व्रत बताएं जिसको करने से मृत्यु लोक में स्त्रियों को विधवा होने का भय ना रहे तथा वह व्रत मनुष्यों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला हो। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए यशोदा मां को एक ऐसे व्रत की कहानी विस्तार से बताते हुए कहा कि सौभाग्य की प्राप्ति के लिए स्त्रियों को 32 पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए। यह व्रत अचल सौभाग्य देने वाला और भगवान शिव के प्रति मनुष्यों की भक्ति बढ़ाने वाला है।

इसे सुन योशादा मां ने श्रीकृष्ण से पूछा कि इस व्रत को मृत्युलोक में किसने किया था। इस पर श्रीहरि ने बताया कि इस धरती पर एक रत्नों से परिपूर्ण कार्तिका नाम की नगरी थी, वहां चंद्रहास नामक एक राजा राज करता है। उसी नगरी में एक धनेश्वर नामक ब्राम्हण था, उसकी बहुत सुंदर और सुशील पत्नी थी। जिसका नाम रूपवती था, दोनों एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे और उस नगरी में बहुत प्रेम से रहते थे। उनके घर में धन धान्य आदि की कोई कमी नहीं थी, लेकिन संतान ना होने के कारण वह अक्सर चिंतित रहा करते थे।

एक दिन एक योगी उस नगरी में आय़ा, वह नगर के सभी घरों से भिक्षा लेता था। परंतु रूपवती के घर से कभी भिक्षा नहीं लेता था। एक दिन वह योगी रूपवती से भिक्षा ना लेकर किसी अन्य से भिक्षा लेकर गंगा किनारे बैठकर प्रेमपूर्वक खा रहा था। तभी अपने भिक्षा के अनादर से दुखी होकर धनेश्वर योगी से भिक्षा ना लेने की वजह पूछता है। इस पर योगी ने कहा कि निसंतान के घर की भीख पतिथों के अन्न के समान होती है और जो पतिथो का अन्न ग्रहण करता है वह भी पतिथ हो जाता है। इसलिए पतिथ हो जाने के भय से उनके घर की भिक्षा नहीं लेता है।

इसे सुन धनेश्वर अत्यंत दुखी हो गए और उन्होंने योगी से पुत्र प्राप्ति का उपाय पूछा। यह सुन योगी ने उन्हें मां चंडी की उपासना करने के लिए कहा। धनेश्वर देवी चंडी की उपासना करने के लिए वन में चला गया, मां चंडी ने धनेश्वर की भक्ति से प्रसन्न होकर 16वें दिन उसे दर्शन दिया औऱ कहा कि उसके यहां पुत्र होगा, लेकिन वह केवल 16 वर्षों तक ही जीवित रहेगा। यदि वह स्त्री और पुरुष 32 पूर्णिमा का व्रत करेंगे तो वह दीर्घायु हो जाएगा। उन्होंने कहा कि यहां एक आम का वृक्ष दिखाई देगा, उस वृक्ष पर चढ़कर फल तोड़कर उसे घर ले जाएं और पत्नी को सारी बात बताएं। तथा स्नान कर वह शंकर भगवान का ध्यान कर उस फल को खा ले, तो वह भगवान शिव की कृपा से गर्भवती हो जाएगी। इस उपाय को करने के बाद धनेश्वर को पुत्र की प्राप्ति हुई तथा 32 पूर्णिमा का व्रत करने से पुत्र को दीर्घायु की प्राप्ति हुई।

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