गुरु रविदास जयंती 2025 तिथि और महत्व
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गुरु रविदास जयंती 2025 तिथि और महत्व

गुरु रविदास जयंती 2025: जानिए इस दिन का महत्व और संत रविदास जी की प्रेरणादायक शिक्षाएं जो समाज को समानता और प्रेम का संदेश देती हैं।

गुरु रविदास जयंती के बारे में

गुरु रविदास जयंती, भारत के महान संत और कवि गुरु रविदास की जयंती के रूप में मनाई जाती है। गुरु रविदास ने समाज में भेदभाव और जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई और सच्चे प्रेम, समता और मानवता के संदेश दिए। उनकी जयंती माघ माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है, जो खासकर पंजाब, उत्तर प्रदेश और बिहार में धूमधाम से मनाई जाती है।

गुरु रविदास जयंती 2025

रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच, नकर कूं नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच

अर्थात्- कोई भी इंसान किसी जाति में जन्म की वजह से छोटा नहीं होता है। व्यक्ति को नीच उसके कर्म बनाते हैं। इसलिए हमें हमेशा अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए।

जिस तरह संसार का अंधेरा हरने को सुबह का सूर्योदय होता है, उसी तरह समाज व व्यवस्था में रच बस चुकी बुराइयों को दूर करने को धरती पर संत-महापुरूषों का अवतरण होता है। संत-महात्माओं से समृद्ध मां भारती की पावन धरा पर हर सदी, हर युग में कुछ ऐसे सपूत जन्मे हैं, जिन्होंने अपने विचारों से न सिर्फ़ दुनिया को राह दिखाई, बल्कि उनके पीछे पूरा संसार चला। विश्व प्रसिद्ध भारतीय संत-परंम्परा के एक ऐसे ही अद्भुत नगीने हैं- संत रविदास, जिनके लिए उनका कर्म और परोपकार की भावना ही ईश्वर की सच्ची भक्ति थी। इस लेख में हम संत रविदास से जुड़े जिन बिंदुओं पर बात करेंगे, वो हैं-

रविदास जयंती कब है?

कर्मयोगी संत रविदास जी की जयंती हर साल माघ महीने के पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस साल उनकी जयंती माघ शुक्ल पक्ष में 12 फरवरी 2025, बुधवार को पड़ रही है।

उनके जन्म के बारे में एक दोहा प्रसिद्ध है-

चौदह सौ तैंतीस की माघ सुदी पंदरास। दुखियों के कल्याण हित, प्रगटे श्री रविदास।।

उत्तर प्रदेश की प्रसिद्ध धार्मिक नगरी काशी के गोवर्धनपुर गांव में माघ पूर्णिमा के दिन जन्मे रविदास की माता का नाम कलसा देवी और पिता का नाम संतोष दास था। कुछ जानकार कहते हैं कि उनका जन्म सन् 1450 के आस-पास हुआ था। हालांकि इस बात पर आज तक काफ़ी मदभेद हैं।

रविदास जयंती क्यों मनाई जाती है?

रविदास जी के जीवन से जुड़े एक-दो नहीं बल्कि कई ऐसे प्रसंग है जो हमें अपना जीवन शांति और सद्भावना के साथ जीने की प्रेरणा देते हैं। संत रविदास जयंती के दिन उनके अनुयायी श्रद्धाभाव से पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और इसके बाद अपने गुरु, यानि रविदास जी के जीवन से जुड़ी कई प्रेण्णदायक व रोचक घटनाओं को याद करके उनसे सीख लेते हैं। ये दिन रविदास जी के अनुयायियों के लिए एक उत्सव जैसा होता है। इस दिन उनके जन्म स्थान पर लाखों की संख्या में भक्तों की भीड़ होती है और कई भव्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इन कार्यक्रमों में लोग रविदास जी के दोहे गाते हैं उनसे प्रेरणा लेते है, साथ ही भजन-कीर्तन आदि भी करते हैं।

रविदास जी संत कैसे बने?

रविदास जी के संत बनने से जुड़ी एक प्रचलित कथा है। जिसके अनुसार- एक दिन की बात है जब रविदास जी अपने दोस्त के साथ खेल रहे थे। लेकिन अगले दिन जब वो खेलने के लिए उसी जगह पर पहुंचे तो उनका वो साथी नहीं आया। ऐसा हुआ तो रविदास जी उसे खोजने निकल पड़े। तभी उन्हें पता चला कि उनके उस दोस्त की मौत हो चुकी है। ये सुनते ही रविदास जी बहुत दुखी हुए और अपने दोस्त के शव के पास जाकर बोले, “उठो ये सोने का समय नहीं है, ये मेरे साथ खेलने का समय है। जैसे ही रविदास जी ने इतना कहा, उनका मृत साथी उठकर खड़ा हो गया।

मान्यता है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि रविदास जी को बचपन से ही कई अलौकिक शक्तियां प्राप्त थीं। इस दिन से ही लोग उनकी शक्तियों पर विश्वास करने लगे। समय के साथ रविदास जी भगवान राम और श्री कृष्ण की भक्ति में लीन रहने लगे, और धर्म कर्म राह पर चलते हुए वो संत बन गए।

गुरु रामानंद के शिष्य तो मीराबाई के गुरु थे रविदास

महात्मा रविदास, संत कबीर से ख़ासे प्रभावित थे और उन्हें आदर्श मानते थे। कबीरदास जी ने भी 'संतन में रविदास' कहकर उनके क़द का बखान किया है। हलांकि वे संपन्न परिवार से थे, लेकिन कबीरदास जी से प्रेरित होकर उन्होंने स्वामी रामानंद को अपना गुरु बनाया और अध्यात्म की राह पर चल पड़े।

इनकी साधना और भावुकता, सहजता से परमात्मा की सेवा में लीन रहना सिखाती है। शायद इसी कारण महान कृष्ण भक्त, कवियत्री व चित्तौड़ की रानी मीराबाई ने उन्हें अपना गुरु स्वीकार किया, और कहा-

‘गुरु मिलिआ संत गुरु रविदास जी, दीन्ही ज्ञान की गुटकी’

जाति-पांति के भेदभाव की खाई को पाटती ऐसी गुरु-शिष्य परंपरा इतिहास में अनूठी है।

कर्म को ही पूजा मानते थे संत रविदास

चर्मकार कुल में पैदा हुए रविदास जी जूते बनाने का काम किया करते थे और ये कार्य वे बिना किसी मलाल के, पूरी लगन, मेहनत व खुशी के साथ करते थे। उनके लिए उनका कर्म किसी आराधना से कम नहीं था। वे जितने कर्मठ थे, उतने ही ईश्वर भक्त। जितने सामाजिक थे, उतने ही संत। वे ईश्वर भक्ति में किसी आडंबर के बिल्कुल खिलाफ थे। 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' की दी गई उनकी अमर सीख आज सदियों बाद भी उतनी ही प्रासंगिक है। समाज में फैली कुरीतियों के चलते भले ही उन्हें सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा, पर दूसरों को उन्होंने हमेशा प्रेम व मानवता की ही सीख दी।

बराबरी व समानता के समर्थक

संत रविदास की रचनाओं में राम, कृष्ण, करीम, रघुनाथ, गोविंद, राजा रामचंद्र आदि नामों से हरि सुमिरन मिलता है, पर मूल रूप से वे उस निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे, जो सभी प्राणियों में समान व्याप्त है। उनका मानना था कि ईश्वर ने इंसान बनाया है, इंसान ने ईश्वर नहीं बनाया। यानि इस धरती पर सभी को भगवान ने ही रचा है, इसलिए सभी के अधिकार समान हैं। कोई छोटा या बड़ा नहीं है। वे भक्तिमयी मधुर भजनों की रचना कर, उन्हें भाव विभोर होकर सुनाया करते थे। उनके उपदेशों का इतना गहरा असर हुआ कि समाज के हर तबके के लोग उनके अनुयायी बन गए।

संत रविदास के कई पद व भजन सिखों के पवित्र धर्म ग्रंथ गुरूग्रंथ साहिब में मिलते हैं।

आशा है कि इस लेख से आपको रविदास जयंती की संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी। ऐसी ही उपयोगी और धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर पर।

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Published by Sri Mandir·January 31, 2025

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