वैकुण्ठ एकादशी कब है? इस दिन भगवान विष्णु की पूजा से मिलेगी शांति और समृद्धि! जानिए तिथि और महत्व।
वैकुण्ठ एकादशी हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र दिन है, जो मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से वैकुण्ठ धाम के द्वार खुलते हैं। भक्त उपवास रखते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं, और भगवान विष्णु का ध्यान करते हैं। यह दिन मोक्ष और पापों से मुक्ति का प्रतीक है।
आज इस लेख में हम बात करेंगे दक्षिण भारत में परम आस्था के साथ मनाई जाने वाली वैकुण्ठ एकादशी के बारे में। यह एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है, और दक्षिण भारत में इसे मुक्कोटी एकादशी के नाम से जाना जाता है।
भारत के एक और दक्षिणी राज्य केरल में भी इस एकादशी तिथि को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, और मलयालम कैलेंडर के अनुसार इसे ‘स्वर्ग वथिल एकादशी’ के नाम से जाना जाता है।
इस वर्ष वैकुण्ठ, मुक्कोटी और स्वर्ग वथिल एकादशी जैसे अलग अलग नामों से पुकारी जाने वाली यह तिथि-
हमारे देश में किसी भी हिस्से में एकादशी पर किये गए व्रत के पारण को बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है। और एकादशी व्रत का पारण अगले दिन द्वादशी तिथि पर हरिवासर की अवधि समाप्त होने के बाद ही किया जाता है।
तो यह है वैकुंठ एकादशी की अवधि और शुभ मुहूर्त की जानकारी।
तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश और केरल में मुख्य रूप से मनाई जाने वाली इस एकादशी पर भगवान विष्णु के भक्त उनके लिए उपवास रखते हैं, रात्रि में जागरण करते हैं और मंदिरों में बनाएं गए वैकुंठ द्वारम से गुजरते हैं। इन सभी कार्यों को बहुत शुभ माना जाता है।
वैकुंठ एकादशी के शुभ अवसर पर दक्षिण भारत के प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी मंदिर, श्रीरंगम रंगनाथस्वामी मंदिर और भद्राचलम सीता रामचंद्र स्वामी मंदिर में बहुत से धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन किये जाते हैं।
वैकुंठ एकादशी और इसके अगले दिन द्वादशी पर भक्त अपने निकटतम स्थित विष्णु जी के मंदिरों के पास बने तालाबों और नदियों में डुबकी लगाकर पवित्र स्नान करते हैं।
भक्त इस दिन किए गए स्नान को ब्रह्मांड की सभी पवित्र नदियों में स्नान करने के बराबर मानते हैं।
तो दोस्तों इस तरह वैकुंठ एकादशी, या मुक्कोटी एकादशी के नाम से प्रचलित यह पर्व उपवास, प्रार्थना, ध्यान और तपस्या का पर्व है।
वैकुण्ठ एकादशी दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला पर्व है। वैकुण्ठ एकादशी के उपलक्ष्य में भक्तजन पूरे समर्पण के साथ भगवान विष्णु की उपासना करते हैं। तमिल कैलेण्डर के अनुसार धनुर माह अथवा धनुर्मास (मार्गाज्ही मास) के दौरान दो एकादशी आती हैं जिनमें से जो एकादशी शुक्ल पक्ष में आती है उसे वैकुण्ठ एकादशी कहते हैं।
वैकुण्ठ एकादशी का व्रत हिन्दू कैलेंडर के अनुसार मार्गशीर्ष या पौष माह में किया जाता है।
वैकुण्ठ एकादशी को मुक्कोटी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। वहीं मलयालम कैलेण्डर में वैकुण्ठ एकादशी को स्वर्ग वथिल एकादशी कहते हैं।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु का निवास स्थान कहे जाने वाले वैकुण्ठ का द्वार खुला रहता है। जो श्रद्धालु इस दिन एकादशी का व्रत करते हैं उनको स्वर्ग की प्राप्ति होती है और उन्हें जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है।
वैकुण्ठ एकादशी का दिन तिरुपति के तिरुमला वेन्कटेशवर मन्दिर और श्रीरंगम के श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर में बहुत भव्यता के साथ मनाया जाता है।
वैकुंठ एकादशी सबसे महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक है। यह दक्षिण भारतीय लोगों के लिए अधिक प्रमुख है। उपवास करना, रात्रि जागरण करना और वैकुंठ द्वारम से गुजरना इस दिन महत्वपूर्ण शुभ कार्य माना जाता है।
वैकुंठ एकादशी को तिरुपति बालाजी मंदिर, श्रीरंगम रंगनाथस्वामी मंदिर और भद्राचलम सीता रामचंद्र स्वामी मंदिर में बहुत महत्व के साथ मनाया जाता है। इन मंदिरों के अलावा, दक्षिण भारत में भगवान विष्णु और उनके अवतारों को समर्पित सभी मंदिरों में वैकुंठ एकादशी मनाई जाती है।
दक्षिण भारत में मंदिरों में इस दिन सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान विष्णु मंदिरों में वैकुंठ द्वारम या परमपद वासल द्वार होता है। भक्तों को केवल वैकुंठ एकादशी के दिन ही इस द्वार से गुजरने की अनुमति होती है। इस द्वार से गुजरना वैकुण्ठ के द्वार से गुजरने का प्रतीक कहलाता है।
वैकुंठ एकादशी का व्रत दशमी से शुरू होता है। इस व्रत के पालन को 'एकभुक्तम' कहा जाता है। दशमी पर केवल एक बार भोजन करके एकादशी पर पूरा दिन व्रत किया जाता है और उसके बाद वैकुंठ एकादशी के दूसरे दिन द्वादशी के दिन प्रातः काल की पूजा के बाद इस व्रत का पारण होता है।
जो लोग इस कठोर उपवास को करने में असमर्थ होते हैं, वे इस दिन एक वक्त सात्विक भोजन करते हैं, या कुछ फ़लाहार खाते हैं। व्रत के दौरान फल, पानी और दूध का सेवन किया जा सकता है।
वैकुण्ठ एकादशी व्रत का पालन करने से इंद्रियों को नियंत्रित करने और शरीर को शुद्ध करने में मदद मिलती है। इस प्रकार शरीर के साथ मन संयमित और शुद्ध हो जाता है। इसी शुद्ध शरीर और मन से आराधना करने पर मनुष्य को परमात्मा के निकट जाने में मदद मिलती है।
वैकुण्ठ एकादशी के दिन विष्णु मंदिरों में अनेक दीपक प्रज्वलित किए जाते हैं। इसके साथ ही वैकुंठ एकादशी और द्वादशी पर विष्णु मंदिरों के नज़दीक स्थित जलाशयों में पवित्र डुबकी लगाना संसार की सभी पवित्र नदियों में पवित्र डुबकी लगाने के बराबर माना जाता है।
दक्षिण भारत में वैकुण्ठ एकादशी का व्रत और अनुष्ठान सभी तीर्थों की यात्रा करने से मिलने वाले पुण्य के समान होता है। इस दिन कई क्षेत्रों में भव्य जुलूस और रथयात्राएं निकाली जाती हैं। इस दिन लोग सड़कों पर निकलने वाली धार्मिक रैलियों में बहुत उल्लास के साथ भाग लेते हैं।
इस तरह वैकुण्ठ एकदशी आस्था और उत्सव का पर्व बन जाता है। श्री मंदिर की ओर से आपको वैकुण्ठ एकादशी की शुभकामनाएं। हम आशा करते हैं कि आपको यह जानकारी अवश्य पसंद आएगी। ऐसी ही अन्य जानकरियों के लिए बने रहिए श्री मंदिर के साथ।
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