गोवत्स द्वादशी 2024 | Govatsa Dwadashi Kab Hai, Shubh Muhurat, Puja Vidhi, Katha

गोवत्स द्वादशी 2024

क्या आप जानते हैं गोवत्स द्वादशी 2024 की सही तिथि और शुभ मुहूर्त? जानें पूजा विधि और कथा के बारे में यहाँ!


गोवत्स द्वादशी (बछ बारस) | Govatsa Dwadashi

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गौमाता को समर्पित है इसलिए इसे गोवत्स द्वादशी के नाम से जाता है। कई क्षेत्रों में यह वसु बारस या नंदिनी व्रत के नाम से भी मनाई जाती है। आज इस लेख में हम आपको गोवत्स द्वादशी से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी से अवगत कराएँगे।

इस लेख में हम जानेंगे कि -

  • गोवत्स द्वादशी कब है?
  • गोवत्स द्वादशी प्रदोष काल मुहूर्त क्या है?
  • गोवत्स द्वादशी का महत्व क्या है?
  • गोवत्स द्वादशी की पूजा विधि और नियम क्या हैं?
  • गोवत्स द्वादशी की कथा क्या है?

गोवत्स द्वादशी कब है?

  • साल 2024 में गोवत्स द्वादशी 28 अक्टूबर 2024, सोमवार को मनाई जाएगी।
  • गोवत्स द्वादशी प्रदोष काल मुहूर्त शाम 05 बजकर 20 मिनट से रात 07 बजकर 53 मिनट तक रहेगा।
  • मुहूर्त की कुल अवधि 02 घंटे 33 मिनट होगी।
  • द्वादशी तिथि का प्रारम्भ 28 अक्टूबर 2024, सोमवार को सुबह 07 बजकर 50 मिनट पर होगा।
  • द्वादशी तिथि का समापन 29 अक्टूबर 2024, मंगलवार को सुबह 10 बजकर 31 मिनट पर होगा।

इस दिन के अन्य शुभ मुहूर्त कुछ इस प्रकार हैं:

  • ब्रह्म मुहूर्त - 04:22 ए एम से 05:13 ए एम
  • प्रातः सन्ध्या - 04:47 ए एम से 06:03 ए एम
  • अभिजित मुहूर्त - 11:19 ए एम से 12:04 पी एम
  • विजय मुहूर्त - 01:34 पी एम से 02:19 पी एम
  • गोधूलि मुहूर्त - 05:20 पी एम से 05:45 पी एम
  • सायाह्न सन्ध्या - 05:20 पी एम से 06:36 पी एम
  • अमृत काल - 08:12 ए एम से 10:00 ए एम
  • निशिता मुहूर्त - 11:16 पी एम से 12:07 ए एम, अक्टूबर 29

गोवत्स द्वादशी महत्व

माताएं इस व्रत को अपनी संतान की लम्बी आयु और उनके संरक्षण के लिए रखती हैं। जो महिलाएं संतान-प्राप्ति का सुख को भोगना चाहती हैं, वे इस दिन गोमाता और बछड़े की पूजा करती हैं, और इस दिन विधिपूर्वक व्रत का पालन करती हैं। इस व्रत और पूजन करने से अज्ञानतावश गाय पर किए अत्याचारों के पाप से भी मुक्ति मिलती है।

हिन्दू संस्कृति में गौ अर्थात गाय कि महत्ता को इस बात से समझा जा सकता है, कि गाय में हर देवी-देवताओं का वास माना जाता है, इसीलिए गाय पूजनीय होती है। इस तरह गोवत्स द्वादशी गोमाता से मिलने वाले अनेक लाभों के लिए उनको आभार व्यक्त करने का शुभ अवसर है।

गोवत्स द्वादशी पूजा विधि और नियम

  • इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं सवेरे स्नान करके साफ वस्त्र पहनें और व्रत का संकल्प लें।
  • इसके बाद गाय और उसके बछड़े को साफ पानी से स्नान करवाएं, उन्हें पूर्ण रूप से सजाएं, और दोनों को नए वस्त्र ओढ़ाएं।
  • दोनों को फूलों की माला पहनाकर उनके माथे पर कुमकुम हल्दी और बाजरे से तिलक लगाएं।
  • यदि आपके पास बाजरा नहीं है, तो अक्षत या मूंग भी उपयोग कर सकती हैं।
  • गऊ माता और बछड़े को हरा चारा, अंकुरित मूंग-मौठ, भीगे चने व मीठी रोटी एवं गुड़ आदि श्रद्धा से खिलाएं।
  • गाय की आरती उतारें। अब गाय और बछड़े को सहलाएं, उनसे क्षमा याचना करते हुए उनकी परिक्रमा करें।
  • यदि आपके घर में गाय और बछड़े न हों, तो घर के आस-पास घूमने वाले गाय व बछड़े की पूजा कर सकते हैं।
  • यदि यह भी संभव न हों तो शुद्ध गीली मिट्टी से गाय-बछड़े की प्रतीकात्मक प्रतिमा बनाकर, उसकी पूजा करने का भी विधान है।
  • इस दिन महिलाएं सिर्फ बिना कटे हुए कंद-मूल, फल और बाजरे से बना खाना आदि ग्रहण करती हैं।
  • इस दिन महिलाएं चाकू से कटा हुआ कुछ नहीं पकाती, और न ही ग्रहण करती हैं।
  • इस दिन गेहूं से बने खाद्य को भी ग्रहण नहीं किया जाता है।
  • साथ ही इस दिन गाय के दूध से बनी हर चीज का सेवन वर्जित माना जाता है।

गोवत्स द्वादशी की कथा

किसी समय में एक राजा हुआ करता था, जिसकी दो रानियां थी - सीता और गीता। उस राजा के पास एक भैंस और एक गाय थी। रानी सीता को भैंस अतिप्रिय थी, जबकि रानी गीता गाय को बहुत दुलार करती थी। कुछ समय बाद गाय को एक बछड़ा हुआ। एक दिन ईर्ष्यावश भैंस ने रानी सीता को गाय और उसके बछड़े के विरुद्ध कुछ बातें कही, जिनपर रानी ने विश्वास कर लिया और क्रोध में आकर बछड़े को मार दिया और उसे गेहूं के खेत में दबा दिया।

संध्या समय जब राजा भोजन करने बैठा तो उसे अपने महल में चारों ओर केवल मांस और खून दिखाई देने लगा। राजा को परोसा हुआ भोजन भी मलीन हो गया और पूरे राज्य में खून की वर्षा होने लगी। राजा कुछ समझ पाते, उससे पहले ही एक आकाशवाणी हुई, जिससे राजा को रानी सीता की करतूत का पता चला।

राजा ने दुखी मन से उस आकाशवाणी से इस समस्या का हल पूछा। आकाशवाणी से आवाज आई कि कल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी है। इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से और गाय और बछड़े की पूजा करने से वह मृत बछड़ा जीवित हो जाएगा और आपको इस पाप से भी मुक्ति मिले जाएगी।

राजा ने ऐसा ही किया, जिससे वह बछड़ा जीवित हो गया। इसके बाद राजा ने पूरे राज्य में हर वर्ष गोवत्स द्वादशी का व्रत और पूजन करने की घोषणा की। मान्यताओं के अनुसार तब से यह पूजा और व्रत किया जा रहा है।

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