झूलेलाल जयंती 2025 – जब वरुण देव ने लिया अवतार! पढ़ें भगवान झूलेलाल की कथा, उनकी महिमा और इस शुभ दिन के उत्सव की परंपराएं।
झूलेलाल जयंती सिंधी समाज का प्रमुख पर्व है, जो जल देवता झूलेलाल जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह चैत्र महीने की चंद्र शुक्ल पक्ष की दूज तिथि को मनाई जाती है। झूलेलाल जी को वरुण देव का अवतार माना जाता है।
झूलेलाल जयंती सिंधी समाज का एक प्रमुख त्यौहार है। इसे चेटीचंड के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है की भगवान झूलेलाल वरुण देव का ही एक रूप हैं। शास्त्रों के अनुसार झूलेलाल जयंती चैत्र माह की द्वितीया तिथि को मनाई जाती है।
चलिए जानते हैं,
2025 में झूलेलाल जयंती/चेटी चण्ड 30 मार्च, रविवार को मनाई जाएगी।
सिंधी समाज में झूलेलाल जयंती या चेटीचंड महोत्सव का अत्यंत महत्व है। इस पर्व से ही सिंधी नववर्ष का शुभारंभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान झूलेलाल का जन्म हुआ था। भगवान झूलेलाल ने सदैव अपने भक्तों की पुकार सुनी और धर्म की रक्षा की।
इस महोत्सव से जुड़ी मान्यता के अनुसार, प्राचीन काल में सिंध प्रांत के ठट्ठा नामक नगर में एक मिरखशाह नाम के राजा रहते थे। राजा मिरखशाह हिंदुओं पर अत्यंत अत्याचार करता था। इतना ही नहीं, वो हिंदुओं पर धर्म परिवर्तन करने के लिए दबाव बनाने लगा, और उन्हें धर्मपरिवर्तन के लिए 7 दिन का समय दिया। लोगों को जब राजा के अत्याचार से बचने का कोई उपाय ना सूझा, तो वो सब मिलकर सिंधु नदी के किनारे पहुंचे, और अन्न-जल त्यागकर वरुण देव की उपासना करने लगे। अपने भक्तों की करुण पुकार सुनकर वरुण देवता का दिल द्रवित हो उठा, जिसके पश्चात् वो एक दिव्य पुरुष के रूप में मछली पर अवतरित हुए और भक्तों से कहा- मेरे प्रिय भक्तों, तुम लोग निराश ना हो! मैं तुम लोगों की सहायता के लिए 40 दिन बाद अपने भक्त रतनराय के घर देवकी माता के गर्भ से जन्म लूंगा।
भक्तों को दिए गए वचन के अनुसार चैत्र माह की द्वितीया तिथि को एक बालक ने जन्म लिया, जिसने मिरखशाह के अत्याचारों से सभी की रक्षा की।
झूलेलाल जयंती से जुड़ी एक मान्यता के अनुसार, कहते हैं कि जब सिंधी व्यापारी जल के रास्ते होकर गुज़रते थे, तो उन्हें भिन्न-भिन्न तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता था। तूफान, समुद्री लुटेरे, समुद्री जीव, चट्टाने आदि उनके रास्ते में रुकावट बनते थे। ऐसे में अपने पुरुषों की रक्षा करने के लिए स्त्रियां जल के देवता भगवान झूलेलाल के उपासना करती थी, एवं जब पुरुष यात्रा से सकुशल लौट आते थे, तब चेटीचंड उत्सव मनाया जाता था।
इसमें वरुण देव से से गई मन्नत पूरी की जाती थी और भंडारे का भी आयोजन किया जाता था। तबसे लेकर आज तक इस दिन सिंधी लोग गीतों के माध्यम से भगवान झूलेलाल की महिमा का वर्णन करते हैं और प्रसाद के रूप में मीठे चावल, उबले नमकीन चने, और शरबत बांटते हैं।
तो भक्तों, यह थी झूलेलाल जयंती से जुड़ी विशेष जानकारी। ऐसी ही धार्मिक व रोचक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' पर।
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