काली पूजा 2024 (श्यामा पूजा) | Kali Puja 2024
दिवाली के अवसर पर लक्ष्मी पूजा तो प्रायः सभी जातक करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि 'कार्तिक मास' की 'अमावस्या' को निशिता काल में माँ काली की पूजा का अपना अलग ही महत्व है। काली माता को पापियों का संहार करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि मां काली की उपासना करने से भक्तों के सभी दुखों का शीघ्र अंत होता है।
इस लेख में जानिये-
- कब पड़ती है काली पूजा?
- साल 2024 में काली पूजा कब है?
- काली पूजा का महत्व क्या है?
- काली पूजा कहां-कहां मनाई जाती है?
- काली पूजा से जुड़ी पौराणिक मान्यता
- काली पूजा के अनुष्ठान क्या हैं?
कब पड़ती है काली पूजा?
अधिकतर सालों में दीपावली पूजा और काली पूजा एक ही दिन होते हैं लेकिन कुछ वर्षो में काली पूजा दीवाली पूजा से एक दिन पहले भी पड़ जाती है। काली पूजा के लिए मध्यरात्रि का समय, जब अमावस्या तिथि प्रचलित होती है, उपयुक्त माना जाता है जबकि लक्ष्मी पूजा के लिए प्रदोष का समय, जब अमावस्या तिथि प्रचलित होती है, उपयुक्त माना जाता है।
काली पूजा कब है?
- काली पूजा 31 अक्टूबर 2024, गुरुवार को की जायेगी।
- काली पूजा निशिता काल मुहूर्त 31 अक्टूबर की रात 11:16 PM से 12:07 AM (01 नवम्बर) तक रहेगा।
- जिसकी कुल अवधि 00 घण्टे 51 मिनट की रहेगी।
- अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर 2024 को 03:52 PM पर प्रारंभ होगी।
- अमावस्या तिथि का समापन 01 नवम्बर 2024 को 06:16 PM पर होगा।
इस दिन के अन्य शुभ मुहूर्त
- ब्रह्म मुहूर्त - 04:23 AM से 05:14 AM
- प्रातः सन्ध्या - 04:48 AM से 06:05 AM
- अभिजित मुहूर्त - 11:19 AM से 12:04 PM
- विजय मुहूर्त - 01:33 PM से 02:18 PM
- गोधूलि मुहूर्त - 05:18 PM से 05:43 PM
- सायाह्न सन्ध्या - 05:18 PM से 06:34 PM
- अमृत काल - 05:32 PM से 07:20 PM
- निशिता मुहूर्त - 11:16 PM से 12:07 AM (01 नवम्बर)
काली पूजा का महत्व क्या है?
विशेषकर बंगाल में लोकप्रिय काली पूजा का पर्व माता काली को समर्पित होता है। यह मान्यता है कि दुष्टों का संहार करने के लिए इसी दिन देवी काली 64000 योगिनियों के साथ प्रकट हुई थीं। बंगाली काली पूजा पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े धार्मिक त्यौहार में से एक है जिसका हिन्दू काफी उत्सुकता से इंतजार करते हैं। मां काली देवी को दुर्गा का सबसे आक्रामक रूप माना जाता है। उनकी बुराई के विनाशक के रूप में पूजा की जाती है और वह जो दुनिया में प्रचलित सभी अन्यायों के खिलाफ युद्ध करती हैं। देवी काली को श्यामा भी कहा जाता है, यही कारण है कि इस पूजा को श्यामा पूजा भी कहा जाता है।
इस दिन भक्त अपने घरों में देवी काली की पूजा करते हैं। माँ काली की पूजा के माध्यम से, भक्तजन अपने जीवन के सभी दुखों, पापों और बुराइयों से सुरक्षा हेतु माँ के आशीर्वाद की कामना करते हैं।
काली पूजा कहां-कहां मनाई जाती है?
पश्चिम बंगाल, असम और उड़ीसा में भक्त अमावस्या तिथि की रात में श्रद्धापूर्वक देवी काली की पूजा करते हैं, जबकि भारत के अन्य हिस्सों में लोग इस दिन मुख्य रूप से माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना के साथ भगवान गणेश, देवी सरस्वती एवं धन के देवता कुबेर की पूजा करते हैं। आपको बता दें कि काली पूजा को कुछ स्थानों पर 'श्यामा पूजा' भी कहा जाता है।
काली पूजा से जुड़ी पौराणिक मान्यता
मान्यता है आसुरी शक्तियों के अत्याचार को समाप्त करने और उनका वध करने के लिए माता अंबा ने काली जी का अवतार लिया। उस रक्तबीज नामक राक्षस के कारण तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मची थी, जिसका वध करना सभी देवों के लिए असंभव था। दरअसल रक्तबीज को वरदान प्राप्त था कि उसके रक्त की जितनी बूंदें पृथ्वी पर गिरेंगी, उसके उतने ही स्वरूप उत्पन्न होंगे। इसलिए माता काली ने अपनी जिह्वा निकालकर रक्तबीज पर तलवार से वार किया, और उसका रक्त पीने लगीं। इस तरह जब रक्त का एक भी बूंद पृथ्वी पर नहीं गिरा तो रक्तबीज का वध संभव हो सका।
हालांकि जब राक्षसों का वध करने के बाद भी महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ, तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव के शरीर के स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया। इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा करने का प्रचलन हुआ, जबकि इसी रात देवी के रौद्ररूप काली की पूजा की उपासना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि काली पूजा करने से जातक को सभी जीवन में चल रहे सभी कष्टों व आने वाली विपत्तियों से छुटकारा मिलता है।
काली पूजा के अनुष्ठान क्या हैं?
- काली माता के कुछ उपासक दिवाली की रात में तंत्र साधना का अनुष्ठान करते हैं। हालांकि सामान्य गृहस्थ व्यक्ति के लिए सामान्य पूजा का विधान ही उचित माना गया है।
- सर्वप्रथम स्नान करके साफ वस्त्र पहनकर मां काली की प्रतिमा स्थापित करें।
- फिर तस्वीर के सामने दीपक जलाएं, और मां को लाल गुड़हल के फूल अर्पित करें।
- माता काली की सामान्य पूजा में विशेष रूप से 108 गुड़हल के फूल, 108 बेलपत्र एवं माला, 108 मिट्टी के दीपक और 108 दुर्वा चढ़ाने का विधान है।
- इसके बाद 'ओम् ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै' मंत्र का 108 बार जाप करें, इस मंत्र के जाप से सभी बाधाएं दूर होती हैं।
- काली पूजन में देवी मां को खिचड़ी, खीर, काले तिल और काली उड़द का भोग लगाएं। मान्यता है कि काली मां इस भोग से प्रसन्न होकर जातक की सभी इच्छाएं पूर्ण करती हैं।
तो भक्तों, ये थी दिवाली पर होने वाली काली पूजा के बारे में विशेष जानकारी। आशा है कि आपकी उपासना से माता काली प्रसन्न होंगी और जीवन में आने वाली सभी विपत्तियों से आपकी तथा आपके परिवार की रक्षा करेंगी। व्रत त्योहारों से जुड़ी जानकारियों के लिए जुड़े रहिये 'श्री मंदिर' पर।