image
downloadDownload
shareShare
ShareWhatsApp

सीता नवमी कब है 2025?

सीता नवमी 2025 कब है? जानिए इस पावन दिन की तारीख, धार्मिक महत्व और पूजा विधि।

सीता नवमी के बारे में

सीता नवमी हिंदू धर्म में एक पवित्र पर्व है, जिसे माता सीता के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन व्रत, पूजा और रामायण पाठ का विशेष महत्व होता है।

सीता नवमी 2025

हमारे पुराणों में जिन आदर्श नारियों का उल्लेख मिलता है, उनमें से एक हैं माता सीता। श्रीराम के जन्मोत्सव रामनवमी के ठीक एक महीने बाद उनकी अर्धांगिनी माँ सीता का जन्मोत्सव आता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता नवमी मनाई जाती है। इसे जानकी जयंती के नाम से भी जाना जाता है।

  • सीता नवमी 5 मई 2025, सोमवार को मनाई जाएगी।
  • सीता नवमी मध्याह्न मुहूर्त - 10:54 ए एम से 01:34 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 40 मिनट्स
  • राम नवमी 6 अप्रैल 2025, रविवार को
  • सीता नवमी मध्याह्न का क्षण - 12:14 पी एम
  • नवमी तिथि प्रारम्भ - मई 05, 2025 को 07:35 ए एम बजे
  • नवमी तिथि समाप्त - मई 06, 2025 को 08:38 ए एम बजे

माता सीता के जन्म की कथा आलौकिक है। यह कथा श्री मंदिर पर आपके लिए उपलब्ध है। माता सीता का जन्म सबसे शुभ माने जाने वाले पुष्य नक्षत्र में हुआ था। इस नक्षत्र में जन्मे जातक दिव्य होते हैं और स्वयं प्रकृति उनका पोषण करती है।

सीता नवमी तिथि का पंचांग

  • तिथि - नवमी (शुक्ल पक्ष)
  • नक्षत्र - अश्लेषा
  • योग - वृद्धि

सीता नवमी का शुभ मुहूर्त

मुहूर्त समय
ब्रह्म मुहूर्त  04:08 ए एम से 04:51 ए एम तक
प्रातः सन्ध्या  04:29 ए एम से 05:33 ए एम तक
अभिजित मुहूर्त 11:47 ए एम से 12:40 पी एम तक
विजय मुहूर्त  02:27 पी एम से 03:21 पी एम तक
गोधूलि मुहूर्त  06:53 पी एम से 07:14 पी एम तक
सायाह्न सन्ध्या  06:54 पी एम से 07:58 पी एम तक
अमृत काल  12:21 पी एम से 02:01 पी एम तक
निशिता मुहूर्त  11:52 पी एम से 12:35 ए एम, तक (06 मई)
रवि योग  02:01 पी एम से 05:33 ए एम, तक (06 मई)

सीता नवमी का महत्व क्या है?

त्रेता युग में जन्मी सीता माँ का सम्पूर्ण जीवन आज भी प्रासंगिक सा लगता है, और हम सभी के लिए मर्यादा, त्याग और आत्मशक्ति का प्रतीक है। हिन्दू माह वैशाख के शुक्ल पक्ष की नवमी को माता सीता का जन्म हुआ था। आइये जानें इस शुभ दिन की महत्ता और माता सीता की दिव्यता के बारे में विस्तार से-

सीता नवमी का महत्व

  • सनातन धर्म में सीता को माता लक्ष्मी का अवतार माना गया है, जो एक श्राप के कारण त्रेता युग में जन्मी। इसलिए माता सीतानवमी के दिन सीता जी की पूजा करने से माँ लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है।
  • ऐसी मान्यता है कि सीता नवमी के दिन जो भी कन्या और स्त्री पूरी श्रद्धा से व्रत रखती हैं, उन्हें अच्छे वर और अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है।
  • इस शुभ दिन पर माँ सीता और प्रभु श्री राम की पूजा करने से वैवाहिक जीवन सुखी बनता है।
  • यह भी कहा जाता है कि जिन कन्याओं के विवाह में अकारण देरी हो रही हो, उन्हें इस दिन व्रत अवश्य करना चाहिए।
  • सीता नवमी पर सिया और राम जी की आराधना करने से 16 महादान, गौदान, तथा राम तीर्थ के दर्शन के बराबर का पुण्यफल प्राप्त होता है।

सीता का जन्म : एक चमत्कारिक गाथा

हमारे पुराणों के अनुसार सीता का जन्म किसी चमत्कार से कम नहीं है। ऐसा हुआ कि बंजर धरती में हल से जोती गई रेखा एक जगह पहुंचकर रुक गई। राजा जनक के कहने पर जब उस जगह को खोदा गया तो वहां धरती में एक शिशु बालिका दबी हुई थी। कठिन परिस्थितियों में धरती के अंदर भी उस बालिका का जीवित होना एक चमत्कार था। राजा जनक ने उस बालिका को ईश्वर का आशीर्वाद मान कर स्वीकार किया और उसे नाम दिया सीता।

यह भी कथा में वर्णन है कि राजा जनक को जिस दिन सीता मिली, उस दिन पुष्य नक्षत्र था। इसलिए इस दिन का महत्व और बढ़ जाता है।

सीता इतनी दिव्य थी कि परशुराम द्वारा जनक को दिया गया शिवधनुष जिसे परम शक्तिशाली रावण तक नहीं हिला सका, उसे सीता ने बालिका के रूप में भी उठा लिया था।

माता सीता ने आजीवन अनेकों दुःख सहें, और कई परीक्षाओं का सामना किया। फिर भी अपना धैर्य, संयम और पतिव्रता धर्म कभी नहीं छोड़ा। स्वयं श्रीराम ने सीता के बिना स्वयं को अधूरा माना है। इसीलिए हर पतिव्रता स्त्री को इस दिन माता सीता की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

तो यह थी सीता नवमी की महत्ता पर हमारी छोटी सी पेशकश। ऐसी ही अन्य जानकारियों के लिए जुड़े रहे श्रीमंदिर के साथ। धन्यवाद

सीता नवमी पर ऐसे करें माता सीता की पूजा

वैशाख माह में आने वाली सीता नवमी की पूजा अत्यंत फलदायक मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो कन्याएं सीता नवमी पर विधि-विधान से माता सीता की पूजा करती हैं, उन्हें सीता माता की कृपा से मनोवांछित वर मिलता है और वे आजीवन सौभाग्यवती रहती हैं। चलिए जानें सीता नवमी पर कैसे करें आसान विधि से पूजा-

पूजा सामग्री

चौकी, पीला वस्त्र, माता सीता और श्रीराम की तस्वीर, आरती की थाल, जलपात्र, हल्दी-कुमकुम-अक्षत, धुप-दीपक, फूल, माला, मौली/कलावा, सुहाग का सामान, दक्षिणा, प्रसाद में ऋतुफल या नारियल।

पूजा की तैयारी

  • सीता नवमी के दिन प्रातः जल्दी उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं।
  • इसके बाद पानी में गंगाजल या एक चुटकी हल्दी मिलाकर स्नान करें।
  • दैनिक पूजा करें और यदि आप व्रत रख रहें है तो व्रत का संकल्प लें।
  • अब सभी पूजन सामग्री एकत्रित करें, पूजन स्थल को साफ करके शुभ मुहूर्त में पूजा शुरू करें।

पूजा विधि

  • सबसे पहले चौकी स्थापित करें, और इसके सामने आसन लगाकर बैठ जाएं।
  • इस चौकी पर थोड़ा सा गंगाजल छिड़ककर इसे शुद्ध करें। अब इसपर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं।
  • अब चौकी पर या इसके पास में एक दीपक प्रज्वलित करें।
  • कुछ अक्षत का आसन देकर सीता माता और श्री राम की तस्वीर/मूर्ति स्थापित करें। आप चाहे तो रामदरबार की तस्वीर भी ले सकते हैं।
  • इसके बाद जलपात्र से एक फूल की सहायता से जल लेकर सीता-रामजी पर स्नान के रूप में जल छिड़कें।
  • अब ॐ श्री सीताय नमः, ॐ श्री रामाय नमः के जाप के साथ सीता जी को हल्दी कुमकुम और हो सकें तो नारंगी सिंदूर लगाएं।
  • राम जी को कुमकुम चन्दन और अक्षत का तिलक लगाएं। साथ ही रामदरबार के अन्य देवों को भी तिलक करें।
  • अब सियारामजी को वस्त्र के रूप में मौली/कलावा अर्पित करें। इसके बाद फूल और माला अर्पित करें।
  • माता सीता को सभी सुहाग का सामान अर्पित करें। इसके बाद धुप-सुंगधि जलाएं।
  • इस पूरी पूजा में ॐ श्री सीताय नमः, ॐ श्री रामाय नमः का जप करते रहें।
  • अब भोग के रूप में ऋतुफल, नारियल और मिठाई चढ़ाएं। क्षमतानुसार दक्षिणा को भी चौकी पर देवी सीता के सामने रखें।
  • अंत में माता सीता और श्रीराम जी की आरती करें।
  • आरती सम्पन्न करके सियाराम जी को नमन करें और उनसे पूजा भी हुई किसी भी तरह की भूल के लिए माफ़ी मांगे।
  • अब सबमें प्रसाद बांटें और खुद भी प्रसाद ग्रहण करें। पूजा के अगले दिन दान करने जैसी सामग्री को दान कर दें, बची हुई सामग्री को विसर्जित करदें।

इस तरह आपकी सीता नवमी की पूजा आसानी से सम्पन्न होगी। हम आशा करते हैं आपकी यह पूजा अवश्य फलीभूत हो और माता सीता आपकी सभी मनोकामना पूरी करें।

सीता नवमी व्रत कथा

सनातन धर्म में माता सीता को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है, और जो स्त्री सीता नवमी के दिन व्रत रखती है, उसे सभी पापकर्मों से मुक्त होकर सौभाग्य की प्राप्ति होती है। आइये सुनते हैं सीता नवमी की पुण्यदायी कथा!

प्राचीन काल में देवदत्त नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी शोभना के साथ मारवाड़ राज्य में निवास करते थे। देवदत्त महाज्ञानी और बहुत ही धर्मपरायण पुरुष थे। उनकी पत्नी शोभना भी बहुत रूपवती स्त्री थी। एक बार ब्राह्मण देवदत्त को कुछ जरूरी काम से दूसरे देश जाना पड़ा। उनके पीछे शोभना घर में अकेली रहती थी। अपने पति की अनुपस्थिति में शोभना कुसंगति में फंस गई। जब उसकी गलत लोगों से संगति और बुरी आदतों के बारे में पूरे गांव वालों को पता चला, तो वे लोग उसकी निंदा करने लगे। चारों तरफ हो रही अपनी निंदा से शोभना का मन द्वेष से भर गया और एक दिन मौका पाकर उसने पूरे गांव में आग लगवा दी। उस अग्नि में गांव के कई घर जलकर राख हो गए, और कई लोगों को जान-माल की हानि हुई।

इस जन्म में अपने बुरे कर्मों के कारण शोभना ने अपना अगला जन्म एक चांडाल के घर में लिया। शोभना ने पूर्व जन्म में अपने पति का त्याग किया था, इसलिए इस जन्म में उसे चांडालिनी का रूप मिला। अपने द्वेष में आकर गांव को जलवाने और गलत संगत में पड़कर कई बुरे कर्म के कारण उसे कुष्ठ रोग हो गया और उसकी आँखों की रोशनी भी चली गई।

इस तरह इस जन्म में अपने बुरे कर्मों का फल भोगते हुए वह चांडालिनी जीवन बिताने लगी। एक दिन भूख प्यास से व्याकुल होकर वह भटकते-भटकते कौशल राज्य जा पहुंची। कौशल राज्य में उस दिन सीता नवमी का उत्सव मनाया जा रहा था। चांडालिनी के रूप में पीड़ित शोभना ने उस गांव में सबसे गुहार लगाई कि ‘सज्जनों के इस गांव में कोई तो मेरी सहायता करो, मुझे भोजन दे दो, मुझे जल पीला दो, मैंने कई दिनों से कुछ नहीं खाया है।’ उसने बार बार ऐसी प्रार्थना की, और अंत में श्रीकनक भवन में जा पहुंची। यहां पहुंचकर भी उसने याचना की, कि कोई मुझे कुछ भोजन दे दो, नहीं तो थोड़ा जल ही पिला दो। तब उसकी प्रार्थना सुनकर भवन से एक सज्जन पुरुष बाहर आएं। उन्होंने कहा कि मुझे माफ़ करना देवी! आज आपको यहां अन्न का दान नहीं मिल सकता। आज सीता नवमी है, जिसके कारण सबका व्रत है और आज अन्न का दान करने से पाप भी लग सकता है। आप कल आरती तक रुकें, आपको प्रसाद में अच्छा भोजन और साथ में जल भी मिलेगा।

परन्तु भूख से व्याकुल वह चाण्डालिनी, बार-बार विनती करने लगी कि ‘मुझे कुछ तो खाने को दे दो’ तब उस सज्जन ने तुलसी के कुछ पत्र और थोड़ा सा जल उसे दान के रूप में दे दिए। तुलसीदल और जल को ग्रहण करने के बाद, वह वहां से चली गई, लेकिन थोड़े ही समय में भूख से उसकी मृत्यु हो गई।

अब चमत्कार यह हुआ कि चूँकि उस पीड़ित स्त्री ने अनजाने में ही सीता नवमी पर व्रत किया और पूरे दिन कुछ न खाकर सिर्फ तुलसी और जल ग्रहण किया, इसलिए उसे विधिपूर्वक व्रत और व्रत का पारण करने का भी फल मिला। सीता माँ की कृपा से उसके सभी पापों का नाश हुआ, और मृत्यु के बाद वह स्वर्ग को प्राप्त हुई। शोभना ने स्वर्ग में कई वर्ष आनंदपूर्वक बिताएं और सभी सुखों का भोग किया। इसके बाद उन्होंने कामरूप राज्य के राजा जयसिंह की पत्नी कामकला के रूप में जन्म लिया। अपने इस जन्म को उन्होंने माता सीता और श्रीराम जी की भक्ति के लिए समर्पित कर दिया।

तो भक्तों! यह थी सीता नवमी की व्रत कथा। हम कामना करते हैं कि माता सीता की कृपा से आपके जीवन के सभी कष्ट दूर हो। ऐसी ही अन्य व्रत कथाओं के लिए जुड़े रहें श्री मंदिर के साथ, जय सीता मैय्या की।

divider
Published by Sri Mandir·April 25, 2025

Did you like this article?

srimandir-logo

श्री मंदिर ने श्रध्दालुओ, पंडितों, और मंदिरों को जोड़कर भारत में धार्मिक सेवाओं को लोगों तक पहुँचाया है। 50 से अधिक प्रसिद्ध मंदिरों के साथ साझेदारी करके, हम विशेषज्ञ पंडितों द्वारा की गई विशेष पूजा और चढ़ावा सेवाएँ प्रदान करते हैं और पूर्ण की गई पूजा विधि का वीडियो शेयर करते हैं।

Address:

Firstprinciple AppsForBharat Private Limited 435, 1st Floor 17th Cross, 19th Main Rd, above Axis Bank, Sector 4, HSR Layout, Bengaluru, Karnataka 560102

Play StoreApp Store

हमे फॉलो करें

facebookinstagramtwitterwhatsapp

© 2025 SriMandir, Inc. All rights reserved.