ज्येष्ठ पूर्णिमा उपवास 2025
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ज्येष्ठ पूर्णिमा उपवास 2025

ज्येष्ठ पूर्णिमा उपवास 2025 पर करें पवित्र स्नान, व्रत और दान। जानें इस दिन का धार्मिक महत्व, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त आध्यात्मिक लाभ के लिए जरूर पढ़ें।

ज्येष्ठ पूर्णिमा उपवास के बारे में

ज्येष्ठ पूर्णिमा उपवास का विशेष महत्व है। यह दिन धार्मिक स्नान, दान और व्रत के लिए उत्तम माना जाता है। भगवान विष्णु और शिव की पूजा की जाती है। उपवास से पापों का नाश और पुण्य की प्राप्ति होती है।

ज्येष्ठ पूर्णिमा कब है?

  • ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर 10 जून 2025, मंगलवार को किया जाएगा।
  • पूर्णिमा तिथि 10 जून 2025, मंगलवार को दिन में 11 बजकर 35 मिनट पर प्रारंभ होगी।
  • पूर्णिमा तिथि का समापन 11 जून 2025, सोमवार को दिन में 1 बजकर 13 मिनट पर होगा।
  • वट सावित्री अमावस्या व्रत 26 मई 2025 को, सोमवार को किया गया।

चलिए अब जानते हैं ज्येष्ठ पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त

मुहूर्तसमय
ब्रह्म मुहूर्त 03:44 ए एम से 04:26 ए एम
प्रातः सन्ध्या 04:05 ए एम से 05:07 ए एम
अभिजित मुहूर्त 11:30 ए एम से 12:25 पी एम
विजय मुहूर्त 02:14 पी एम से 03:09 पी एम
गोधूलि मुहूर्त 06:47 पी एम से 07:08 पी एम
सायाह्न सन्ध्या 06:48 पी एम से 07:50 पी एम
अमृत काल 06:32 ए एम से 08:18 ए एम
निशिता मुहूर्त 11:37 पी एम से 12:18 ए एम, जून 11

विशेष योग

रवि योग 05:07 ए एम से 06:02 पी एम

वट सावित्री व्रत: साल में 2 बार क्यों मनाया जाता है?

ज्येष्ठ पूर्णिमा और ज्येष्ठ अमावस्या

  • वट सावित्री व्रत भारत के विभिन्न क्षेत्रों में दो अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाता है।
  • उत्तर भारत (विशेषतः उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश बिहार और झारखंड) में यह व्रत ज्येष्ठ अमावस्या को मनाया जाता है।
  • जबकि महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में यह पर्व ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाया जाता है।

इसलिए एक ही पर्व को साल में दो बार मनाने की स्थिति बनती है, हालांकि उसका मूल उद्देश्य एक ही रहता है — पति की लंबी उम्र और वैवाहिक सुख की कामना।

क्या है पूर्णिमा व्रत?

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार हर माह के शुक्ल पक्ष के पंद्रहवे दिन को पूर्णिमा तिथि के नाम से जाना जाता है। इस तिथि पर रात के समय चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं को पूर्ण करके अपने सम्पूर्ण रूप में आकाश में प्रकाशमान होता है।

जानें पूर्णिमा व्रत का महत्व

हमारे पुराणों में पूर्णिमा तिथि और इस दिन व्रत करने का महात्म्य बहुत अधिक है। एक ओर जहां चन्द्रमा की श्वेतिमा हमें इस दिन की दिव्यता का अनुभव करवाती है। वहीं इस दिन किसी भी तीर्थ स्थल पर स्नान के लिए उमड़ी भक्तों की भीड़ हमें बताती है कि पूर्णिमा पर तीर्थ स्नान, दान और व्रत करना कितना महत्वपूर्ण होता है।

कहते हैं कि पूर्णिमा के दिन व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट होते हैं और उन्हें पुण्यफल की प्राप्ति होती है। मान्यताएं हैं कि पूर्णिमा के दिन व्रत और स्नान-दान आदि करने से घर में सुख-समृद्धि निवास करते हैं, तथा सभी क्लेशों का नाश होता है।

पूर्णिमा व्रत के साथ किये जाने वाले अनुष्ठान

पूर्णिमा के दिन व्रत करने के साथ ही चंद्रमा और माता लक्ष्मी की पूजा अवश्य करें। इससे आपके घर में धन-धान्य की कभी कमी नहीं होगी। यदि आपकी कुंडली में चंद्र दोष है तो पूर्णिमा के दिन व्रत करने एवं चंद्रमा की पूजा करने से आपकी कुंडली का चंद्र दोष दूर हो जाएगा।

चूँकि पूर्णिमा तिथि पर चंद्रमा मनुष्य को अधिक प्रभावित करता है, इसलिए इस दिन व्रत एवं चंद्रमा को जल अर्पित करने से आपको विशेष लाभ होगा।

हम अपने 'श्री मंदिर' के पाठकों को सलाह देते हैं कि पूर्णिमा पर व्रत करें, स्नान के बाद घर के पूजा स्थल में दीप जलाकर अपने पितरों का स्मरण करें, एवं श्री सत्यनारायण भगवान की कथा सुनें, इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी और आपको भगवान लक्ष्मीनारायण का आशीष प्राप्त होगा।

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Published by Sri Mandir·May 29, 2025

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