कार्तिक अमावस्या कब है?
हिंदू संस्कृति और सनातन धर्म में कार्तिक अमावस्या एक महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन, चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता है, इसे दर्श अमावस्या, दिवाली, कार्तिका अमावस्या, लक्ष्मी पूजा, केदार गौरी व्रत, चोपड़ा पूजा, शारदा पूजा, बंगाल काली पूजा, दिवाली स्नान, दिवाली देवपूजा आदि नामों से भी जाना जाता है। वर्ष की सभी अमावस्याओं में से कार्तिक माह की अमावस्या को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है। सम्पूर्ण भारत में हिंदू भक्तों द्वारा इस दिन कई महत्वपूर्ण अनुष्ठानों और परंपराओं का पालन किया जाता है।
यह महीने का सबसे अंधेरा दिन होता है और पुरानी मान्यताओं के अनुसार, इसे वर्ष के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली समय में से एक माना जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, कार्तिक महीना अक्टूबर से नवंबर महीने के बीच में आता है। कार्तिक अमावस्या को दुनिया भर में दिवाली के दिन के रूप में भी मनाया जाता है।
हिन्दु पंचांग के अनुसार इस वर्ष कार्तिक अमावस्या 13 नवम्बर सोमवार को पड़ रही है।अमावस्या की तिथि प्रारम्भ 12 नवम्बर को दोपहर 02 बजकर 44 मिनट पर होगी एवं समाप्ति 13 नवम्बर दोपहर 02 बजकर 56 मिनट पर होगी।
कार्तिक अमावस्या (दर्श अमावस्या) नवम्बर 13 2023 सोमवार कार्तिक, कृष्ण अमावस्या की तिथि प्रारम्भ - 12 नवम्बर दोपहर 02:44 से समाप्त - 13 नवम्बर दोपहर 02:56 पर
कार्तिक अमावस्या का महत्व
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह सबसे पवित्र महीनों में से एक हैं। इस माह में आने वाली अमावस्या को कार्तिक अमावस्या या कार्तिक अमावस के नाम से जाना जाता है। जिस दिन चाँद अपनी सोलह कलाओं के अंतिम चरण में पहुंचकर आकाश से नदारद हो जाता है, अर्थात पृथ्वी से दिखाई नहीं देता, तब उसे अमावस्या की तिथि कहा जाता है। हर अमावस्या की तरह कार्तिक अमावस्या भी स्नान-दान, पिंडदान और तर्पण विधि के लिए सबसे उपयुक्त होती है। बहुत से लोग इस तिथि पर अपने पितरों की तृप्ति के लिए भी कई अनुष्ठान करते हैं।
कार्तिक अमावस्या वह विशेष तिथि है, जिस दिन पूरे देश में दीपावली का पर्व भव्यता से मनाया जाता है। इसीलिए इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है। भविष्य पुराण में बताया है कि कार्तिक माह की अमावस्या पर पवित्र नदियों में दीपदान किया जाता है। अन्न और वस्त्र दान किये जाते हैं। इससे दान करने वाले मनुष्यों के रोग, दोष और अन्य संताप दूर होते हैं। कहते हैं कि कार्तिक अमावस्या के दिन भूखे जंतुओं को खाना, चारा आदि खिलाने से समस्त पापों का नाश होता है, और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इस दिन पूर्ण श्रद्धा से पूजा अनुष्ठान करने से माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु प्रसन्न होकर अपार समृद्धि, स्वस्थ और सुखी जीवन प्रदान करते हैं। हमारे पितरों को अमावस्या तिथि का स्वामी माना गया हैं। स्कंद पुराण के अनुसार कार्तिक माह की अमावस्या पर तीर्थ स्थान पर जाकर स्नान करने से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट होते हैं। कार्तिक अमावस्या की रात्रि में घर की छत, दहलीज और मुंडेर पर मिट्टी के दीपक लगाने से घर में मां लक्ष्मी का वास होता है।
कार्तिक अमावस्या की पूजा विधि
- कार्तिक अमावस्या के दिन प्रातःकाल किसी पवित्र नदी में स्नान करने का विधान है, लेकिन अगर आपके लिए यह संभव न हो पाए तो आप घर पर पानी में ही गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
- सूर्यनारायण को शुद्ध जल से अर्घ्य दें।
- इसके बाद व्रत का संकल्प लें और पूजा की तैयारियां शुरू कर दें।
- सबसे पहले अपने पूजा स्थल की सफाई करके वहां गंगाजल का छिड़काव करें।
- फिर देवघर में दीपक जलाकर पूजा विधि प्रारंभ करें।
- इस दिन प्रातःकाल भगवान विष्णु और तुलसी माता की पूजा करें।
- फिर कार्तिक अमावस्या की व्रत कथा सुनें और विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु चालीसा आदि का पाठ करें। यह सभी श्री मंदिर पर आपके लिए उपलब्ध हैं।
- अंत में भगवान से मंगल कामना करते हुए उनकी आरती उतारें।
- अब आप तुलसी माता की पूजा-अर्चना करें, फिर तुलसी के पौधे में जल अर्पित करें।
- इसके बाद व्रती पूरे दिन व्रत का पालन करें और हो सके तो एक ही समय फलाहार ग्रहण करें।
- संध्या समय में माता लक्ष्मी और गणेशजी की पूजा करें। अगले दिन भगवान की पूजा के बाद ही व्रत का पारण करें।
कार्तिक अमावस्या से जुड़ी कथा
हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास बेहद खास माना जाता है। दीपावली सहित कई बड़े त्यौहार इसी माह में पड़ते हैं। इसी माह की अमावस्या पर दीपावली से जुड़ी बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं। जिसमें से हम आज आपको सुनाने जा रहें हैं कार्तिक अमावस्या की सबसे पौराणिक कथा -
एक बार कार्तिक माह की अमावस्या तिथि के दिन देवी लक्ष्मी पृथ्वीलोक पर विचरण कर रहीं थीं। परंतु गहरे अंधकार के कारण देवी अपने मार्ग की दिशा से भटक जाती हैं। उसी मार्ग में आगे चलते चलते उन्हें एक स्थान पर कुछ दीपक की रोशनी दिखाई देती है। देवी उस रोशनी के समीप जाती हैं तो देखती हैं की वहां एक झोपड़ी है। जहाँ एक वृद्ध स्त्री अपने घर के बाहर दीपक जलाए हुए थी और झोपड़ी का द्वार खुला हुआ था। देवी लक्ष्मी उस वृद्ध महिला के पास जाती हैं और उससे कहती हैं कि- “मैं इस घने अंधकार में रास्ता भटक गई हूँ। क्या मुझे आपके यहाँ रात भर रुकने के लिए स्थान मिल सकता हैं?”
इस पर वह वृद्ध महिला देवी लक्ष्मी से कहती है - “आप मेरी अतिथि हैं, आप निश्चिन्त होकर यहाँ विश्राम करें, मैं आपके लिए अभी भोजन और बिस्तर आदि की व्यवस्था कर देती हूँ”। उस वृद्ध स्त्री का ऐसा भाव देखकर देवी लक्ष्मी वहां विश्राम करने के लिए रुक जाती हैं, और वह वृद्ध स्त्री पूरे प्रेम और आदर के साथ माँ का सत्कार करती है। रात में लक्ष्मी माँ उसके ही घर में सो जाती हैं और वह वृद्धा भी सो जाती है।
इस प्रकार माता लक्ष्मी उस महिला के सेवाभाव और समर्पण के भाव से अत्यंत प्रसन्न होती हैं। अगले दिन जब वृद्धा जागती है तो देखती है कि उसकी साधारण सी झोपड़ी महल के समान सुंदर भवन में बदल गयी है और उसके घर में धन-धान्य की भरमार हो गई है। सभी सुविधाओं से युक्त उस बेहद भव्य महल में किसी भी चीज की कमी नहीं हैं। यह सब देखकर वह वृद्धा अत्यंत हैरान रह जाती है।
वास्तव में माता लक्ष्मी वहां से कब चली गई थीं, उस वृद्ध महिला को पता ही नहीं चलता। और इस प्रकार वह वृद्धा अपने घर में आई उस स्त्री का ध्यान करने लगती है। तब माता लक्ष्मी उसे दर्शन देती है, और कहती हैं कि कार्तिक अमावस्या के दिन उस अंधकार समय में मार्ग भूलकर मैं तुम्हारे पास आई थी। मैं तुम्हारें सेवा भाव से अत्यंत प्रसन्न हूँ। जिस प्रकार तुमने दीपक जलाकर कार्तिक मास की अमावस्या को रोशन कर दिया उसी प्रकार इस दिन जो भी दीपक जलाएगा
और प्रकाश से मार्ग को उज्जवल करेगा, उसे मेरा आशीर्वाद सदैव प्राप्त होगा। माना जाता है कि इस प्रकार हर वर्ष कार्तिक अमावस्या को रात्रि में दीप जलाकर प्रकाश उत्सव मनाने और देवी लक्ष्मी पूजन की परंपरा चली आ रही है। इस दिन माता लक्ष्मी के आगमन के लिए लोग घरों एवं अपने आय साधन वाले स्थानों जैसे दुकान, ऑफिस, गोदाम, फैक्ट्री आदि में माँ लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं और पूजा के दौरान घरों के द्वार खोलकर रखते हैं।
माना जाता है कि इस दिन भक्तों द्वारा जहाँ-जहाँ दीप जलाये जाते हैं और प्रकाश होता है, वहां माँ लक्ष्मी का आगमन अवश्य होता है, और धन-समृद्धि का अभाव नहीं होता।