माघ पूर्णिमा व्रत 2025: कब है और क्यों है यह दिन खास? जानिए पूरी जानकारी और इस दिन के पुण्य लाभ को कैसे प्राप्त करें।
माघ पूर्णिमा व्रत हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है, जो माघ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से पुण्य प्राप्ति और नदियों में स्नान के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन का महत्व इस तथ्य से जुड़ा है कि इसे गंगा, यमुना, सरस्वती जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने से समस्त पापों का नाश होता है और आत्मा को शांति मिलती है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ माह में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि को माघ पूर्णिमा कहा जाता है। इस तिथि पर स्नान, दान और पूजा करने को बहुत ही फलदायी बताया गया है। आपको बता दें कि तीर्थराज प्रयाग में कल्पवास करके त्रिवेणी स्नान करने का आख़िरी दिन माघ पूर्णिमा ही होता है।
तो इस ये थी माघ पूर्णिमा की तिथि और इस दिन के शुभ मुहूर्त की जानकारी।
माघ मास की पूर्णिमा, हिन्दू पंचांग के अनुसार, एक अत्यधिक महत्वपूर्ण तिथि है, खासकर जब यह महाकुंभ के साथ मेल खाती है। वर्ष 2025 में माघ पूर्णिमा 12 फरवरी को है, जो विशेष रूप से महाकुंभ के दौरान पाँचवाँ शाही स्नान यह दिन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी बहुत अधिक है।
माघ पूर्णिमा का दिन विशेष रूप से महाकुंभ के शाही स्नान के लिए जाना जाता है। महाकुंभ मेला हर 12 साल में एक बार होता है, और यह हिन्दू धर्म के सबसे बड़े और पवित्र धार्मिक आयोजनों में से एक है। महाकुंभ के दौरान लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुनाजी, और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए एकत्र होते हैं, ताकि वे अपने पापों से मुक्ति प्राप्त कर सकें और पुण्य की प्राप्ति हो सके।
महाकुंभ के दौरान 12 फरवरी 2025 को पड़ रही माघ पूर्णिमा पाँचवे शाही स्नान की तिथि है, जो श्रद्धालुओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस दिन स्नान करने से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि जीवन में सुख, समृद्धि और पवित्रता का संचार होता है। शाही स्नान का महत्व इस तथ्य से जुड़ा हुआ है कि यह दिन माघ मास के शुद्धतम तिथि मानी जाती है, और इस दिन पवित्र नदियों में स्नान से समस्त पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
माघ मास की पूर्णिमा का दिन हिन्दू धर्म में एक विशेष स्थान रखता है। इस दिन गंगा, यमुना, नर्मदा, और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। शाही स्नान के साथ-साथ इस दिन विशेष पूजा-अर्चना, व्रत और दान का भी महत्व है। माघ पूर्णिमा के दिन पुण्यलाभ के लिए तीर्थ स्नान, दान और विशेष पूजा की जाती है।
"जानें पूर्णिमा व्रत का महत्व" - जैसे कि ऊपर उल्लेखित है, इस दिन व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट होते हैं और उसे पुण्यफल की प्राप्ति होती है। खासकर माघ पूर्णिमा के दिन व्रत करने से घर में सुख-समृद्धि और शांति का वास होता है। इस दिन विशेष रूप से चंद्रमा की श्वेतिमा और दिव्य आभा भक्तों को एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है।
शाही स्नान: अगर आप महाकुंभ में भाग नहीं ले पा रहे हैं, तो भी इस दिन अपने नजदीकी तीर्थ स्थल पर जाकर पवित्र नदी में स्नान करें, विशेष रूप से गंगा, यमुना या अन्य पवित्र नदियों में स्नान कर सकते हैं।
घर पर विशेष स्नान: यदि आप किसी वजह से नदी में स्नान करने नहीं जा पा रहे हैं तो अपने घर पर ही नहाने के जल में गंगाजल मिलाकर उस पवित्र जल से स्नान करें।
व्रत और पूजा: इस दिन उपवासी रहकर विशेष पूजा और मंत्र जाप करें। "ॐ नमः शिवाय" या "ॐ महादेवाय नमः" जैसे मंत्रों का जाप करना पुण्यकारी होता है।
दान: माघ पूर्णिमा के दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान दें। यह आपके पुण्य को बढ़ाता है और जीवन में समृद्धि लाता है। स्नान और तर्पण: इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करें और तर्पण करके अपने पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित करें।
महाकुंभ का शाही स्नान माघ पूर्णिमा के दिन होने से इस दिन की धार्मिक महत्ता और भी बढ़ जाती है। यह अवसर न केवल व्यक्तिगत शुद्धता और आत्म-उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज के लिए भी एक बड़ा धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजन है। इस दिन लाखों श्रद्धालु नदियों में स्नान कर के अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करने की आकांक्षा रखते हैं। विशेष रूप से यह दिन उन भक्तों के लिए बहुत पवित्र होता है जो किसी विशेष उद्देश्य के लिए अनुष्ठान या साधना कर रहे हैं।
माघ पूर्णिमा का दिन 2025 में विशेष रूप से महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि यह दिन महाकुंभ के शाही स्नान की एक प्रमुख तिथि है। इस दिन स्नान, व्रत, दान और विशेष पूजा करने से न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि यह दिन जीवन में शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का कारण बनता है। महाकुंभ के शाही स्नान के अवसर पर लाखों श्रद्धालु अपने पापों से मुक्ति पाने और पुण्य प्राप्त करने के लिए एकत्रित होंगे, और माघ पूर्णिमा का यह दिन हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण और पवित्र तिथि के रूप में मनाया जाएगा।
हिन्दू धर्म में माघ पूर्णिमा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस तिथि पर स्नान-दान, विष्णु पूजा और पितरों को तर्पण देने का विधान है। मान्यता है इस पूर्णिमा तिथि पर गंगा स्नान करने और विधिवत पूजा-अर्चना करने से जातक को कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। चलिए जानें माघ पूर्णिमा की पूजा की तैयारी और इसकी विधि के बारे में विस्तार से -
माघ पूर्णिमा धार्मिक दृष्टि से बहुत ही विशेष तिथि मानी जाती है। इस दिन किया गया स्नान और दान बहुत ही फलदायक और मनुष्य को मोक्ष दिलाने वाला होता है। हम बात करते हैं माघ पूर्णिमा पर किये जाने वाले स्नान-दान के महत्व के बारे में-
स्नान: हिन्दू धर्म में तीर्थ स्नान को बहुत ही शुभ माना जाता है। और माघ महीने में किया गया गंगा स्नान तो जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्ति दिलाने वाला होता है। मान्यताओं के अनुसार, माघ पूर्णिमा तिथि पर गंगाजल में भगवान विष्णु का वास होता है, और समस्त देवतागण स्वयं गंगा स्नान के लिए आते हैं। इसलिए माघ के पूरे महीने अगर आप गंगा स्नान न कर सकें तो माघ पूर्णिमा पर त्रिवेणी संगम में स्नान अवश्य करें। इससे पूरे माघ महीने में गंगा स्नान करने का पुण्यफल मिल जायेगा, साथ ही आप पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा होगी।
सरल उपाय: अगर आप माघ पूर्णिमा के दिन संगम स्नान नहीं कर सकते, तो किसी अन्य पवित्र नदी या घाट के किनारे जाकर स्नान करके पुण्यफल की प्राप्ति कर सकते हैं। और यदि ये भी संभव ना हो, तो अपने घर में ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इसके बाद सूर्यदेव को अर्घ्य अवश्य दें, इससे आपको तीर्थ स्नान के बराबर का पुण्यफल प्राप्त होगा।
लाभ: माघ पूर्णिमा पर पवित्र स्नान करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। आपको बुरे कर्मो से मुक्ति मिलती है, जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं, और मृत्यु के बाद वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है।
दान: अब बात करें माघ पूर्णिमा पर दान के महत्व की, तो इस दिन किए गए दान से असंख्य पुण्य मिलते हैं। विशेषकर अगर ये दान आप दीन-दुखियों को देते हैं, तो दीनबंधु कहलाने वाले भगवान विष्णु अति प्रसन्न होते हैं, साथ ही आपको किसी ज़रूरतमंद का आशीर्वाद भी मिल जाता है। इसलिए माघ पूर्णिमा के दिन वस्त्र, अन्न, घी, गुड़ और फल का दान अवश्य करें।
सरल उपाय: माघ पूर्णिमा के समय काफ़ी ठंड होती है, इसलिए इस दिन कम्बल, गरम कपड़े, जूते आदि का भी दान करें। आप किसी ज़रूरतमंद व्यक्ति को आवश्यकता की अन्य वस्तुएं भी दान में दे सकते हैं। हिंदू शास्त्रों में माघ के पूरे महीने में तिल का दान करना बहुत शुभ माना जाता है, इसलिए आप इस दिन काले तिल का दान भी कर सकते हैं।
लाभ: माघ पूर्णिमा पर किये गए दान से जहां किसी ग़रीब का भला होगा, वहीं आपको मोह से मुक्ति मिलेगी। साथ ही भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विशेष आशीर्वाद से आपके घर में धन-धान्य और सुख-शांति बनी रहेगी।
माघ पूर्णिमा एक ऐसी पावन तिथि है, जिस दिन जातक स्नान-दान, जप-तप आदि धार्मिक कार्य करके अपने पिछले सभी पापों के प्रभाव को नष्ट कर सकते हैं, साथ ही आने वाले जीवन को सुख-समृद्धि से परिपूर्ण कर सकते हैं। आज हम आपको बताएंगे कि वो कौन से 6 अद्भुत लाभ हैं, जो आपको माघ पूर्णिमा पर मिलने वाले हैं।
हिंदू ग्रंथों में मान्यता है कि माघ पूर्णिमा के दिन स्वयं भगवान विष्णु गंगा जी में वास करते हैं, ऐसे में इस दिन गंगाजल के स्पर्श मात्र से ही सभी बुरे कर्मो से छुटकारा मिलता है। इस दिन संगम स्नान से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
माघ पूर्णिमा पर किसी ब्राम्हण या ज़रूरतमंद को दान देने से भगवान विष्णु अत्यधिक प्रसन्न होते हैं, और जातक को अपनी कृपा का पात्र बनाकर उन्हें सुख-सौभाग्य, धन-संतान आदि का सुख प्रदान करते हैं।
इस दिन गंगा नदी तट पर दीप दान करने से देवी लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न होती हैं, और अपने आशीर्वाद स्वरूप, भक्तों का भंडार धन-धान्य से भर देती हैं।
माघ पूर्णिमा की रात में चंद्रमा की पूजा करने से चंद्र दोष नष्ट होता है, और चंद्र देव को खीर का भोग अर्पित करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे आर्थिक तंगी व असाध्य रोगो से छुटकारा मिलता है।
माना जाता है कि माघ पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ हनुमान जी की पूजा करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, और आस-पास की बुरी आत्माओं का प्रभाव दूर हो जाता है।
माघ पूर्णिमा पर पितरों की शांति के लिए गंगा घाट पर तिल, कंबल, कपास, गुड़, घी और फल आदि का दान कर तर्पण करने से उनका आशीर्वाद मिलता है, और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
तो दोस्तों, ये थे माघ पूर्णिमा से मिलने वाले 6 विशेष लाभ।
हिंदू धर्म में धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखने वाली माघ पूर्णिमा को बहुत ही पुण्यफल देने वाली माना जाता है। इस दिन स्नान-दान का जितना महत्व है, उतना ही महत्व विष्णुपूजा करने और कथा के पाठ एवं श्रवण का भी है। तो चलिए आज हम माघ पूर्णिमा की पावन कथा से आपको अवगत कराते हैं।
पौराणिक कथा में वर्णन मिलता है कि किसी नगर में धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी रूपवती, पतिव्रता और सर्वगुण संपन्न थी। बस दुख था तो सिर्फ़ इस बात का, कि उनकी कोई संतान नहीं थी। यही कारण था, कि वो दोनों बहुत चिंतित रहते थे। एक बार उस नगर में एक महात्मा आए। वो नगर के सभी लोगों से दान लेते थे, लेकिन धनेश्वर की पत्नी जब भी उन्हें दान देने जाती, तो वो उसे लेने से मना कर देते थे। एक दिन धनेश्वर ने उन महात्मा के पास जाकर पूछा- हे महात्मन्! आप नगर के सभी लोगों से दान लेते हैं, लेकिन मेरी पत्नी के हाथ का दान क्यों नहीं स्वीकार करते? हमसे अगर कोई भूल हुई हो तो हम ब्राह्मण दंपत्ति आपसे क्षमा याचना करते हैं।
महात्मा बोले- नहीं विप्र! तुम तो बहुत ही विनम्र और हमेशा आदर-सत्कार करने वाले ब्राह्मण हो! तुमसे भूल तो कदापि नहीं हो सकती। महात्मा की बात सुनकर, धनेश्वर हाथ जोड़कर बोला- हे मुनिवर! फिर आख़िर क्या कारण है? कृपया हमें उससे अवगत कराएं। इसपर महात्मा बोले- हे विप्र! तुम्हारे कोई संतान नहीं है। और जो दंपत्ति निःसंतान हो, उसके हाथ से भिक्षा लेना, अधम या पापी के हाथ से भिक्षा ग्रहण करने के समान है! तुम्हारे द्वारा दिया गया दान लेने के कारण मेरा पतन हो जायेगा! बस यही कारण है, कि मैं तुम दंपत्ति से दान स्वीकार नहीं करता।
महात्मा के ये वचन सुनकर, धनेश्वर उनके चरणों में गिर पड़ा, और विनती करते हुए बोला- हे महात्मन्! संतान ना होना ही तो हम पति-पत्नी के जीवन की सबसे बड़ी निराशा है। यदि संतान प्राप्ति का कोई उपाय हो, तो बताने की कृपा करें मुनिवर! ब्राह्मण का दुःख देखकर महात्मा बोले- हे विप्र! तुम्हारे इस कष्ट का एक निवारण अवश्य है! तुम 16 दिनों तक श्रद्धापूर्वक काली माता की पूजा करो! मां प्रसन्न होंगी, तो उनकी कृपा से अवश्य तुम्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी! इतना सुनकर धनेश्वर बहुत ख़ुश हुआ। उसने कृतज्ञतापूर्वक महात्मा का आभार प्रकट किया और घर आकर पत्नी को सारी बात बताई। पति-पत्नी को महात्मा के द्वारा बताए गए उपाय से आशा की एक किरण दिखाई दी, और धनेश्वर मां काली की उपासना के लिए वन चला गया।
ब्राह्मण ने पूरे 16 दिन तक काली माता की पूजा की और उपवास रखा। उसकी भक्ति देखकर और विनती सुनकर मां ब्राह्मण के सपने में आईं, और बोलीं- हे धनेश्वर! तू निराश मत हो! मैं तुझे संतान के रूप में पुत्ररत्न की प्राप्ति का वरदान देती हूं! लेकिन 16 साल की अल्पायु में ही तेरे पुत्र की मृत्यु हो जाएगी। काली माता ने कहा- यदि तुम पति-पत्नी विधिपूर्वक 32 पूर्णिमासी का व्रत करोगे, तो तुम्हारी संतान दीर्घायु हो जायेगी। प्रातःकाल जब तुम उठोगे, तो तुम्हें यहां आम का एक वृक्ष दिखाई देगा। उस पेड़ से एक फल तोड़ना, और ले जाकर अपनी पत्नी को खिला देना। शिव जी की कृपा से तुम्हारी पत्नी गर्भवती हो जाएगी। इतना कहकर माता अंतर्ध्यान हो गईं।
प्रातःकाल जब धनेश्वर उठा, तो उसे आम का वृक्ष दिखा, जिसपर बहुत ही सुंदर फल लगे थे। वो काली मां के कहे अनुसार फल तोड़ने के लिए वृक्ष पर चढ़ने लगा। उसने कई बार प्रयास किया लेकिन फिर भी फल तोड़ने में असफल रहा। तभी उसने विघ्नहर्ता गणेश भगवान का सुमिरन किया, और गणपति की कृपा से इस बार वो वृक्ष पर चढ़कर फल तोड़ लाया। धनेश्वर ने अपनी पत्नी को वो फल दिया, जिसे खाकर वो कुछ समय बाद गर्भवती हो गई।
दंपत्ति काली मां के निर्देश के अनुसार हर पूर्णिमा पर दीप जलाते रहे। कुछ दिन बाद भगवान शिव की कृपा हुई, और ब्राह्मण की पत्नी ने एक सुंदर बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम उन्होंने देवीदास रखा। जब पुत्र 16 वर्ष का होने को हुआ, तो माता-पिता को चिंता होने लगी कि इस वर्ष उसकी मृत्यु निश्चित है। दंपत्ति ने देवीदास के मामा को बुलाया, और कहा- तुम देवीदास को विद्या अध्ययन के लिए काशी ले जाओ, और एक वर्ष बाद वापस आना। दंपत्ति पूरी आस्था के साथ पूर्णिमासी का व्रत कर पुत्र के दीर्घायु होने की कामना करते रहे।
इधर काशी प्रस्थान के बाद मामा भांजे एक गांव से गुज़र रहे थे। वहां एक कन्या का विवाह हो रहा था, परंतु विवाह होने से पूर्व ही उसका वर अंधा हो गया। तभी वर के पिता ने देवीदास को देखा, और मामा से कहा- तुम अपना भांजा कुछ समय के लिए हमें दे दो। विवाह संपन्न हो जाए, उसके बाद ले जाना। ये सुनकर मामा ने कहा- यदि मेरा भांजा ये विवाह करेगा, तो कन्यादान में मिले धन आदि पर हमारा अधिकार होगा। वर के पिता ने मामा की बात स्वीकार कर ली और देवीदास के साथ कन्या का विवाह संपन्न हो गया।
इसके पश्चात् देवीदास पत्नी के साथ भोजन करने बैठा, लेकिन उसने उस थाल को हाथ नहीं लगाया। ये देखकर पत्नी बोली- स्वामी! आप भोजन क्यों नहीं कर रहे हैं? आपके चेहरे पर ये उदासी कैसी? तब देवीदास ने सारी बात बताई। यह सुनकर कन्या बोली- स्वामी मैंने अग्नि को साक्षी मानकर आपके साथ फेरे लिए हैं, अब मैं आपके अलावा किसी और को अपना पति स्वीकार नहीं करूंगी। पत्नी की बात सुनकर देवीदास ने कहा- ऐसा मत कहो! मैं अल्पायु हूं! कुछ ही दिन में 16 वर्ष की आयु होते ही मेरी मृत्यु निश्चित है। लेकिन पत्नी ने कहा, जो भी उसके भाग्य में लिखा होगा, वो उसे स्वीकार है।
देवीदास के बहुत कहने पर भी जब वो नहीं मानी, तो देवीदास ने उसे एक अंगूठी दी, और कहा- मैं विद्या अध्ययन के लिए काशी जा रहा हूं। लेकिन तुम मेरे जीवन-मरण के बारे में जानने के लिए एक पुष्प वाटिका तैयार करो! उसमें भांति-भांति के पुष्प लगाओ, और और उन्हें जल से सींचती रहो! यदि वाटिका हरी भरी रहे, पुष्प खिले रहें, तो समझना कि मैं जीवित हूं! और जब ये वाटिका सूख जाए, तो मान लेना कि मेरी मृत्यु हो चुकी है। इतना कहकर देवीदास काशी चला गया।
प्रातःकाल जब कन्या ने दूसरे वर को देखा, तो बोली- ये मेरा पति नहीं है! मेरा पति काशी पढ़ने गया है। यदि इसके साथ मेरा विवाह हुआ है, तो बताए कि रात्रि में मेरे और इसके बीच क्या बातें हुईं थी, और इसने मुझे क्या दिया था? ये सुनकर वर बोला मुझे कुछ नहीं पता, और पिता-पुत्र लज्जित होकर चले गए।
उधर एक दिन प्रातःकाल एक सर्प देवीदास को डसने के लिए आया, लेकिन उसके माता पिता द्वारा किए जाने वाले पूर्णिमा व्रत के प्रभाव के कारण वो उसे डस नहीं पाया। तत्पश्चात् काल स्वयं वहां आए और उसके शरीर से प्राण निकालने लगे। देवीदास मूर्छित होकर गिर पड़ा। तभी वहां माता पार्वती और शिव जी आए। देवीदास को मूर्छित देखकर देवी पार्वती बोलीं- हे स्वामी! देवीदास की माता ने 32 पूर्णिमा का व्रत रखा था! उसके फलस्वरूप कृपया आप इसे जीवनदान दें! माता पार्वती की बात सुनकर भगवान शिव ने देवीदास को पुनः जीवित कर दिया।
इधर देवीदास की पत्नी ने देखा कि पुष्प वाटिका में एक भी पुष्प नहीं रहा। वो जान गई की उसके पति की मृत्यु हो चुकी है, और रोने लगी। तभी उसने देखा कि वाटिका पुनः हरी-भरी हो गई है। ये देखकर वो बहुत प्रसन्न हुई। उसे पता चल गया कि देवीदास को प्राणदान मिल चुका है। जैसे ही देवीदास 16 वर्ष का हुआ, मामा भांजा काशी से वापस चल पड़े। रास्ते में जब वो कन्या के घर गए, तो उसने देवीदास को पहचान लिया और अत्यंत प्रसन्न हुई। धनेश्वर और उसकी पत्नी भी पुत्र को जीवित पाकर हर्ष से भर गए।
तभी से ये पौराणिक मान्यता है, कि जो स्त्रियां श्रद्धापूर्वक पूर्णिमा का व्रत रखती हैं, और कथा सुनती हैं, उन्हें संतान का सुख मिलता है, संकट से मुक्ति मिलती है, और समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है।
तो दोस्तों ये थी माघ पूर्णिमा की व्रत कथा, हम आशा करते हैं कि आपको इस पावन पूर्णिमा तिथि का संपूर्ण पुण्यफल मिले। ऐसी ही महत्वपूर्ण व्रत कथाओं को जानने के लिए जुड़े रहें श्री मंदिर के साथ।
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