मिथुन संक्रांति 2025 पर सूर्य देव के मिथुन राशि में प्रवेश का महत्व जानें। पढ़ें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और पुण्य लाभ देने वाले कार्यों की जानकारी।
मिथुन संक्रांति सूर्य के मिथुन राशि में प्रवेश का पर्व है। यह दिन धार्मिक कार्यों, दान-पुण्य और स्नान के लिए शुभ माना जाता है। इस दिन सूर्य देव की पूजा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और उन्नति मिलती है।
नमस्कार भक्तों, हिंदू धर्म में भगवान सूर्य को समर्पित कई पर्व मनाए जाते हैं, जिनमें हर महीने में आने वाली संक्रांति भी शामिल हैं। सूर्य हर मास एक राशि से दूसरी राशि में गोचर होते हैं। इस प्रकार सूर्य की राशि के परिवर्तन तिथि को संक्रांति कहा जाता है। एक साल में कुल बारह संक्रांति होती हैं, इस प्रकार मिथुन संक्रांति भी इन्हीं में से एक है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 03:45 ए एम से 04:26 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:06 ए एम से 05:07 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:31 ए एम से 12:26 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:16 पी एम से 03:10 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:48 पी एम से 07:09 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:50 पी एम से 07:52 पी एम तक |
अमृत काल | 02:19 पी एम से 03:58 पी एम तक |
निशिता मुहूर्त | 11:38 पी एम से 12:19 ए एम, जून 16 तक |
सूर्य जब वृषभ राशि से निकल कर मिथुन राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे मिथुन संक्रांति कहा जाता है। पुराणों में इस दिन भगवान सूर्य की उपासना करने का विशेष महत्व बताया गया है, साथ ही ये भी कहा जाता है कि यदि सूर्य भगवान अपने भक्त से प्रसन्न हो जाएं, तो कई ग्रहों के बुरे प्रभाव को टाला जा सकता है, और मनचाहा फल मिलता है।
मिथुन संक्रांति का पर्व भगवान सूर्य की कृपा प्राप्त करने का एक विशेष दिन है, इसे रज पर्व भी कहा जाता है। मिथुन संक्रांति से जुड़ी एक कथा के अनुसार, कहते हैं कि प्रकृति ने इसी दिन स्त्रियों को मासिक धर्म प्रदान किया था। मासिक धर्म के कारण ही स्त्रियों को मातृत्व सुख मिलता है। इसी प्रकार जैसे हर माह स्त्रियों को मासिक धर्म होता है, उसी प्रकार भूदेवी को भी 3 दिन लगातार मासिक धर्म हुआ था। माना जाता है कि धरती के विकास का यही कारण है।
मिथुन संक्रांति का पर्व प्रकृति में बदलाव का संकेत माना जाता है। इस दिन जातक विधि विधान से सूर्य पूजा करते हैं, साथ ही इस पर्व पर दान पुण्य करने का भी विशेष महत्व है।
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, मिथुन संक्रांति एक महत्वपूर्ण तिथि है। इस दिन भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते हैं, साथ ही इस दिन भूदेवी की भी पूजा-अर्चना की जाती है। आगे हम इस लेख में विस्तार पूर्वक इस पूजा-विधि के बारे में बताएंगे इसलिए लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।
इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और किसी पवित्र नदी में स्नान करें। अगर आप नदी में स्नान नहीं कर सकते तो पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करके, सूर्योदय के समय सूर्य देवता के दर्शन करें और उन्हें अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय ‘ऊँ घृणि सूर्याय नम:’ मंत्र का उच्चारण करें। सूर्यदेव को अर्पित किए जाने वाले जल में रोली और लाल पुष्प डाल लें। तत्पश्चात आप लाल आसन पर बैठकर पूर्व दिशा में मुख करके 108 बार सूर्य मंत्र का जाप करें।
इसके बाद अपने घर के मंदिर में रोज की भांति पूरे विधि-विधान से भगवान की पूजा करें। इस दिन भूदेवी के रूप में सिलबट्टे की भी पूजा की जाती है। सिलबट्टे की पूजा के लिए आप सबसे पहले सिलबट्टे को दूध व पानी से स्नान कराएं। तत्पश्चात् सिलबट्टे को सिंदूर, चंदन लगाकर उस पर फूल और हल्दी चढ़ाई जाती है। सभी मौसमी फलों की भेंट भूदेवी को चढ़ाया जाता है और उनका आशीर्वाद मांगा जाता है।
अगर आप इस दिन व्रत रख रहे हैं तो पूजा के बाद फलाहार ग्रहण कर लें और इस दिन दान-दक्षिणा देना न भूलें। इस दिन आप तिल, वस्त्र, और अन्न का दान कर सकते हैं।
इस प्रकार पूजा करने से आपको सूर्य देव और भूदेवी का आशीष प्राप्त होगा।
1. हल्का और सात्विक भोजन:
2. ठंडे और पाचन-सहायक पदार्थ:
3. मिठाइयाँ:
4. अनाज और दान:
मिथुन संक्रांति के पर्व पर गर्मी अपने चरम पर होती है, ऎसे में इस दिन घड़े में जल भरकर उसका दान करने से बहुत पुण्य मिलता है। जल का दान आप जीव जंतुओं के लिए भी कर सकते हैं।
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