छठ पूजा की कहानी | Chhath Puja Story

छठ पूजा की कहानी

इस व्रत के पीछे की कहानियाँ और सूर्य देव की पूजा का आध्यात्मिक महत्व यहाँ पढ़ें।


छठ पूजा की कहानी | Chhath Puja Story

मार्कण्डेय पुराण में प्रकृति की अधिष्ठात्री देवी को भगवान सूर्य की बहन माना गया है। छठी मैया को संतान सुख की प्राप्ति, उसकी दीर्घायु और परिवार के सुख सौभाग्य के लिए पूजा जाता है। छठ पूजा में विशेष रूप से छठ माता और भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। मान्यता है कि छठ पूजा की कथा सुने बिना ये व्रत अधूरा माना जाता है। इसे में आप भी पढ़िए छठ पूजा की ये पौराणिक कथा।

कहा जाता है कि प्राचीन समय में प्रियव्रत नाम के एक राजा थे। उनकी धर्मपत्नी का नाम मालिनी था। उन दोनों के जीवन में धन संपत्ति तो बहुत थी, लेकिन कमी थी तो बस एक संतान की, जिस कारण राजा रानी बहुत दुखी रहते थे। इस तरह संतान पाने की इच्छा से उन्होंने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के प्रभाव से रानी मालिनी गर्भवती भी हुईं, लेकिन उन्होंने एक मृत संतान को जन्म दिया।

इधर, राजा प्रियव्रत मृत संतान होने का दुख सहन न कर सके, और उन्होंने अपना प्राण देने का निर्णय ले लिया। जब राजा आत्महत्या करने जा रहे थे, तभी उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुईं। देवी बोलीं- हे राजा प्रियव्रत! मैं षष्ठी माता हूं! मैं अपने भक्तों को संतान सुख व सौभाग्य प्रदान करती हूं। जो भक्त सच्चे मन से मेरी उपासना करते हैं, उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।

माता आगे बोलीं - यदि तुम मेरी पूजा करोगे, तो निश्चय ही तुम्हें संतान सुख प्राप्त होगा। राजा ने षष्ठी माता के आदेश के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को अपनी पत्नी के साथ मिलकर विधि-विधान से छठ माता की व्रत उपासना की, और माता के आशीर्वाद के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। मान्यता के अनुसार तभी से छठ पूजा का यह पवन पर्व मनाया जाने लगा।

महाभारत काल से जुड़ी छठ पूजा की कथा | Chhath Puja Story Mahabharat Kaal

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार पांडवों और उनकी पत्नी द्रौपदी ने अपना खोया हुआ राज्य वापस पाने के लिए छठ पूजा की थी। जब पांडवों को हस्तिनापुर से निकाल दिया गया था, तब उन्होंने द्रोपदी के साथ मिलकर ये व्रत किया और सूर्य देव के प्रभाव से उनका खोया हुआ राज्य व मान सम्मान पुनः वापस मिल गया।

एक मान्यता के अनुसार, सूर्य पूजा की शुरुवात महाभारत काल में कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे, और प्रतिदिन पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य दिया करते थे। इसी उपासना के फल स्वरुप सूर्य देव की कृपा से वे एक महान धनुर्धर बने। मान्यता है कि तभी से छठ पर्व पर जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा शुरू हुई।

रामायण काल से जुड़ी छठ पूजा की कथा | Chhath Puja Story Ramayana Kaal

एक और कथा ऐतिहासिक नगरी मुंगेर से जुड़ी हुई है, जिसके अनुसार माना जाता है कि छठ पूजा की शुरुवात माता सीता ने की थी। कहा जाता है कि जब भगवान राम 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तो रावण वध के पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने ऋषियों के निर्देश पर राजसूय यज्ञ कराने का निर्णय लिया।

ये यज्ञ कराने के लिए महर्षि मुद्गल को आमंत्रित किया गया। इस पर ऋषि मुद्गल ने भगवान राम और माता सीता को अपने आश्रम में बुलाया, और सीता जी पर गंगाजल छिड़ककर उन्हें पवित्र किया। इसके बाद महर्षि ने उन्हें कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर सूर्यदेव की आराधना करने का आदेश दिया। कहा जाता है कि मुद्गल ऋषि के आदेश के अनुसार, माता सीता ने उनके आश्रम में ही रहकर 6 दिनों तक छठ पूजा का अनुष्ठान किया था।

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