क्या आप जानते हैं माघ बिहु कब है? 2025 में तारीख और शुभ मुहूर्त जानकर इस पर्व को खास बनाएं!
माघ बिहु असम का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे फसल कटाई के बाद मनाया जाता है। यह उत्सव जनवरी महीने में मकर संक्रांति के आसपास आता है और असमिया संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है। इसे भोगाली बिहु भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है "खाने-पीने का त्योहार।"
भारत में फसलों से जुड़े हज़ारों उत्सव मनाए जाते हैं, जिसमें से एक प्रचलित उत्सव है माघ बिहू। हिंदू धर्म के अनुसार, माघ बिहू का उत्सव संक्रांति की रात से शुरू हो जाता है। यह त्यौहार हर वर्ष माघ की शुरुआत में मनाया जाता है।
भारत में लोहड़ी और पोंगल जैसे कई त्योहार हैं, जो किसानों और फसलों से जुड़े हैं। इन्हीं में से एक है माघ बिहू, जो विशेष रूप से असम में मनाया जाता है। माघ बिहू अक्सर माघ महीने यानी जनवरी की शुरुआत में 15 या 16 तारीख को मनाया जाता है।
असम के लोग इस दिन को नए वर्ष की शुरुआत के रूप में मनाते हैं। जिस दिन पूरे देश में मकर संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है, उस दिन असम में माघ बिहू मनाने की प्रथा है। कई लोग इस उत्सव को भोगली बिहू के नाम से भी जानते हैं।
माघ बिहू असम का एक बहुत महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्यौहार एक तरह से सर्दियों के अंत और बसंत की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। माघ बिहू को मनाने का मूल उद्देश्य है, प्रकृति और भगवान को फसलों की अच्छी पैदावार के लिए धन्यवाद देना।
माघ बिहू का यह त्योहार नया नहीं बल्कि कई हज़ारों साल पुराना है। कुछ विद्वानों के अनुसार, माघ बिहू का 3500 ईशा पूर्व जितना पुराना है। मान्यता है, कि उस समय के लोग बेहतर फसल के लिए अग्नि यज्ञ किया करते थे। ऐसा भी माना जाता है, कि भारत के पूर्वी क्षेत्रों में पाई जाने वाली कृषि जनजाति ने इस त्यौहार की शुरुआत की थी। विष्णु पुराण के अनुसार, प्राचीन काल में इस त्यौहार को बिसवा के नाम से भी जाना जाता था। कहा जाता है, कि यह त्यौहार तब मनाया जाता है जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में अपना स्थान ग्रहण करता है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, बिहू बिसवा का ही आधुनिक संस्करण रूप माना जाता है।
इस उत्सव के दौरान भगवान अग्नि की पूजा सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसके साथ ही, इसी दिन किसान अपनी नई फसल की कटाई भी शुरू करते हैं। माघ बिहू का यह त्योहार अपने साथ यह संदेश लेकर आता है, कि किसानों की फसल की कटाई हो चुकी है, तो अब उन्हें अपने जीवन में कुछ क्षण आराम के मिलेंगे।
माघ बिहू का त्योहार संक्रांति से एक रात पहले से ही धूमधाम से शुरू हो जाता है। इसमें एक पूरा समुदाय एक साथ एकत्र होता है। इस उत्सव से एक रात पहले एक बड़े भोज का आयोजन किया जाता है, जो खेतों के बीच बने बांस और पुआल की झोपड़ी में बनाया जाता है। इस महाभोज को अरूका के नाम से भी जाना जाता है।
इस झोपड़ी से थोड़ी ही दूरी पर लोक छोटी छावनी भी बनाते हैं, जिसे मेजी कहा जाता है। इस मेजी का अपना एक बहुत बड़ा महत्व है। किसान इस छावनी में अपनी इच्छा अनुसार खाद्य सामग्री इकट्ठा करते हैं। कई लोग इस छावनी में नई फसल का कुछ हिस्सा भोग के रूप में भी व्यतीत करते हैं।
रात भर लोग इस भोज का आनंद उठाते हैं और आंचलिक गीत और नाच गाना करते दिखाई देते हैं। भोज के दौरान लोग नई फसलों से बने तरह-तरह के पकवान जैसे आलू पिटिका, जाक, मसोर टंगी, चावल की खीर और नारियल की मिठाइयाँ खाते हैं। माघ बिहू की सुबह सूर्य उदय होने से पहले पवित्र नदी या पोखर में नहाने की परंपरा भी है। नहाते वक्त लोगों को अपने शरीर पर कच्ची हल्दी या उड़द दाल का लेप भी लगाना होता है। इसके बाद, सभी लोग नए और पारंपरिक पोशाक पहनकर, मेजी और भोलघर के सामने एकत्रित होते हैं और फिर उन झोपड़ियों में आग लगा दी जाते है। आग लगाने के दौरान सभी किसान और उनके परिवार के लोग अग्निदेव से अच्छी फसल की उपज के लिए उनका धन्यवाद करते हैं। इस आग जलने के कार्यक्रम के दौरान लोग आपस में कई तरह के लिए खेल जैसे टेकेली भोंगा खेलते हैं और भैंसों की लड़ाई भी करवाते हैं।
दोपहर के भोज के दौरान सभी परिवार एक साथ एकत्र होते हैं और नए चावल के साथ तरह-तरह की सब्जियों के पकवानों का आनंद उठाते हैं। इसके बाद, उत्सव खत्म होने के दूसरे दिन मेजी में बची राख को खेतों में छिड़का जाता है, ताकि भगवान की कृपा बनी रहे और फसल सालों साल अच्छे से उगती रहे।
ऐसे ही अन्य पर्वों की जानकारी और उससे जुड़े तथ्यों को जानने के लिए बने रहिये श्रीमंदिर के साथ।
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