पूजा के सही तरीके, सामग्री और इस महत्वपूर्ण त्योहार के धार्मिक अनुष्ठानों की पूरी जानकारी प्राप्त करें।
हर वर्ष आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजयदशमी या दशहरा का पर्व मनाया जाता है जो कि धर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी तिथि पर माता दुर्गा ने राक्षसों की राजा महिषासुर का वध किया था और इसी दिन शिव राम ने रावण का भी संहार किया था।
दशहरा पर्व पर भगवान राम लक्ष्मण व माता सीता की पूजा का विधान है। इसके अलावा इस माता दुर्गा के स्वरूप जया विजया की भी उपासना की जाती है।
हर अनुष्ठान की तरह दशहरा पूजा के लिए भी कुछ सामान्य पूजा सामग्री की जरूरत होती है। जैसे- गाय का गोबर, धूप बत्ती, रोली- मौली, जनेऊ, कुमकुम, अक्षत, फूल, फल, नैवेद्य आदि।
दशहरा पर मुख्य रूप से तीन प्रकार की पूजा की जाती है:
सीमोल्लंघन व शमी पूजन
शमी शमयते पापं शमी लोहितकंटका। धारिण्यर्जुनबाणानां रामस्य प्रियवादिनी।। करिष्यमाणयात्रायां यथाकाल सुखं मया। तत्र निर्विघ्नकत्रिम त्वं भव श्रीरामपूजिते।।
प्रार्थना करने के बाद शमी के वृक्ष पर रोली अक्षत से तिलक करें। इसके बाद फूल व सुपारी चढ़ाएं। दक्षिण के रूप में तांबे का सिक्का चढ़कर सात बार शमी के वृक्ष की परिक्रमा करें। अपराजिता देवी पूजन
हारेण तू विचित्रेण भास्वत्कनकमेखला।
अपराजिता भद्र्रता करोतु विजयं मम।।
शस्त्र पूजा (आयुध पूजा)
उत्तर: दशहरा पूजा अभिजित काल, विजय मुहूर्त या अपराह्न काल में करना शुभ माना जाता था।
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