महर्षि वाल्मीकि जयंती: उनसे जुड़े रहस्य | Maharshi Valmiki Jayanti
महर्षि वाल्मीकि की जन्म तिथि को वाल्मीकि जयंती के रूप में मनाया जाता है। वाल्मीकि जयंती हर साल आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है।महर्षि वाल्मीकि ने रामायण जैसे महाकाव्यों की रचना की जिसके कारण उन्हें आदिकवि भी कहा जाता है।
साल 2024 में वाल्मीकि जयंती कब है? | Kab Hai Valmiki Jayanti
- इस वर्ष वाल्मीकि जयंती 17 अक्टूबर 2024, गुरुवार को मनाई जाएगी।
- पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - 16 अक्टूबर 2024 को 08:40 पी एम बजे से होगा।
- पूर्णिमा तिथि समाप्त - 17 अक्टूबर 2024 को 04:55 पी एम बजे पर होगी।
वाल्मीकि जयन्ती के दिन शुभ मुहूर्त | Valmiki Jayanti Shubh Muhurt
- ब्रह्म मुहूर्त - 04:18 ए एम से 05:08 ए एम तक
- प्रातः सन्ध्या - 04:43 ए एम से 05:57 ए एम तक
- अभिजित मुहूर्त - 11:20 ए एम से 12:06 पी एम तक
- विजय मुहूर्त - 01:38 पी एम से 02:24 पी एम तक
- गोधूलि मुहूर्त - 05:29 पी एम से 05:54 पी एम तक
- सायाह्न सन्ध्या - 05:29 पी एम से 06:44 पी एम तक
- अमृत काल - 02:14 पी एम से 03:38 पी एम तक
- निशिता मुहूर्त - 11:18 पी एम से 12:08 ए एम, 18 अक्टूबर तक
- सर्वार्थ सिद्धि योग - पूरे दिन रहेगा।
वाल्मीकि जयंती का महत्व | Valmiki Jayanti Mahatva
सामान्य तौर पर महर्षि वाल्मीकि के जन्म के बारे में अलग-अलग मत हैं लेकिन ऐसा कहा जाता है कि उनका जन्म वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के घर में हुआ था, जो महर्षि कश्यप और देवी अदिति के नौवें पुत्र थे। मान्यता है कि जब महर्षि वाल्मीकि ध्यान में लीन थे, तब उनके शरीर पर दीमक चढ़ गए थे लेकिन वह ध्यान में इतने लीन थे कि दीमकों पर उनका ध्यान ही नहीं गया। दीमकों का घर वाल्मीकि कहलाता है और इस घटना के बाद उनका नाम वाल्मीकि रखा गया।
महर्षि वाल्मीकि - जीवन कथा | Maharshi Valmiki Jeevan Katha
महर्षि वाल्मीकि से जुड़ी हुई एक प्रचलित कथा के अनुसार महर्षि बनने से पहले वाल्मीकि रत्नाकर नाम से जाने जाते थे। वह परिवार का भरण पोषण करने के लिए लोगों को लूटा करते थे। एक बार उन्होंने नारद मुनि को एक सुनसान जंगल में पाया और उन्हें भी लूटने की कोशिश की।
तब नारद जी ने रत्नाकर से ऐसे कार्यों को करने का कारण पूछा जिसका उत्तर देते हुए रत्नाकर ने कहा कि वह अपने परिवार के पालन पोषण के लिए ऐसा करते हैं। इस बात पर नारद जी ने उनसे पुनः प्रश्न करते हुए यह पूछा कि क्या उनका परिवार उनके पापों के भागीदार होने को तैयार होगा?
इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए रत्नाकर ने नारद जी को एक पेड़ से बांध दिया और अपने घर चले गए। वह यह जानकर चौंक गया कि परिवार में से कोई भी उनके पाप का भागीदार बनने को तैयार नहीं है। लौटकर उन्होंने नारद जी के चरण पकड़ लिए। तब नारद मुनि ने उन्हें सत्य के ज्ञान से परिचित कराया और उन्हें राम नाम जपने को कहा, लेकिन वे ‘राम’ नाम का उच्चारण नहीं कर पाते थे।
तब नारद जी ने विचार करके उन्हें मरा-मरा का जाप करने को कहा और मरा रटते रटते ‘राम’ हो गया और निरंतर जप करते हुए वह ऋषि वाल्मीकि बन गए।
वाल्मीकि जयंती महोत्सव | Valmiki Jayanti Mahotsav
वाल्मीकि जयंती पूरे देश में श्रद्धा के साथ मनाई जाती है। इस अवसर पर वाल्मीकि मंदिर में पूजा की जाती है। महर्षि वाल्मीकि को याद करते हुए इस अवसर पर उनके जीवन पर आधारित शोभायात्राओं का आयोजन किया जाता है जिसमें जगह-जगह के लोग बड़े उत्साह से भाग लेते हैं। राम भजन भी किए जाते हैं।