श्री माधवाचार्य जयन्ती पर विशेष | Madhvacharya Jayanti
श्री माधवाचार्य जयन्ती
माधवाचार्य (1238-1317 ई.) भक्ति आन्दोलन के महत्वपूर्ण सन्त एवं दार्शनिक थे। हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को श्री माधव जयन्ती अथवा माधवाचार्य जयन्ती के रूप में मनाया जाता है। श्री माधवाचार्य का जन्म 1238 ई. में, भारत में कर्णाटक राज्य के उडुपी के समीप पजाका नामक स्थान पर विजयादशमी के शुभः अवसर पर हुआ था। विजयादशमी को दशहरा के रूप में भी जाना जाता है।
साल 2024 में कब है श्री माधवाचार्य जयन्ती? | 2024 Me Kab Hai Madhvacharya Jayanti
- माधवाचार्य जयन्ती 13 अक्टूबर 2024, रविवार को मनाई जाएगी।
- श्री माधवाचार्य की यह 786वाँ जन्म वर्षगाँठ है।
- दशमी तिथि प्रारम्भ - 12 अक्टूबर 2024, शनिवार को 10:58 AM से होगा।
- दशमी तिथि समापन - 13 अक्टूबर 2024, रविवार को 09:08 AM पर होगा।
श्री माधवाचार्य जयन्ती के दिन का पञ्चाङ्ग
- ब्रह्म मुहूर्त: 04:16 ए एम से 05:06 ए एम
- प्रातः सन्ध्या: 04:41 ए एम से 05:55 ए एम
- अभिजित मुहूर्त: 11:21 ए एम से 12:07 पी एम
- विजय मुहूर्त: 01:40 पी एम से 02:27 पी एम
- गोधूलि मुहूर्त: 05:32 पी एम से 05:57 पी एम
- सायाह्न सन्ध्या: 05:32 पी एम से 06:47 पी एम
- अमृत काल: 05:09 पी एम से 06:39 पी एम
- निशिता मुहूर्त: 11:19 पी एम से 12:09 ए एम, अक्टूबर 14
- रवि योग: 05:55 ए एम से 02:51 ए एम, अक्टूबर 14
श्री माधवाचार्य जी भक्ति आन्दोलन के प्रमुख संत और द्वैत वेदांत के प्रवर्तक माने जाते हैं। इन्हें आनंदतीर्थ और पूर्णप्रज्ञ के नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने एक धार्मिक सुधारक के रूप में काम किया और सनातन धर्म ग्रंथों का प्रचार-प्रसार किया। माधवाचार्य जी का जन्म विजयादशमी के पावन अवसर पर हुआ था। इसलिए उनके सम्मान में हर साल विजयादशमी को उनकी जयंती मनाई जाती है। आइए जानते हैं कि माधवाचार्य का जीवन कैसा था और उन्होंने भारतीय संस्कृति के उत्थान के लिए क्या-क्या कार्य किए।
श्री माधवाचार्य की जीवनी
जगतगुरु माधवाचार्य का जन्म कर्नाटक के दक्षिण कन्नड जिले के उडुपी नगर में सन 1238 में हुआ था। अल्पायु में ही इन्होंने वेद पढ़ना शुरू कर दिया था और संन्यासी बन गए थे। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद इन्होंने “द्वैत दर्शन” नामक मठ का निर्माण किया और द्वैतवाद के प्रचार-प्रसार में लग गए।
द्वैतवाद का सिद्धांत अद्वैतवाद के विपरीत है। यह आत्मा और परमात्मा के बीच अंतर स्थापित करता है। अहम् ब्रह्मास्मि, अर्थात मैं ही ब्रह्मा हूँ, को द्वैतवाद में एक भ्रम के रूप में देखा जाता है। माधवाचार्य जी ने वेद, उपनिषद, श्रीमद्भगवद् गीता, श्रीमद्भागवतपुराण समेत कई अन्य ग्रंथों का भाष्य किया और अपनी व्याख्याओं की तार्किक स्पष्टता के लिए ‘अनुव्याख्यान’ नामक एक ग्रन्थ भी लिखा।
माधवाचार्यजी को एक समाज सुधारक के रूप में भी जाना जाता है। वह यज्ञों में होने वाली पशुबलि के खिलाफ खड़े होने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने कई सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, और लोगों को सही रास्ता दिखाया। माधवाचार्य भगवान् विष्णु के अनुयायी थे। उन्होंने देश के कोने-कोने में जाकर अपने द्वैतवादी सिद्धांत की मदद से भगवान विष्णु का प्रचार किया। उन्होंने उडुपी में एक कृष्ण मंदिर का निर्माण करवाया, जो बाद में उनके अनुयायियों के लिए एक तीर्थ स्थल बन गया।
वायु देव के अवतार- माधवाचार्य
माधवाचार्य जी को वायु का तृतीय अवतार माना जाता है; हनुमान और भीम वायु के पहले और दूसरे अवतार थे। ब्रह्मा सूत्र पर अपने एक भाष्य में उन्होंने लिखा है, कि भगवान विष्णु ने स्वयं उन्हें बताया था कि वे वायु के तीसरे अवतार हैं। माधवाचार्य जी को एक अलौकिक व्यक्ति माना जाता है। वह अपनी शक्तियों से कई चमत्कार किया करते थे, जैसे बीजों को सोने के सिक्कों में बदलना; बिना गीला हुए गंगा पार करना; पैर की उंगलियों के नाखूनों से प्रकाश उत्पन्न करना, इत्यादि।
माधव नवमी
सन् 1317 में माधवाचार्य अचानक अदृश्य होकर बद्रीनाथ चले गए और फिर कभी नहीं लौटे। जिस दिन माधवाचार्य बद्री गए, उस दिन को माधव नवमी के रूप में मनाया जाता है। यह थी द्वैतवाद के प्रवर्तक श्री माधवाचार्य जी की संपूर्ण जानकारी। उम्मीद है कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी। अगर आप आगे भी ऐसी अद्भुत जानकारियाँ प्राप्त करना चाहते हैं, तो श्रीमंदिर के साथ बने रहें।