मकरविलक्कु 2025 में कब मनाया जाएगा? इस खास दिन का महत्व और पूजा विधि जानने के लिए पढ़ें यह दिलचस्प जानकारी!
मकरविलक्कु केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है। यह हर वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर आयोजित होता है। इस दिन भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु सबरीमाला में एकत्र होते हैं। मकरविलक्कु पर्व की खास विशेषता पवित्र "मकर ज्योति" का दर्शन है, जो भक्तों के लिए शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान अयप्पा को विशेष पूजा और अर्पण किया जाता है।
मकरविलक्कु, भारत के दक्षिणी क्षेत्रों में मनाए जाने वाले महत्वपूर्ण और उल्लासपूर्ण उत्सवों में से एक है। यह हर साल मकर संक्रांति के दिन मनाया जाता है और यह साल 2025 में 14 जनवरी, मंगलवार को मनाया जाएगा।
मकरविलक्कु का उत्सव दक्षिण भारत, खासकर केरल में सबसे ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है। केरल के सबरीमाला क्षेत्र में स्थित सबरीमाला मंदिर में इस त्योहार को हर साल मकर संक्रांति की रात को लाखों श्रद्धालुओं के बीच मनाया जाता है।
इसकी तैयारियां 1 महीने पहले यानी दिसंबर से ही शुरू हो जाती है और लोग इस उत्सव का आनंद 20 जनवरी तक लेते हैं।
मकरविलक्कु उत्सव का आगमन, केरल के लोगों के लिए मकर मास के पहले दिन की शुरुआत का एक प्रधान सूचक जैसा है। यह उत्सव भगवान अयप्पा को समर्पित है।
मकरविलक्कु के दौरान भगवान अयप्पा के श्रृंगार के लिए पंडलम महल से खास शाही आभूषण मंगवाए जाते हैं। महल से मंदिर की दूरी कुछ मीलों की है और इस गहने ले जाने की प्रथा में भक्त आनंदपूर्वक शामिल होते हैं। ऐसी मान्यता है कि अगर कोई भक्त मकरविलक्कु उत्सव में सच्चे मन से सम्मिलित हो, तो उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। मकरविलक्कु उत्सव, भगवान अय्यप्पा और तारा टूटने का आपस में एक पवित्र संबंध माना जाता है। ऐसा कहते हैं, कि मकरविलक्कु के उत्सव की संध्या पूजा के बाद आकाश में अक्सर एक दिव्य रोशनी दिखाई देती है। वहीं, सबरीमाला मंदिर के ठीक विपरीत दिशा में लगभग 8 किलोमीटर दूरी पर मौजूद पोन्नम्बलामेद पहाड़ी पर दिव्य ज्योति या देव रौशनी प्रज्वलित होती है। यह दिव्य रौशनी असल में एक तारे से आती है।
शास्त्रों के मुताबिक इस तारे को मकर ज्योति भी कहा जाता है और यह अक्सर तभी दिखाई पड़ता है जब सूर्य, वर्तमान वर्ष में पहली बार धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करता हो। ये परिवर्तन अक्सर मलयालम महीने मकरम में देखा जाता है। इस प्रज्वलित तारे को देखने के लिए गहन अंधकार की जरूरत है।
मकरविलक्कु में पारंपरिक नियमों के अनुसार, भगवान दर्शन के लिए 10 साल से ज्यादा उम्र और 60 साल से कम उम्र की औरतें हिस्सा नहीं ले सकती हैं। सिर्फ इतना ही नहीं धर्म और जाति से परे, भक्तगण इस उत्सव में शामिल होने के लिए गहरे काले या नीले रंग की धोती पहनते हैं। इसके साथ ही, उन्हें सिर पर एक कपड़े की पोटली रखनी होती है। इस पोटली के अंदर अक्सर नारियल, कर्पूर, चावल जैसी पारंपरिक सामग्रियां चढ़ावे के रूप में रखी जाती हैं।
इस उत्सव का सबसे महत्वपूर्ण चरण इसकी संध्या पूजा है। तिथि के अनुसार सबरीमाला मंदिर में भगवान अयप्पा के आभूषण शाम 6 बजे तक पहुंचाने होते हैं और दीप प्रज्वलन अथवा आरती शाम 6 बजकर 30 मिनट तक शुरू होने का नियम होता है।
जैसा कि हमने जाना कि मकरविलक्कु उत्सव पूरी तरह से भगवान अयप्पा को समर्पित है और इसमें कोई भी युवती भाग नहीं ले सकती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसका कारण यह माना जाता है, कि भगवान अयप्पा बचपन से बाल ब्रह्मचारी थे।
तमिल पांडुलिपियों के अनुसार भगवान अयप्पा भगवान शिव और भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार के पुत्र माने जाते हैं और उन्होंने आजीवन बाल ब्रह्मचारी धर्म निभाया था। इसी कारण उनकी पूजा युवतियां नहीं कर सकती हैं। ऐसी ही अन्य जानकारियों के लिए आप जुड़े रहिए श्री मंदिर के साथ।
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