
काल भैरव जयंती 2025 पर भगवान काल भैरव की कृपा पाने का तरीका
काल भैरव जयंती भगवान शिव के भैरव रूप की आराधना का पवित्र दिन है। इस दिन भक्त उपवास, पूजा और मंत्र जप कर नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा और जीवन में सुख, समृद्धि व साहस की कामना करते हैं।
इस वर्ष कालभैरव जयंती का पर्व 12 नवम्बर, 2025, बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन भक्त विधिपूर्वक भगवान शिव के रौद्र रूप भगवान कालभैरव की पूजा करते हैं। मान्यता है कि इससे व्यक्ति को बुरी शक्तियों और भय से मुक्ति मिलती है। भगवान शिव का अंश माने जाने वाले काल भैरव जी की जयंती, मार्गशीर्ष मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है।
मुहूर्त  | समय  | 
ब्रह्म मुहूर्त  | 04:29 ए एम से 05:21 ए एम  | 
प्रातः सन्ध्या  | 04:55 ए एम से 06:13 ए एम  | 
अभिजित मुहूर्त  | कोई नहीं  | 
विजय मुहूर्त  | 01:32 पी एम से 02:16 पी एम  | 
गोधूलि मुहूर्त  | 05:11 पी एम से 05:37 पी एम  | 
सायाह्न सन्ध्या  | 05:11 पी एम से 06:29 पी एम  | 
अमृत काल  | 04:58 पी एम से 06:35 पी एम  | 
निशिता मुहूर्त  | 11:16 पी एम से 12:08 ए एम, नवम्बर 13  | 
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, काल भैरव जी की पूजा करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट होते हैं और उन्हें धन-धान्य के साथ-साथ अच्छी सेहत का आशीर्वाद प्राप्त होता है। काल भैरव जी की पूजा के लिए वैसे तो शनिवार का दिन उत्तम है, लेकिन काल भैरव जयंती के ख़ास दिन पर भी इनका ध्यान करना बहुत शभ माना गया है
मान्यता है कि कालभैरव की पूजा करने से सभी शारीरिक रोगों और दुखों से छुटकारा मिलता है। कालभैरव को मृत्यु का देवता भी माना जाता है। उनकी पूजा करने से मृत्यु के डर से मुक्ति मिलती है और जीवन में शांति आती है। कालभैरव की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। कालभैरव को बुरी शक्तियों से रक्षा करने वाला देवता माना जाता है। उनकी पूजा करने से व्यक्ति को बुरी नजर और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा मिलती है। इस दिन उपवास रखकर पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से भगवान भैरव की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन के सभी कष्ट व नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं। इसके अलावा कालभैरव जयंती के सच्चे मन से उपासना करने पर जातक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, और सुख-समृद्धि का वरदान प्राप्त होता है।
मुख्य रूप से भैरव बाबा के दो रूप हैं - बटुक भैरव और काल भैरव। बटुक भैरव को सौम्य और काल भैरव को भैरव बाबा का रौद्र रूप माना जाता है। काल भैरव जी का स्वरूप हाथ में हमेशा एक दंड अर्थात छड़ी लिए होता है। यह छड़ी दर्शाती है, कि वह इसे अपराधियों को दंड देने के लिए रखते हैं।
कालभैरव जयन्ती सभी हिन्दू धर्म के अनुयायी मना सकते हैं।
विशेष रूप से:
भगवान काल भैरव की पूजा करने के लिए रोली, मौली, चावल, फल, फूल मिठाई, फूल माला, घी, दीपक आदि वस्तुओं की आवश्यकता होती है। वहीं, काल भैरव जी के वाहन कुत्ते को इस दिन खाना खिलाना शुभ माना गया है।
इसके साथ-साथ, काल भैरव जयंती पर व्रत रखने का भी विधान है। तो आप भी पूरे दिन फलाहार करके व्रत रह सकते हैं।
भगवान शिव के कालभैरव रूप का काशी से गहरा नाता है। इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि काशी की रक्षा और देखरेख का जिम्मा कालभैरव के पास है, यही कारण है कि काशी विश्वनाथ के दर्शन से पहले कालभैरव का दर्शन करना आवश्यक माना गया है।
यह भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति काशी में आकर कालभैरव के दर्शन नहीं करता, उसे शिवजी के दर्शन का फल प्राप्त नहीं होता। शिव पुराण के अनुसार, कालभैरव भगवान शिव के ही एक रूप हैं। खासकर रविवार और मंगलवार को इनके दर्शन से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
शिव पुराण के अनुसार, एक बार देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु जी से पूछा कि जगत में सर्वश्रेष्ठ कौन है। इस पर ब्रह्मा जी ने स्वयं को श्रेष्ठ बताकर भगवान शिव की निंदा की, जिससे शिवजी क्रोधित हो गए और उन्होंने रौद्र रूप धारण करके कालभैरव को उत्पन्न किया। कालभैरव ने अपने नाखून से ब्रह्मा जी के पांचवे सिर को काटकर उन्हें दंडित किया, जिससे उन पर ब्रह्मा हत्या का दोष लग गया।
इस पाप से मुक्ति पाने के लिए कालभैरव ने काशी में प्रायश्चित किया और यहीं स्थापित हो गए। इस तरह भगवान कालभैरव को काशी का कोतवाल माना गया, और यहां के भक्त उनके आशीर्वाद के बिना कोई कार्य आरंभ नहीं करते।
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