भीष्म अष्टमी 2025: क्या आप जानते हैं इस दिन का पितृ दोष से मुक्ति और आशीर्वाद का महत्व? जानें शुभ मुहूर्त और पूजा का सही तरीका।
भीष्म अष्टमी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह की पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है। यह दिन विशेष रूप से उनकी वीरता, धर्मनिष्ठा और बलिदान को याद करने के लिए समर्पित है। इस दिन लोग विशेष रूप से उपवासी रहते हैं और पूजा अर्चना करके भीष्म पितामह के आदर्शों का पालन करने का संकल्प लेते हैं।
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी, भीष्म पितामह की पुण्यतिथि के रूप में मनाई जाती है। भीष्म पितामह, महान भारतीय महाकाव्य, महाभारत के सबसे प्रमुख पात्रों में से एक हैं। इसलिये उनकी पुण्यतिथि को भीष्म अष्टमी के रूप में जाना जाता है। भीष्म पितामह ने आजीवन ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा ली तथा जीवन पर्यन्त उसका पालन किया। अपने पिता के प्रति उनकी निष्ठा एवं समर्पण के कारण, भीष्म पितामह को अपनी इच्छानुसार मृत्यु का समय चुनने का वरदान प्राप्त हुआ था।
भीष्म अष्टमी की यह प्रचलित पूजा महाभारत के सबसे सम्मानीय पात्र गंगा पुत्र महामहिम भीष्म को समर्पित है। यह हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। वहीं, ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह तिथि अक्सर जनवरी से फरवरी के बीच में होती है।
भीष्म अष्टमी तिथि 05 फरवरी 2025 की मध्यरात्रि 02 बजकर 30 मिनट से शुरू होकर और 06 फरवरी 2025 को रात 12 बजकर 35 मिनट पर समाप्त होगी। साथ ही मध्याह्न समय दिन में 11 बजकर 06 मिनट से आरम्भ होकर दोपहर 01 बजकर 19 मिनट तक रहेगा। जिसकी अवधि 02 घण्टे 13 मिनट रहेगी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में गम्भीर रूप से घायल होने के पश्चात् भी भीष्म पितामह ने अपने वरदान के कारण अपनी देह का त्याग नहीं किया। उन्होंने अपनी देह त्यागने के लिये शुभ मुहूर्त की प्रतीक्षा की। हिन्दु मान्यता के अनुसार, सूर्यदेव वर्ष में आधे समय दक्षिण दिशा में चले जाते हैं, जो कि अशुभ समयावधि मानी जाती है। इसीलिये सभी प्रकार के शुभ कार्यों को इस समयावधि के समाप्त होने तक स्थगित कर दिया जाता है। जब सूर्यदेव उत्तर दिशा में वापस आने लगते हैं, तब इन शुभ कार्यों का आयोजन किया जाता है । भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये माघ शुक्ल अष्टमी को चुना, क्योंकि इस समय तक सूर्यदेव उत्तर दिशा अथवा उत्तरायण में वापस जाने लगे थे। इस दिन लोग भीष्म पितामह के लिये एकोदिष्ट श्राद्ध करते हैं।
हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, भीष्म अष्टमी को बहुत मंगल और शुभ दिन माना जाता है। इस दिन श्रद्धालु, भीष्म की पूजा संपूर्ण रुप से पाप मुक्त होने के लिए करते हैं। लोगों में ऐसी मान्यता है, कि अगर पितामह भीष्म की सच्चे मन से प्रार्थना की जाए तो उन्हें संस्कारी पुत्र की प्राप्ति का लाभ मिलता है।
वहीं, हर साल हजारों लोग जिनके पिताजी का देहांत हो गया या जो पितृ दोष से जूझ रहे हैं, इस पूजा को करते हैं ताकि इस दोष का निवारण हो सके और साथ ही इस पूजा के माध्यम से अपनी पीढ़ियों को मन से अपनी श्रद्धा अर्पित कर सकें।
भीष्म अष्टमी का एक सीधा जुड़ाव महाभारत के शेष अध्याय से जुड़ा हुआ है।
कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान अर्जुन ने भीष्म पितामह को आहत कर बाणों की शैया पर लिटा दिया था। लेकिन पितामह भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान था इसीलिए जब तक कुरुक्षेत्र का युद्ध समाप्त नहीं हुआ, तब तक उन्होंने अपनी देह का त्याग नहीं किया।
ऐसा माना जाता है, कि पितामह उस बाणों की शैया पर 18 दिनों तक लेटे रहे और मृत्यु से कुछ क्षण पहले उन्होंने धर्मराज युधिष्ठिर को कुछ सीख और जीवन का मूल मंत्र भी दिया था। आखिरकार अपना दायित्व पूरा करते हुए उन्होंने अपना देह त्याग किया और आज भी उनकी कर्म निष्ठा और भक्ति भावना को याद करते हुए भीष्म अष्टमी का पर्व मनाया जाता है।
तो यह थी भीष्म अष्टमी की सम्पूर्ण जानकारी। हमें उम्मीद है, कि आपको यह अच्छी लगी होगी। अगर आप आगे भी ऐसी ही धर्म से जुड़ी जानकारियों और विशेष त्योहारों से अवगत होना चाहते हैं तो बने रहिए श्री मंदिर के साथ।
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