जन्माष्टमी की व्रत कथा

जन्माष्टमी की व्रत कथा

पढ़ें व्रत कथा और पाएं कान्हा का आशीर्वाद


द्वापर युग की बात है, मथुरा के राजा कंस का महल किसी दुल्हन की तरह सजा हुआ था। पूरे नगर में चहल-पहल थी और चारों ओर खुशी का माहौल था। यह अवसर था कंस की बहन देवकी के विवाह का। कंंस एक क्रूर और अत्याचारी राजा था, लेकिन वह अपनी बहन से अत्यंत प्रेम करता था।

बड़ी धूमधाम से देवकी और वासुदेव का विवाह संपन्न हुआ, लेकिन यह खुशियां कुछ ही पलों में मातम में बदल गईं। विवाह के पश्चात् एक आकाशवाणी हुई, जिसमें कहा गया कि देवकी का आठवां पुत्र ही कंस की मृत्यु का कारण बनेगा।

इस आकाशवाणी से देवकी और वासुदेव की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई। कंस ने क्रोधित होकर वासुदेव को मारने का फैसला किया, देवकी यह देखकर घबरा गई और अपने पति के प्राणों की भीख मांगने लगी। कंस ने देवकी के आग्रह पर वासुदेव के प्राण छोड़ दिए और यह निश्चय किया कि वह एक-एक करके देवकी की सभी संतानों की हत्या कर देगा।

और इसके पश्चात उसने अपनी ही बहन को उसके पति के साथ कारागार में बंद कर दिया। कारागार में देवकी ने पहले पुत्र को जन्म दिया और कंस को जैसे ही यह बात पता चली, उसने देवकी से उस नन्हे बच्चे को छीन लिया और उसकी निर्मम रूप से हत्या कर दी।

कंस का अत्याचार यहां पर नहीं रुका, उसने बेरहमी से देवकी की 7 संतानों की हत्या कर दी। देवकी और वासुदेव बेबस होकर अपनी ही संतानों की हत्या देखने को मजबूर थे। कुछ समय बाद देवकी की आठवीं संतान के जन्म का समय भी निकट आ रहा था। यह देखते हुए कंस ने कारागार में पहरेदार भी बढ़ा दिए।

एक दिन भगवान विष्णु ने वासुदेव और देवकी को स्वप्न में दर्शन दिए और अपने मनुष्य अवतार में जन्म लेने की बात बताई। भगवान ने उन्हें यह भी कहा कि मेरे जन्म के बाद ही आप मुझे अपने मित्र नन्द के यहां छोड़ आना, मेरा लालन-पालन वहीं होगा।

उस समय नंद के घर में भी नन्हे मेहमान का आगमन होने वाला था। जैसे ही अर्धरात्रि को कृष्ण का जन्म हुआ, उस कारागार के सभी पहरेदार गहरी नींद में सो गए, और कारागार के द्वार अपने आप खुल गए।

वासुदेव ने बालगोपाल को टोकरी में रखा और गोकुल की ओर चल पड़ें। रास्ते में भीषण वर्षा और उफनती यमुना के बीच जैसे ही वासुदेव टोकरी को अपने सिर पर रखकर आगे बढ़ें, यमुना ने उनके लिए रास्ता बनाया और शेषनाग ने अपना फन फैलाकर बालगोपाल और वासुदेव की तेज बारिश से रक्षा की।

वासुदेव गोकुल पहुंचे और बाल कृष्ण को नंद के घर सुलाकर वहीं छोड़ आए और यशोदा और नन्द की नवजात शिशु माया को अपने साथ मथुरा ले आए। यहां जैसे ही कंस ने माया को देवकी की संतान समझकर उसे मारने की कोशिश की, तभी वह कन्या कंस के हाथों से छूटकर आकाश में उड़ गई और एक दिव्य प्रकाश में परिवर्तित हो गई।

उस प्रकाश से फिर आकाशवाणी हुई कि 'हे दुष्ट! तू मुझे जो समझ कर मेरा वध करना चाहता है, मैं वो नहीं हूँ। तेरा काल गोकुल में सुरक्षित पहुंच चुका है, और वही तेरा विनाश करेगा। इतना कहकर वह प्रकाश अंतर्ध्यान हो गया।

इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और उन्होंने अपने जीवनकाल में कई लीलाएं रचीं और कंस का वध करके, उसे अत्याचारों का भी अंत किया। जिस दिन उनका जन्म हुआ था, उस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।

श्री मंदिर द्वारा आयोजित आने वाली पूजाएँ

देखें आज का पंचांग

slide
कैसा रहेगा आपका आज का दिन?
कैसा रहेगा आपका आज का दिन?

Download Sri Mandir app now !!

Connect to your beloved God, anytime, anywhere!

Play StoreApp Store
srimandir devotees
digital Indiastartup Indiaazadi

© 2024 SriMandir, Inc. All rights reserved.