गुरु पूर्णिमा 2025 पर जानिए इस पावन दिन की तिथि, पूजा विधि और क्यों यह आपके आध्यात्मिक जीवन में बेहद खास है
गुरु पूर्णिमा एक पावन पर्व है, जो गुरु के प्रति श्रद्धा और आभार प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। यह आषाढ़ मास की पूर्णिमा को आता है। इस दिन विद्यार्थी अपने गुरु का पूजन और आशीर्वाद लेते हैं। आइये जानते हैं इसके बारे में...
हर युग में ही शिष्यों के जीवन में गुरु का विशेष स्थान रहा है। गुरु के इसी महत्व को देखते हुए हर वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन महर्षि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था, इसीलिए इस पूर्णिमा तिथि को वेदव्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। चलिए जानते हैं इस साल गुरु पूर्णिमा की तिथि, शुभ मुहूर्त, और महत्व के बारे में...
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 03:49 AM से 04:30 AM तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:10 AM से 05:11 AM तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:35 AM से 12:29 PM तक |
विजय मुहूर्त | 02:19 PM से 03:14 PM तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:51 PM से 07:12 PM तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:53 PM से 07:54 PM तक |
अमृत काल | 05:14 AM से 06:41 AM तक |
गुरु पूर्णिमा हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाने वाला एक अत्यंत पवित्र पर्व है। यह दिन गुरु के प्रति श्रद्धा, समर्पण और कृतज्ञता प्रकट करने का विशेष अवसर होता है। “गुरु” का अर्थ है— अंधकार (अज्ञान) को दूर करने वाला।
गुरु पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, जिन्होंने वेदों का संकलन और महाभारत जैसे ग्रंथ की रचना की। यह दिन भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिक, शैक्षणिक और सामाजिक रूप से गुरु के महत्व को दर्शाता है।
गुरु पूर्णिमा मनाने के पीछे कई पौराणिक और सांस्कृतिक कारण हैं:
गुरु पूर्णिमा भारत की उन दिव्य तिथियों में से एक है, जब हम अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण पथप्रदर्शक गुरु को नमन करते हैं। यह दिन आत्मज्ञान, आध्यात्मिक उत्थान और जीवन में श्रेष्ठ मार्गदर्शन के लिए गुरु के प्रति श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है। गुरु न केवल शिक्षा देते हैं, बल्कि व्यक्ति को अंधकार से निकालकर आत्मज्ञान के प्रकाश में लाते हैं।
जीवन में संस्कार व सफलता बिना किसी गुरु के संभव नहीं है। इसीलिए गुरुओं को सम्मान देने के लिए गुरु पूर्णिमा मनाने की परंपरा शुरू हुई। कई शोध इस बात की पुष्टि करते हैं कि वेद व्यास जी ने हिन्दू संस्कृति के चारों वेद, महाकाव्य महाभारत और कई पुराणों की रचना की, इस कारण उन्हें प्राचीन भारत का प्रथम गुरु माना जाता है, और उन्हीं के सम्मान में ये पर्व मनाया जाता है।
बौद्ध धर्म के लोगों के लिए भी गुरु पूर्णिमा के दिन का विशेष महत्व है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध ने सारनाथ में अपना पहला उपदेश इसी दिन दिया था।
1. प्रातः स्नान एवं संकल्प
2. गुरु पूजन
3. व्यास पूजा
4. भजन, कीर्तन, सत्संग व श्लोक-पाठ
5. भंडारा व दान-पुण्य करें
6. स्व-अध्ययन और आत्ममंथन
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः। तत्त्वज्ञानात् परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
महर्षि वेदव्यास को ‘ज्ञान का सूर्य’ कहा जाता है। उन्होंने वेदों का विभाजन कर ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का संकलन किया। इसी दिन उनका जन्म हुआ था, और वे ही आदि गुरु माने जाते हैं। इसीलिए यह दिन व्यास पूर्णिमा भी कहलाता है।
तो यह थी गुरु पूर्णिमा से जुड़ी पूरी जानकारी। आज आप जिस भी मुकाम पर हैं, उसके लिए अपने गुरुओं का आभार अवश्य व्यक्त करें। हमारी कामना है कि आपको सदैव गुरुओं का सानिध्य व आशीर्वाद मिलता रहे। ऐसे ही व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' पर
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